दो और खांसी की दवाओं में DEG मिला, पेंट-प्लास्टिक बनाने वाले इस केमिकल का इस्तेमाल कफ सिरप में क्यों?
DEG, यानी डाईएथिलीन ग्लाइकॉल. इसका इस्तेमाल पेंट, ब्रेक फ्लूइड और प्लास्टिक बनाने में किया जाता है. माने एक बात साफ है कि ये दवाओं में यूज नहीं किया जाता.

मध्यप्रदेश में खांसी सिरप से अब तक 21 बच्चों की मौत हो चुकी है. जांच के घेर में आई कोल्ड्रिफ नाम की कफ सिरप. इस सिरप में डाईएथिलीन ग्लाइकॉल (DEG) है नाम का केमिकल हानिकारक स्तर से काफी ज्यादा मात्रा में पाया गया. अब खबर आई है कि दो और कफ सिरप में DEG की मात्रा ज्यादा मिली है.
गुजरात स्थित रेडनेक्स फार्मास्युटिकल्स के रेस्पिफ्रेश में 1.3% DEG पाया गया. यहां बता दें कि दवाओं में DEG का अधिकतम लेवल 0.1% होना चाहिए. इससे ऊपर ये घातक हो सकता है. गुजरात स्थित एक अन्य कंपनी शेप फार्मा रीलाइफ सिरप नाम की दवा बनाती है. इसमें 0.6% DEG पाया गया है. माने लिमिट से 0.5% ज्यादा. वहीं, तमिलनाडु स्थित श्रीसन फार्मा के कोल्ड्रिफ सिरप में 48.6% DEG मिला है.
अब एक नज़र डालते हैं DEG पर. क्या होता है DEG? ये DEG कफ सिरप में किस लिए डाला जाता है? और किन-किन सिरप में इसकी मात्रा अधिक पाई गई है?
DEG का काम क्या है?DEG यानी डाईएथिलीन ग्लाइकॉल. इसका इस्तेमाल पेंट, ब्रेक फ्लूइड और प्लास्टिक बनाने में किया जाता है. माने एक बात साफ है कि ये दवाओं में यूज नहीं किया जाता. कफ सिरप बनाने के लिए सबसे पहले उसका फॉर्मूला तय किया जाता है. कौन-सी दवा कितनी मात्रा में डाली जाएगी, ये तय होता है. सिरप का एक मीठा बेस भी तैयाार किया जाता है. जिससे कि वो पीने में कड़वी न लगे. इसके लिए पानी, चीनी, फ्लेवरिंग एजेंट और रंग मिलाए जाते हैं. ग्लिसरीन, प्रोपाइलीन ग्लाइकॉल या सॉरबिटॉल जैसी चीजें भी डाली जाती हैं. ये उस दवा के एक्टिव इनग्रीडिएंट को घुलने में मदद करती हैं. ये सिरप को गाढ़ापन और मिठास देती हैं. उसमें नमी भी बनाए रखती हैं. ये टॉक्सिक नहीं होतीं. यानी इनसे शरीर को नुकसान नहीं पहुंचता.
DEG कलरलेस (बिना किसी रंग का) और सिरप जैसा होता है. यही कारण है कि अगर टेस्टिंग में थोड़ा भी ढिलाई बरती गई, तो इसे पकड़ना मुश्किल है. अगर प्रोपाइलीन ग्लाइकॉल या ग्लिसरीन, फार्मास्युटिकल ग्रेड के बजाय इंडस्ट्रियल ग्रेड का है, तो उसमें डाईएथिलीन ग्लाइकॉल या एथिलीन ग्लाइकॉल (EG) की मिलावट हो सकती है. ये सस्ते होते हैं और इंसानों के इस्तेमाल के लिए सेफ नहीं हैं. कुछ दवा बनाने वाले अपनी लागत कम करने के लिए यहीं पर खेल करते हैं. वो अवैध रूप से इनका उपयोग प्रोपिलीन ग्लाइकॉल के विकल्प के रूप में करते हैं.
डाईएथिलीन ग्लाइकॉल या एथिलीन ग्लाइकॉल बहुत टॉक्सिक होते हैं. इनकी थोड़ी मात्रा भी शरीर को काफी नुकसान पहुंचाती है. ये दिखने और स्वाद में ग्लिसरीन जैसे होते हैं. इनका न तो कोई रंग होता है. न ही कोई गंध. ये स्वाद में हल्के मीठे होते हैं. जब DEG पेट में जाता है तो ये ऑक्जेलिक एसिड जैसे विषैले कंपाउंड में बदल जाता है. जिससे पेट में क्रिस्टल बनते हैं, जो किडनी की नलिकाओं में जमा हो जाते हैं. और यही किडनी फेल होने की वजह बनता है.
पहले भी हुईं ऐसी घटनाएंजानकारी के लिए बता दें कि साल 2022 में वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) ने गाम्बिया में 70 और उज्बेकिस्तान में 18 बच्चों की मौत के बाद एक चेतावनी जारी की थी. ये बच्चे हरियाणा और उत्तर प्रदेश की कंपनियों द्वारा बनाई गई सिरप पीने से मरे थे. इसके बाद सरकार ने निर्यात के लिए बनने वाले सभी सिरप के हर बैच की जांच के आदेश दिए थे.
2020 में जम्मू-कश्मीर के रामनगर में 17 बच्चे एक खांसी की सिरप पीने से मरे थे. ये सिरफ हिमाचल प्रदेश की एक कंपनी ने बनाई थी. इसमें 34.97% DEG पाया गया था. एक मामला 1998 में गुरुग्राम में सामने आया था. जहां कफ सिरप पीने से 33 बच्चों की मौत हो गई थी. इस सिरप में 17.5% DEG मिला था.
फिलहाल, कफ सिरप से हुई मौतों के बाद तमिलनाडु सरकार ने श्रीसन फार्मास्युटिकल कंपनी के खिलाफ कार्रवाई शुरू कर दी है. मध्यप्रदेश ने अपने फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन के तीन अधिकारियों को निलंबित कर दिया. कई राज्यों ने कोल्ड्रिफ सिरप के इस्तेमाल पर बैन लगा दिया है. छह राज्यों ने 19 मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स की जांच के आदेश दे दिए हैं.
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