हर घर को कब मिलेगा पीने का पानी? जल जीवन मिशन पर सरकार ने अब क्या एक्शन लिया?
स्कीम में भ्रष्टाचार और लापरवाही की शिकायतें बढ़ती जा रही हैं. ऐसे में केंद्र ने राज्यों को आदेश दिया है कि वे बताएं कि गड़बड़ी करने वाले किन अफसरों और ठेकेदारों पर कार्रवाई की गई है और किन मामलों में CBI, लोकायुक्त या भ्रष्टाचार निरोधक विभाग ने केस दर्ज किए हैं.
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नरेंद्र मोदी सरकार ने जल जीवन मिशन (JJM) योजना में गड़बड़ियों और अनियमितताओं को लेकर चिंता जताई है. ग्रामीण इलाकों में हर घर तक पीने का पानी पहुंचाने वाली इस योजना में भ्रष्टाचार और लापरवाही की शिकायतों के बाद केंद्र ने राज्यों को आदेश दिया है कि वे बताएं कि मामले में गड़बड़ी करने वाले किन अफसरों और ठेकेदारों पर कार्रवाई की गई है और किन मामलों में CBI, लोकायुक्त या भ्रष्टाचार निरोधक विभाग ने केस दर्ज किए हैं.
यह निर्देश केंद्र सरकार के जल शक्ति मंत्रालय के तहत आने वाले ड्रिंकिंग वाटर एंड सैनेटेशन विभाग (DDWS) ने जारी किया है. यह फैसला उस समय लिया गया जब केंद्र में एक उच्चस्तरीय समीक्षा बैठक हुई, जिसमें योजना को 2028 तक बढ़ाने पर चर्चा हुई. इंडियन एक्सप्रेस के सूत्रों के मुताबिक, अब योजना का एक्सटेंशन तभी मंजूर होगा जब राज्य सरकारें यह दिखाएंगी कि उन्होंने भ्रष्टाचार और लापरवाही के मामलों में ठोस कार्रवाई की है. यानी योजना को आगे बढ़ाने का फैसला राज्यों की जवाबदेही तय करने पर निर्भर करेगा.
केंद्र सरकार का ये नया निर्देश ऐसे समय में आया है जब कुछ महीने पहले ही देशभर में नोडल अधिकारियों की 100 से ज्यादा टीमों को जमीनी स्तर पर जल जीवन मिशन परियोजनाओं की जांच (ग्राउंड इंस्पेक्शन) के लिए तैनात किया गया था. यह जांच कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में हुई समीक्षा बैठक के बाद शुरू की गई थी.
खर्चों पर रोक हटी तो बढ़ गई लागतइससे पहले इंडियन एक्सप्रेस ने 21 मई 2025 को अखबार में एक रिपोर्ट छापी थी. इसमें सभी राज्यों और केंद्र प्रशासित प्रदेशों के जल जीवन मिशन के डैशबोर्ड पर अपलोड आंकड़ों की पड़ताल की गई थी. इस रिपोर्ट में बताया गया था कि 3 साल पहले मिशन के दिशानिर्देश में एक बदलाव किया गया था, जिसकी वजह से इस योजना के तहत खर्चों पर लगी रोक हटा ली गई थी. इसके बाद से स्कीम की लागत में भारी बढ़त हुई थी.
जांच की गई तो पता चला कि 14 हजार 586 योजनाओं की अनुमानित लागत से 14.58 फीसदी ज्यादा खर्चा हुआ है. यानी कुल 16 हजार 839 करोड़ का अतिरिक्त खर्च योजना में किया गया है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, 10 अक्टूबर 2025 को DDWS ने राज्यों के मुख्य सचिवों को भेजे अपने निर्देश में 20 अक्टूबर तक सभी जरूरी रिपोर्ट पेश करने को कहा है, जिसमें राज्यों को PHED यानी जन स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग के अफसरों के खिलाफ उठाए गए कदमों की डिटेल देनी है. जैसे-
PHED (जन स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग) के अफसरों के खिलाफ की गई निलंबन, बर्खास्तगी या FIR की कार्रवाई की डिटेल दी जाए, अगर किसी ने घटिया काम या फंड्स में गड़बड़ी की है.
ठेकेदारों और थर्ड पार्टी एजेंसियों के खिलाफ उठाए गए कदम जैसे- जुर्माना, ब्लैकलिस्ट करना, FIR दर्ज करना या रिकवरी की रकम की रिपोर्ट शेयर करें.
जहां सार्वजनिक तौर पर फंड्स के दुरुपयोग या भ्रष्टाचार की शिकायतें मिली हैं, वहां मामले की जांच करें और जिम्मेदार अधिकारियों पर एक्शन लें.
हर उस केस की 'वन पेज रिपोर्ट' अलग से भेजें, जिसमें FIR दर्ज हुई है.
वित्तीय गड़बड़ी की अब तक दर्ज की गई सारी शिकायतों की संख्या बताएं. चाहे वो स्वतः संज्ञान लेकर दर्ज की गई हों. मीडिया रिपोर्ट से आई हों. विधायकों ने उठाई हों या फिर लोक शिकायत पोर्टल्स पर दाखिल की गई हों.
अगर नुकसान हुआ है तो उसका रिकवरी प्लान क्या है? रिपोर्ट में इसके बारे में बताएं.
क्या है जल जीवन मिशनबता दें कि केंद्र सरकार ने साल 2019 में जल जीवन मिशन योजना शुरू किया था. इसका मकसद था कि 2024 तक हर गांव के हर घर तक नल से पीने का पानी पहुंचाया जाए. उस समय मंत्रालय ने बताया था कि देश के कुल 17.87 करोड़ ग्रामीण घरों में से लगभग 14.6 करोड़ यानी तकरीबन 81 फीसदी घरों में नल कनेक्शन नहीं थे.
ऐसे में जल जीवन मिशन योजना के तहत हर घर नल के लिए कुल 3.60 लाख करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था. इसमें 2.08 लाख करोड़ केंद्र सरकार को देने थे और 1.52 लाख करोड़ राज्य सरकारों का हिस्सा था. मिशन शुरू होने के बाद से अब तक 8,29 लाख करोड़ की कुल 6.41 लाख वाटर सप्लाई स्कीम मंजूर की गईं, ताकि 12.74 करोड़ घरों को नल से पानी की सुविधा दी जा सके. JJM डैशबोर्ड के मुताबिक, इस दिशा में अब तक कुल 3.91 लाख करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं.
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