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'Science ईश्वर को साबित नहीं कर सकता', मुफ्ती नदवी और जावेद अख्तर में तगड़ी बहस हो गई

नदवी ने उदाहरण ने कहा कि‘नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज’ का साफ कहना है कि विज्ञान के पास ऐसे तरीके (processes) मौजूद नहीं हैं, जिनके जरिये ईश्वर के अस्तित्व को प्रमाणित या अप्रमाणित किया जा सके.

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ईश्वर के अस्तित्व पर बहस के दौरान जावेद अख्तर (बायें) सौरभ द्विवेदी (मध्य में) और मुफ्ती शमाइल नदवी.
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राघवेंद्र शुक्ला
21 दिसंबर 2025 (Published: 07:48 PM IST)
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'साइंस (Science) यानी विज्ञान ये साबित ही नहीं कर सकता कि ईश्वर है या नहीं है.' इस्लामिक स्कॉलर और शोधार्थी मुफ्ती शमाइल नदवी ने ये दावा दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन क्लब में ‘Does God Exist’ वाली बहस में किया है. उनका कहना है कि विज्ञान दरअसल खुदा या ईश्वर के अस्तित्व को न तो सीधे तौर पर साबित कर सकता है और न ही उसे पूरी तरह नकार सकता है. दोनों के लिए साइंस कोई मानक नहीं बन सकता और ऐसा वो खुद नहीं कह रहे हैं बल्कि वैज्ञानिक संस्थाएं ये बात कह रही हैं.   

नदवी ने उदाहरण के तौर पर ‘नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज’ (National Academy of Sciences) का नाम लिया और कहा अकादमी का साफ कहना है कि विज्ञान के पास ऐसे तरीके (processes) मौजूद नहीं हैं, जिनके जरिये ईश्वर के अस्तित्व को प्रमाणित या अप्रमाणित किया जा सके. इसके पीछे नदवी वजह बताते हैं कि चूंकि विज्ञान का दायरा अनुभवजन्य साक्ष्यों (Empirical Evidence) तक सीमित है. इसलिए वह ईश्वर को साबित कर पाने में सफल नहीं हो सकता. 

अनुभवजन्य साक्ष्य वे होते हैं जिन्हें हम देख सकते हैं, माप सकते हैं, प्रयोग के माध्यम से जांच सकते हैं.

नदवी कहते हैं, 

Empirical Evidence (अनुभवजन्य साक्ष्य) का ताल्लुक हमारे नेचुरल और फिजिकल वर्ल्ड से है, जबकि ईश्वर नॉन-फिजिकल (गैर-भौतिक) और सुपरनेचुरल (अलौकिक) रियलिटी है. लिहाजा नॉन फिजिकल रियलिटी को आप उस टूल के साथ नहीं चेक कर सकते जिसका काम फिजिकल रियलिटी को तलाश करना है.

उनका कहना है कि विज्ञान सिर्फ भौतिक संसार को ही अनुभव कर सकता है. यानी जो चीजें देखी-सुनी या महसूस की जा सकती हैं, विज्ञान उन्हीं के बारे में प्रमाण या अप्रमाण दे सकता है. लेकिन इसके जरिए मेटा फिजिकल रिएलिटी को साबित नहीं किया जा सकता. ये इसके लिए गलत औजार है. ये वही काम है कि आप मेटल डिटेक्टर से प्लास्टिक डिटेक्ट करने की कोशिश करें. जो जाहिर तौर पर सही नहीं है.

रिलीजन क्या विज्ञान को रोकने का काम करता है? बहस के बीच ये सवाल आने पर नदवी ने कहा कि रिलीजन यानी धर्म साइंस को कभी नहीं रोकता. धर्म ‘साइंटिज्म’ को रोकता है. साइंस और साइंटिज्म में फर्क है. साइंस ये होता है कि हम नेचर और भौतिक जगत की व्यवस्था को समझें. उसकी प्रक्रिया साइंस होती है जबकि साइंटिज्म ये है कि आप मान लें कि ज्ञान हासिल करने का सही और एकमात्र सोर्स सिर्फ विज्ञान और वैज्ञानिक पद्धतियां ही हैं. ये साइंटिज्म है और वो इसे रिजेक्ट करते हैं.

