न्यूजीलैंड में जबरन रोका गया सिख जुलूस, कहा- 'ये भारत नहीं है'
सिख नगर कीर्तन के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान इस दक्षिणपंथी समूह के लोगों ने “यह न्यूज़ीलैंड है, भारत नहीं” जैसे नारे लिखे बैनर दिखाए और “Kiwis First” तथा “Keep New Zealand New Zealand” जैसे स्लोगन वाली टी-शर्ट पहनी हुई थीं.

न्यूज़ीलैंड में रह रहे कुछ भारतीय मूल के लोगों को कड़े विरोध का सामना करना पड़ा. 19 दिसंबर को एक सिख धार्मिक जुलूस (नगर कीर्तन) को उस समय रोकना पड़ा, जब एक स्थानीय दक्षिणपंथी समूह ने उनका रास्ता रोक लिया. उन लोगों ने पारंपरिक तरीके से भारतीयों का विरोध किया, हालांकि उनका रवैया काफी उग्र था. इस दौरान निहंग सिखों सहित सिख समुदाय के लोगों ने किसी भी उकसावे पर प्रतिक्रिया नहीं दी और शांत बनाए रखी. इस घटना के बाद न्यूज़ीलैंड में धार्मिक स्वतंत्रता और सार्वजनिक व्यवस्था को लेकर लोगों ने चिंता जताई है.
सिख नगर कीर्तन के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान इस दक्षिणपंथी समूह के लोगों ने “यह न्यूज़ीलैंड है, भारत नहीं” जैसे नारे लिखे बैनर दिखाए और “Kiwis First” तथा “Keep New Zealand New Zealand” जैसे स्लोगन वाली टी-शर्ट पहनी हुई थीं. सोशल मीडिया में शेयर किए जा रहे वीडियो में दिख रहा है कि प्रदर्शनकारियों ने “वन ट्रू गॉड” और “जीसस, जीसस” जैसे धार्मिक नारे भी लगाए.
यह घटना ऑकलैंड के मैनुरेवा इलाके में हुई, जहां नानकसर सिख गुरुद्वारा की ओर से यह कार्यक्रम आयोजित किया गया था. सोशल मीडिया पर शेयर किए जा रहे वीडियो में दिखता है कि “ट्रू पैट्रियट्स ऑफ न्यूज़ीलैंड” नामक समूह के सदस्य ग्रेट साउथ रोड पर खड़े होकर जुलूस के सामने पारंपरिक माओरी हाका नृत्य कर रहे थे, जिससे भारतीय जुलूस आगे नहीं बढ़ सका. इस समूह का संबंध पेंटेकोस्टल नेता ब्रायन तमाकी और डेस्टिनी चर्च से बताया जाता है.
हाका माओरी संस्कृति का एक पारंपरिक नृत्य है, जो गर्व, पहचान और एकता का प्रतीक माना जाता है. इतिहास में इसे योद्धा अपनी ताकत दिखाने, विरोधी को डराने और युद्ध से पहले मनोबल बढ़ाने के लिए करते थे. नवंबर 2024 में यह माओरी युद्ध नृत्य उस समय दुनियाभर में चर्चा में आया था, जब दो सांसदों ने संसद में एक विधेयक के विरोध में हाका किया था.
पूरे टकराव के दौरान पुलिस मौके पर मौजूद थी. पुलिस ने इस बात को सुनिश्चित किया कि स्थिति किसी भी हिंसा या तनाव की तरफ ना बढ़े.
नगर कीर्तन के आयोजकों ने सोशल मीडिया पर कहा कि इस जुलूस को स्थानीय प्रशासन से पूरी अनुमति मिली हुई थी और इस तरह की रुकावट उनके लिए अप्रत्याशित और चिंताजनक है.
इस बीच, अकाल तख्त के कार्यकारी जत्थेदार ज्ञानी कुलदीप सिंह गरगज ने एक वीडियो संदेश में कहा कि यह घटना दुर्भाग्यपूर्ण और चिंता का विषय है. खासकर इसलिए क्योंकि सिख कई वर्षों से न्यूज़ीलैंड में कानूनी रूप से रह रहे हैं. उन्होंने कहा कि सिखों ने टैक्स दिए हैं, कानून का पालन किया है और देश की प्रगति में अहम योगदान दिया है. उन्होंने न्यूज़ीलैंड सरकार से सिखों की सुरक्षा सुनिश्चित करने और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए कदम उठाने की अपील की.
शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPT) के अध्यक्ष हरजिंदर सिंह धामी ने भी न्यूज़ीलैंड और भारत सरकार से अपील की कि सिख समुदाय को अपने धार्मिक रीति-रिवाजों को शांतिपूर्वक निभाने और सुरक्षित माहौल में रहने का भरोसा दिया जाए.
शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने भी इस घटना की निंदा की और अपने एक्स अकाउंट पर प्रतिक्रिया दी. उन्होंने कहा,
नगर कीर्तन सिखों की एक पवित्र परंपरा है, जिसमें गुरु ग्रंथ साहिब जी के शबद गाए जाते हैं और भक्ति, एकता तथा पूरी मानवता के साथ आशीर्वाद साझा करने का संदेश दिया जाता है. उकसावे के बावजूद सिख समुदाय ने जिस संयम और शांति का परिचय दिया, वह गुरु साहिब की “चढ़दी कला” और “सरबत दा भला” की शिक्षाओं के अनुरूप है.
बादल ने विदेश मंत्री एस जयशंकर से इस मामले को न्यूज़ीलैंड सरकार के सामने उठाने की भी अपील की.
न्यूज़ीलैंड में धार्मिक और आप्रवासी विरोधी घटनाएं पहले भी सामने आई हैं. यह इस साल ऐसी तीसरी घटना बताई जा रही है.
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, इससे पहले जून में, कट्टरपंथी धार्मिक नेता ब्रायन तमाकी के नेतृत्व में हुए एक प्रदर्शन के दौरान गैर-ईसाई धर्मों के झंडों का अपमान किया गया था. इनमें हिंदू, इस्लामिक, फ़िलिस्तीनी और बौद्ध प्रतीकों वाले झंडे शामिल थे, जिन्हें फाड़ा गया और पैरों तले कुचला गया. इसके बाद हाका भी किया गया.
वीडियो: अमेरिका में सिख समुदाय पर दिए गए बयान पर अदालत ने क्या कहा?

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