'दा' और 'बाबू' में क्या फर्क है जिसकी वजह से पीएम मोदी तक को संसद में टोक दिया गया?
पीएम मोदी बार-बार बंकिम चंद्र चटर्जी को ‘बंकिम दा-बंकिम दा’ बोल रहे थे. चार बार बोल चुके तो तृणमूल कांग्रेस के सांसद सौगत रॉय से रहा नहीं गया. बीच भाषण में ही उन्होंने पीएम मोदी टोक दिया. प्रधानमंत्री को भी तुरंत गलती का एहसास हो गया और खुद को सही किया. लगे हाथ सौगत रॉय की चुटकी भी ले ली.
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बंगाल में जिसे ‘बाबू’ कहा जाता है, उसे अगर आप ‘दा’ कह देंगे तो गड़बड़ है. लोग इसके लिए प्रधानमंत्री तक को टोक देते हैं. सोमवार, 8 दिसंबर को लोकसभा में एकदम यही हुआ. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ‘वंदे मातरम’ पर चर्चा के दौरान भाषण दे रहे थे. वे बार-बार बंकिम चंद्र चटर्जी को ‘बंकिम दा-बंकिम दा’ बोल रहे थे. चार बार बोल चुके तो तृणमूल कांग्रेस के सांसद सौगत रॉय से रहा नहीं गया. बीच भाषण में ही उन्होंने पीएम मोदी को टोक दिया. प्रधानमंत्री को भी तुरंत गलती का एहसास हो गया और खुद को सही किया. लगे हाथ सौगत रॉय की चुटकी भी ले ली.
क्या हुआ विस्तार से बताते हैं.
भारत का राष्ट्रगीत है- वंदे मातरम. बांग्ला साहित्य के महान लेखक बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने इसे लिखा है. 1875 में लिखे गए इस गीत को इस साल 150 साल हो गए. इसी मौके पर भारत की संसद में वंदे मातरम पर चर्चा चल रही है. सोमवार को इस विषय पर बोलने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खड़े हुए. उन्होंने वंदे मातरम की महिमा के बीच लेखक बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय की भी चर्चा की. इस दौरान उन्होंने चार बार बंकिमचंद्र को ‘बंकिम दा’ कहा. पहली बार बोले,
वंदे मातरम की यात्रा की शुरुआत बंकिम चंद्र जी ने 1875 में की थी और गीत ऐसे समय लिखा गया था जब 1857 के स्वतंत्र संग्राम के बाद अंग्रेजी सल्तनत बौखलाई हुई थी. भारत पर दबाव डाल रही थी. जुल्म कर रही थी. भारत के लोगों को मजबूर किया जा रहा था और अंग्रेज अपने राष्ट्रीय गीत ‘गॉड सेव द क्वीन’ को भारत में घर-घर पहुंचाने का षड्यंत्र चला रहे थे. ऐसे समय ‘बंकिम दा’ ने चुनौती दी और ईंट का जवाब पत्थर से दिया और उसमें से वंदे मातरम का जन्म हुआ.
पीएम मोदी दूसरी बार बोले,
‘बंकिम दा’ ने जब वंदे मातरम की रचना की तो स्वाभाविक ही वो स्वतंत्रता आंदोलन का स्वर बन गया.
तीसरी बार में पीएम ने कहा,
अंग्रेजों के दौर में एक फैशन था- भारत को कमजोर, निकम्मा, आलसी, कर्महीन बताना. भारत को जितना नीचा दिखाया जा सके, दिखाया जा रहा था. तब ‘बंकिम दा’ ने उस हीनभावना को भी झकझोरने के लिए ‘वंदे मातरम’ में भारत के सामर्थ्यशाली स्वरूप को प्रकट करते हुए लिखा था- त्वं हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी. कमला कमलदलविहारिणी. वाणी-विद्यादायिनी.
इसके बाद पीएम मोदी ने बंगाल विभाजन के समय का जिक्र किया और कहा,
बंगाल का विभाजन तो हुआ लेकिन एक बहुत बड़ा स्वदेशी आंदोलन खड़ा हुआ. तब ‘वंदे मातरम’ हर तरफ गूंज रहा था. अंग्रेज समझ गए थे कि बंगाल की धरती से निकला ‘बंकिम दा’ का ये भाव सूत्र...
पीएम मोदी के इतना बोलते ही सौगत रॉय ने उन्हें टोक दिया. भाषण के बीच में ही बोले, ‘आप बंकिम दा बोल रहे हैं. बंकिम बाबू-बंकिम बाबू…’
इस पर पीएम मोदी ने कहा,
बंकिम बाबू. थैंक्यू-थैंक्यू. आपकी भावनाओं के लिए मैं आदर करता हूं. ‘बंकिम बाबू’ ने. ‘बंकिम बाबू’ ने. थैंक्यू दादा (सौगत रॉय). थैंक्यू. हां… आपको तो दादा कह सकता हूं न. वरना उसमें भी आपको एतराज हो जाएगा.
इसके बाद सदन में ठहाका गूंज उठता है. प्रधानमंत्री अपना भाषण आगे जारी रखते हैं.
‘बाबू’ और ‘दा’ में क्या अंतर है?बंगाल में दोनों ही संबोधन सम्मान जताने के लिए प्रयोग किए जाते हैं. रवींद्रनाथ ठाकुर के जीवन पर आधारित किताब ठाकुरबाड़ी लिखने वाले अनिमेष मुखर्जी बताते हैं कि ‘बाबू’ और ‘दा’ दोनों ही सम्मान का मामला है. ‘दादा’ या 'दा' का मतलब होता है बड़ा भाई. लेकिन सुभाषचंद्र बोस, शरतचंद्र चट्टोपाध्याय, बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय और रबींद्रनाथ ठाकुर… ये सब बड़े भाई से ज्यादा पितातुल्य माने जाते हैं. जैसे- हिंदी में महात्मा गांधी के लिए ‘गांधी भाई’, भगत सिंह के लिए ‘भगत भाई’, मुंशी प्रेमचंद के लिए ‘प्रेमचंद भाई’ नहीं कहेंगे, वैसे ही बंकिमचंद के लिए ‘बंकिम दा’ का इस्तेमाल नहीं करते. बस इतनी सी बात है और कुछ नहीं.
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