जावेद अख्तर ने खुदा को बताया 'नश्वर'

मुफ्ती नदवी के सामने इस तर्क का जवाब देने के लिए खुद को नास्तिक कहने वाले गीतकार जावेद अख्तर मौजूद थे. उन्होंने अपने काउंटर जवाब में कहा कि मनुष्यों की तरह खुदा का अस्तित्व भी नश्वर यानी नष्ट होने वाला है. मजाकिया अंदाज में साइंस के बारे में कम जानकारी होने की बात कहते हुए जावेद अख्तर ने कहा कि खुदा की कल्पना कोई नई बात नहीं है. ये सदियों से रहा है. धरती पर इंसान 10 से 12 हजार साल से अस्तित्व में है और हमेशा यहां कोई न कोई मजहब और उसका खुदा रहा ही है. 

जावेद अख्तर ने कहा,

ये जो पुराने मजहब थे, उसे जाहिलों ने नहीं बनाया था. ये लोग बड़े-बड़े फिलॉसफर्स थे. इजिप्शियंस के थे, जिन्होंने पिरामिड्स बनाए. ये रोमन लोगों के थे. जिन्होंने सेनेट बनाया यानी डेमोक्रेसी की पहली बुनियाद रखी. इनका जुपिटर ऐसा देवता था, जिस पर उन्हें उतनी ही श्रद्धा थी, जितनी आज किसकी मजहबी व्यक्ति को अपने देवता पर हो सकती है.

जावेद अख्तर के मुताबिक, क्रिश्चिएनिटी आने से पहले यूरोप में एक मजहब था- जर्मेनिक रिलीजन. उसका एक खुदा था. उसकी एक बीवी थी. उसके दो बेटे थे. जब यूरोप में क्रिश्चियनिटी आई तो वो खुदा उसकी बीवी और पूरा खानदान गायब हो गया.  मतलब ये कि इतिहास देखा जाए तो खुदा भी ज्यादातर फानी (नश्वर) है. वो हमेशा नहीं रहे.  दुनिया में आज जो खुदा हैं, क्या पता है आने वाले दिनों में रहें या न रहें. किसी को क्या मालूम कि कितने बरसों के बाद क्या होने वाला है?

फेथ और बिलीफ 

जावेद अख्तर ने खुदा को ‘फेथ’ यानी आस्था की उपज बताया और कहा कि ‘फेथ’ और ‘बिलीफ’ (विश्वास) में अंतर होता है. हर मजहब अपने मानने वालों से फेथ यानी आस्था की मांग करता है और इसका मतलब है कि आप सवाल नहीं कर सकतेे.  उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा, 

मैंने नॉर्थ पोल नहीं देखा है लेकिन मैं मानता हूं कि नॉर्थ पोल दुनिया में कहीं तो है. मैं क्यों मानता हूं? इसलिए कि अगर ये दुनिया है तो इसका कोई टॉप भी होगा ही होगा. कुछ लोग हैं जो वहां गए भी हैं. मेरा कॉमन सेंस कहता है कि नॉर्थ पोल होगा क्योंकि इसका सबूत है. गवाह है. रीजन है तो ये मेरा फेथ नहीं है. ये मेरा बिलीफ है कि नॉर्थ पोल है.

उन्होंने आगे कहा कि हर मजहब फेथ (आस्था) मांगता है. फेथ का मतलब यह है कि न कोई गवाह हो. न कोई सबूत हो. न कोई तर्क हो लेकिन तुम एक बात को मानो. एक देवता को मानो. ये आस्था है. ये बिलीफ होता अगर इसमें कुछ भी सबूत होते. गवाह होते. उन्होंने इसके जरिए ईश्वर के अस्तित्व पर सवाल उठाए और पूछा कि उसके होने का सबूत क्या है?

पूरी बहस यहां देखेंः

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