"फिजियोथेरेपिस्ट अब खुद को ‘डॉ’ नहीं कह सकते", DGHS ने ये आदेश जारी कर वापस क्यों ले लिया?
Directorate General of Health Services का कहना है कि ये यह मरीजों और आम जनता को गुमराह करता है, जिससे संभावित रूप से नीम हकीमों (Quackery) को बढ़ावा मिलता है.

नाम के आगे डॉक्टर लग जाए तो इज्जत बढ़ जाती है. बनारसी भाषा में कहें तो डाक्टर साहब का अलग ही भौकाल होता है. छोटे शहरों या कस्बों में तो दवा की दुकान चलाने वाले केमिस्ट भी डॉक्टर ही कहलाते हैं. लेकिन एक तरह के मेडिकल एक्सपर्ट हैं जिनके नाम के आगे डॉक्टर लगाने पर अब डायरेक्टरेट जनरल ऑफ हेल्थ सर्विसेज (DGHS) ने रोक लगा दी है. ये आदेश फिजियोथेरेपिस्ट्स (Physiotherapists) को लेकर जारी किया गया. DGHS का कहना है कि फिजियोथेरेपिस्ट्स के नाम के आगे डॉक्टर (Dr Prefix) लगने से ये भ्रमित करता है और मरीजों में कन्फ्यूजन पैदा कर सकता है. लेकिन इस आदेश के आने के बाद DGHS की डायरेक्टर ने फिर से एक लेटर जारी कर कहा कि फिलहाल इस आदेश पर विचार-विमर्श किया जा रहा है, लिहाजा पुराने आदेश पर रोक लगाई जाती है.

DGHS द्वारा इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) को लिखे गए एक लेटर में DGHS ने कहा गया था कि भारतीय भौतिक चिकित्सा एवं पुनर्वास संघ (Indian Association of Physical Medicine and Rehabilitation - IAPMR) सहित कई समूहों ने फिजियोथेरेपी के लिए योग्यता पर आधारित पाठ्यक्रम, 2025 के प्रावधान पर आपत्ति जताई है. अप्रैल 2025 में जारी नए सिलेबस में सुझाव दिया गया था कि फिजियोथेरेपी से ग्रेजुएट होने वाले अपने नाम के आगे ‘Dr’ और नाम के अंत में ‘PT’ का प्रयोग कर सकते हैं.
क्या कहा था DGHS ने?DGHS का कहना था कि फिजियोथेरेपिस्ट्स मेडिकल डॉक्टर्स के जितना प्रशिक्षित नहीं होते. इसलिए उन्हें खुद को डॉक्टर के तौर पर पेश नहीं करना चाहिए. DGHS ही वो रेगुलेट्री बॉडी है जो स्वास्थ्य सेवाओं के रेगुलेशन के लिए जिम्मेदार है. DGHS फिलहाल स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (Ministry of Health and Family Welfare) के साथ अटैच है. इस मामले पर IMA को जारी किए गए लेटर में DGHS की डायरेक्टर डॉ सुनीता शर्मा ने कहा था
फिजियोथेरेपिस्ट को मेडिकल डॉक्टर के रूप में प्रशिक्षित नहीं किया जाता है, इसलिए उन्हें अपने नाम के आगे ‘डॉक्टर’ का प्रयोग नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह मरीजों और आम जनता को गुमराह करता है, जिससे संभावित रूप से नीम हकीमों को बढ़ावा मिलता है.
DGHS के लेटर में आगे कहा गया था कि फिजियोथेरेपिस्ट्स को प्राइमरी हेल्थ केयर सर्विस प्रोवाइडर के रूप में नहीं, बल्कि डॉक्टरों के रेफरल पर ही काम करना चाहिए. इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार इस मामले पर स्वास्थ्य मंत्रालय और देश की अदालतों ने कई बार फिजियोथेरेपिस्ट्स के नाम के आगे 'डॉ' लगाने को लेकर कहा कि ये सही नहीं है.
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रिपोर्ट में पटना हाईकोर्ट के 2003 के फैसले, बेंगलुरु कोर्ट के 2020 के फैसले और मद्रास हाईकोर्ट के 2022 के फैसले का जिक्र किया गया. साथ ही तमिल नाडु मेडिकल काउंसिल का भी हवाला दिया गया ने भी कई बार एडवाइजरी जारी कर कहा है कि 'डॉ' शब्द केवल रजिस्टर्ड मेडिकल एक्सपर्ट्स और प्रैक्टिशनर्स के लिए आरक्षित है. DGHS ने इन बातों का हवाला देते हुए लेटर तो जारी कर दिया कि अब फिजियोथेरेपिस्ट्स के नाम के आगे डॉक्टर नहीं लगेगा. लेकिन कई हलकों खासकर फिजियोथेरेपिस्ट्स की ओर से इस आदेश का विरोध होने लगा. इसके बाद सरकार ने इस आदेश को वापस ले लिया. DGHS की ओर से जारी नए लेटर में कहा गया कि सरकार फिलहाल इस मुद्दे पर आगे की जांच और विचार-विमर्श करने के बाद ही कोई फैसला लेगी.
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