दिन भर फ़ोन चलाता था, बच्चे का वजन 5 महीने में 10 किलो बढ़ गया, ऐसे हालात में आप क्या करें?
अभिभावक ने जब अपने 10 साल के बच्चे को फ़ोन दिलवाया तो उनकी चिंता बढ़ गई. केवल 5 महीने में बच्चे ने 10 किलो वज़न बढ़ा लिया. अभिभावक बाल मनोवैज्ञानिक और पैरेंटल कोच के पास गए. स्मार्टफोन से होने वाले खतरों को लेकर पैरेंटल कोच ने क्या बताया? इस बारे में जो रिसर्च हैं, उनमें क्या सामने आया है?

बच्चों को किस उम्र में स्मार्ट फ़ोन देना चाहिए ये हमेशा चर्चा का विषय रहता है. अगर बचपन में फ़ोन दे दिया तो आदत बिगड़ जाएगी और दिन भर फ़ोन में ही लगे रहेंगे. अगर नहीं दिया तो कहीं उन्हें ऐसा ना लगे कि मम्मी-पापा प्यार नहीं करते. इसी दुविधा के चलते मुंबई में एक अभिभावक ने अपने 10 साल के बच्चे को आखिरकार फ़ोन दिला ही दिया.
लेकिन, इसके बाद उनकी चिंता बढ़ गई. केवल 5 महीने में बच्चे का 10 किलो वज़न बढ़ गया. अभिभावक की चिंता बढ़ी तो वो बाल मनोवैज्ञानिक और पैरेंटल कोच, उर्वशी मुसले के पास गए. इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में उर्वशी ने बताया,
स्मार्टफोन से बच्चों पर क्या प्रभाव पड़ता है?मां-बाप अपने बच्चों को यूंही मोबाइल फ़ोन थमा देते हैं. कभी उन्हें रोने से चुप कराने के लिए तो कभी उन्हें गेम और कविताओं के ज़रिए मनाए रखने के लिए. कुछ लोग तो फ़ोन ये सोचकर दे देते हैं कि बच्चा खाना जल्दी खा लेगा. लेकिन ये कोई शांति का उपाय नहीं है. ये बच्चों के स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ा नुकसान है.
मनोवैज्ञानिक उर्वशी मुसले ने बताया कि 9 से 12 साल की उम्र, बच्चों के सीखने का सबसे अच्छा समय होता है. उन्होंने कहा,
इस दौरान दिमाग का विकास तेजी से होता है इसीलिए बच्चों को बाहरी उत्तेजनाओं से दूर रखना चाहिए. ज्यादा स्क्रीन-टाइम की वजह से दिमाग डल(dull) पड़ जाता है. शुरुआती दौर में ही बच्चों को मोबाइल फ़ोन देने से उनके दिमाग के ग्रे मैटर और संज्ञानात्मक कार्य में कमी आ सकती है.
उन्होंने एक और चिंताजनक कारण पर बात की. उन्होंने आगे कहा,
किशोरावस्था से पहले दिमाग पर फ़िल्टर लगाना मुमकिन होता है. 16 साल का बच्चा गेट कीपिंग करना जानता है, लेकिन 12 साल का बच्चा नहीं. इस उम्र में फ़िल्टर लगाने के लिए दिमाग पूरी तरह विकसित नहीं होता इसीलिए वो सब कुछ देख लेता है.
ज्यादा स्क्रीन टाइम की वजह से बच्चों में निष्क्रिय व्यवहार की आदत भी पैदा होती है, जो बच्चों में मोटापे का एक मुख्य कारण है.
फ़ोन की लत कैसे छुड़ा सकते हैं?उर्वशी कहती हैं कि घर से शुरुआत करनी होगी. परिवार में डिजिटल स्वच्छता ज़रूरी है. उनके मुताबिक़ जिस रंग में माता-पिता रहेंगे बच्चे उसी रंग में ढल जाएंगे. उन्होंने मुंबई वाले केस का उदाहरण देते हुए कहा,
बच्चे को सुपरहीरो कार्टून पसंद था. मैंने अभिभावक से कहा कि आप बच्चे के साथ टीवी पर कार्टून देखिए जिससे बच्चे के आस पास सुरक्षा का माहौल बनेगा. बच्चे को अपने साथ के कामों में लगाइए जैसे पौधों में पानी देना. इससे बच्चे धीरे-धीरे आपके रंग में ढल जाएंगे और बाहर घुलना-मिलना भी शुरू कर देंगे.
उर्वशी ने ये भी कहा कि स्मार्टफोन का शैक्षिक महत्व भी है जिसे नज़र अंदाज नहीं किया जा सकता है. लेकिन बच्चों को ये बताना ज़रूरी है कि स्मार्टफोन उनके बाकी गतिविधियों का एक छोटा-सा हिस्सा है.
रिसर्च में क्या सामने आया?बच्चे को मोबाइल दें या न दें, ऐसी ही दुविधा चिल्ड्रेंस हॉस्पिटल ऑफ़ फिलाडेल्फिया के मनोचिकित्सक रैन बरज़िले के मन में भी उपजी. एबीसी न्यूज़ के मुताबिक़, उनके नौ साल के बेटे ने भी उनसे फ़ोन दिलवाने की ज़िद की. लेकिन इन्होंने दूसरा रुख अपनाया. अपनी टीम के साथ मिलकर इस मुद्दे पर रिसर्च किया. रिसर्च इस बात पर कि अगर 12 साल से कम उम्र के बच्चों को फ़ोन दिलाया तो क्या होगा, नहीं दिलाया तो क्या होगा. उन्होंने अपनी रिसर्च में कुल 10,500 बच्चों का डाटा कलेक्ट किया. नतीजतन उन्होंने पाया कि 12 साल से कम उम्र के बच्चे जो स्मार्टफ़ोन यूज़ करते हैं उनमें डिप्रेशन, खराब नींद और मोटापे का खतरा ज्यादा है.
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