मुंबई में 39 साल बाद मिला शख्स को इंसाफ, 137 किलो ड्रग्स जब्ती मामले में कोर्ट ने किया बरी
यह मामला 1986 का है. अब 39 साल बाद अदालत ने यह कहते हुए शख्स को बरी कर दिया कि इतने लंबे समय बाद भी ठोस सबूत नहीं मिले, इसलिए आरोपी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता. क्या है पूरा मामला?

मुंबई (Mumbai) के एक स्पेशल कोर्ट ने 61 साल के एक शख्स को 39 साल पुराने एक ड्रग्स केस में बरी कर दिया. कस्टम विभाग ने 1986 में उसके घर से 137 किलो मादक पदार्थ (ड्रग्स) मिलने का दावा किया था. अदालत ने यह कहते हुए शख्स को बरी कर दिया कि इतने लंबे समय बाद भी ठोस सबूत नहीं मिले, इसलिए आरोपी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता.
क्या है पूरा मामला?इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, यह मामला 7 मई, 1986 का है. सीमा शुल्क विभाग यानी कस्टम विभाग को सूचना मिली कि वर्ली में एक घर के अंदर बड़ी मात्रा में ड्रग्स रखी हुई है. अधिकारी वहां पहुंचे और सात कार्डबोर्ड बॉक्स बरामद किए, जिनमें अलग-अलग आकार की चीजें थीं. जांच में इन्हें चरस बताया गया. उस वक्त इस ड्रग्स की कीमत करीब साढ़े पांच लाख रुपये बताई गई थी.
इसके बाद विभाग ने अब्दुल रऊफ और एक दूसरे शख्स अब्दुल लतीफ के खिलाफ मामला दर्ज किया. आरोप था कि लतीफ ने ये ड्रग्स रऊफ के घर में रखी थी. लतीफ उस वक्त से फरार है, जबकि रऊफ भी लंबे समय तक गायब रहा. 2022 में रऊफ के लौटने तक मुकदमा ठप रहा. इसके बाद वह लौटा तो अदालत में पेश हुआ और केस आगे बढ़ा.
39 साल बाद, मुकदमे के दौरान, शिकायत दर्ज कराने वाले शख्स का पता नहीं चल पाया. एक अफसर की मौत हो गई और दो अन्य अधिकारी गैर-जमानती वारंट के बावजूद अदालत में हाजिर नहीं हुए. जो पूर्व अधीक्षक गवाही देने पहुंचे, वे खुद उस छापेमारी दल में थे ही नहीं. अदालत ने कहा कि इस बात का कोई रिकॉर्ड नहीं है कि ड्रग्स के बारे में जानकारी प्राप्त करने वाला अधिकारी कौन था.
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चूंकि, गवाह छापेमारी दल का हिस्सा नहीं था, इसलिए अदालत ने कहा कि तलाशी और जब्ती भी साबित नहीं हुई. सबसे अहम सबूत यानी रासायनिक जांच रिपोर्ट (FSL रिपोर्ट) भी रिकॉर्ड से गायब थी. जो ड्रग्स जब्त किए गए थे, उन्हें 1988 में ही जला दिया गया था.
स्पेशल जज एसएम बुक्के ने कहा,
अभियोजन पक्ष कथित बरामदगी को प्रूफ करने के लिए अदालत के सामने कोई सैंपल पेश करने में नाकाम रहा है. सबूतों की कमी में, कथित ड्रग्स के साथ छेड़छाड़ की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता.
कोर्ट ने कहा कि जब कोई ठोस सबूत नहीं बचा, न रिपोर्ट और न गवाह, तो दोष साबित ही नहीं किया जा सकता. इसलिए अब्दुल रऊफ को नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकॉट्रॉपिक सब्सटेंस एक्ट के तहत सभी आरोपों से बरी कर दिया गया.
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