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MP हाई कोर्ट का फैसला: नाबालिग रेप विक्टिम मां बनेगी, सरकार उठाएगी देखभाल की जिम्मेदारी

MP High Court on Children Born to Rape Survivors: मेडिकल रिपोर्ट से पुष्टि हुई कि भ्रूण की आयु 29 सप्ताह और 6 दिन थी. फैसले के समय तक गर्भावस्था (Pregnancy) लगभग 31 सप्ताह की हो चुकी थी. इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए न्यायालय ने अपना निर्णय सुनाया.

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MP High Court on Children Born to Rape Survivors
हाई कोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार से इस संबंध में नीति बनाने को कहा है. (प्रतीकात्मक फ़ोटो- इंडिया टुडे)
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हरीश
26 मई 2025 (Updated: 26 मई 2025, 11:45 AM IST) कॉमेंट्स
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मध्य प्रदेश हाई कोर्ट (Madhya Pradesh High Court) ने एक रेप विक्टिम नाबालिग को बच्चे को जन्म देने की मंजूरी दी है. कोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार को निर्देश दिया कि वो बच्चे के जन्म के बाद उनकी (मां-बच्चे की) देखभाल करे. साथ ही, बच्चे को 12वीं कक्षा तक मुफ्त शिक्षा मिले और वयस्क होने तक सभी मेडिकल सुविधाएं दी जाएं.

नाबालिग 31 हफ़्ते (लगभग सात महीने) से गर्भवती है. ऐसे में कोर्ट का कहना है कि नाबालिग का अबॉर्शन कराना ख़तरनाक हो सकता है. जस्टिस विनय सराफ की अवकाशकालीन सिंगल बेंच मामले की सुनवाई कर रही थी. सुनवाई के दौरान जस्टिस विनय ने कहा,

अगर नाबालिग मां और उसके माता-पिता जन्म के बाद बच्चे को गोद देना चाहते हैं, तो सरकार इसकी सुविधा देगी.

टाइम्स ऑफ़ इंडिया की ख़बर के मुताबिक़, बलात्कार पीड़िता नाबालिग का मामला मध्य प्रदेश के मंडला ज़िले की एक अदालत में चल रहा था. पुलिस ने एडिशनल डिस्ट्रिक्ट जज (ADJ) की अदालत को इस नाबालिग के बारे में सूचित किया था. जिसका यौन शोषण किया गया था और वो गर्भवती पाई गई थी.

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने ऐसे मामलों के लिए SOP निर्धारित की थी. ऐसे में ADJ कोर्ट ने मामले को हाई कोर्ट भेज दिया. इस बीच, नाबालिग ने अपने माता-पिता के साथ मिलकर हाई कोर्ट को एक पत्र सौंपा. जिसमें गर्भावस्था को पूरा करने और बच्चे को जन्म देने की इच्छा जताई गई थी. इसी आधार पर हाई कोर्ट ने सुनवाई की.

ये भी पढ़ें- सुप्रीम कोर्ट ने अबॉर्शन की अनुमति नहीं दी, क्या कहा?

इंडिया टुडे से जुड़ीं अमृतांशी जोशी की ख़बर के मुताबिक़, मेडिकल रिपोर्ट से पुष्टि हुई कि भ्रूण 29 सप्ताह और 6 दिन का था. फ़ैसले के समय तक, गर्भ की उम्र लगभग 31 हफ़्ते हो चुकी थी. इसे ध्यान में रखते हुए, कोर्ट ने कहा कि इतनी देर से प्रेगनेंसी को रोकना नाबालिग के जीवन के लिए एक बड़ा जोखिम हो सकता है.

हाई कोर्ट ने निर्देश दिया है कि राज्य विशेषज्ञ डॉक्टरों की एक टीम के ज़रिए पीड़िता को उसकी प्रेगनेंसी और प्रसव के दौरान मदद के लिए सभी ज़रूरी मेडिकल सुविधाएं प्रदान करेगा. प्रसव से संबंधित सभी खर्च राज्य उठाएगा.

अदालत ने राज्य सरकार से ऐसी नीति तैयार करने पर विचार करने का भी आग्रह किया है. जिससे यौन उत्पीड़न, बलात्कार या इस तरह के किसी दूसरे अपराध से बचे लोगों के बच्चों के लिए भोजन, रहने, पढ़ाई और सुरक्षा की व्यवस्था हो सके.

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