ठेकेदार 6 साल का बच्चा उठा ले गया, 7 साल से बना रखा बंधुआ मजदूर, मां-बाप कर्ज नहीं चुका पाए थे
MP News: 50 हजार रुपये कर्ज की ये कीमत चुकानी पड़ी. माता-पिता ने कई बार अपने बेटे को छुड़ाने का प्रयास भी किया. लेकिन ठेकेदार हर बार बेटे को छोड़ने से मना कर देता था. अब सात साल बाद पुलिस ने बच्चे को आजाद तो करा लिया है, लेकिन अब भी वो अपने मां-बाप के पास नहीं पहुंच पाया है.

“बंधुआ मजदूरी प्रथा (उन्मूलन) अधिनियम, 1976 के लागू होने के साथ ही पूरे देश में बंधुआ मजदूरी प्रथा समाप्त हो गई.” श्रम एवं रोजगार मंत्रालय की आधिकारिक वेबसाइट पर तो ऐसा ही लिखा है. लेकिन मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) से जो मामला सामने आया है, उससे ऐसा प्रतीत होता है कि कर्ज के जाल में फंसे लोग और उनके परिवार के सदस्यों को बंधक बनाकर मजदूरी करवाने की मानसिकता अब भी खत्म नहीं हुई है. मध्य प्रदेश का ये मामला और भी ज्यादा भयावह इसलिए है, क्योंकि यहां एक छह साल के बच्चे को सात साल तक बंधक बनाकर रखा गया.
मामला बैतूल जिले के शाहपुर थाना क्षेत्र का है. दंपति गंजू उईके और सरिता उईके साल 2019 में हरदा जिले के झिरीखेड़ा गांव में मजदूरी कर रहे थे. पैसों की जरूरत पड़ी तो उन्होंने ठेकेदार रूपेश शर्मा से 50 हजार रुपये कर्ज ले लिया. आरोप है कि दंपति जब कर्ज नहीं चुका पाए, तो ठेकेदार ने उनके सात साल के बेटे को बंधक बना लिया और उससे मजदूरी करवाने लगा. ठेकेदार उस बच्चे से मवेशी चराने और घर के काम करवाता था.
इस बीच पीड़ित माता-पिता अपने बच्चे को छुड़ाने के लिए कई बार हरदा में उस ठेकेदार के पास गए. लेकिन उसने बच्चे को छोड़ने से इनकार दिया. हाल ही में ग्रामीणों के माध्यम से ये जानकारी जन साहस संस्था की सामाजिक कार्यकर्ता पल्लवी ठकराकर तक पहुंची. उन्होंने श्रम विभाग और कलेक्टर को इसकी जानकारी दी. पुलिस सक्रिय हुई और बच्चे को आजाद कराने के लिए निकल गई.
पुलिस की टीम जैसे ही आरोपी ठेकेदार के घर पहुंची, तो उसके भाई मुकेश शर्मा ने बच्चे को खेत में भेज दिया. ताकि वो बचाव दल को न दिखे. कार्रवाई के दौरान बचाव दल और ठेकेदार पक्ष के बीच में विवाद हुआ. लेकिन अंत में बच्चे को मुक्त करा लिया गया. हरदा पुलिस ने ठेकेदार रूपेश शर्मा के खिलाफ बाल श्रम अधिनियम और जुवेनाइल जस्टिस एक्ट की गंभीर धाराओं के तहत मामला दर्ज किया है.
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ठेकेदार से छूटने के बाद भी मां-बाप के पास नहीं पहुंचा बेटाबच्चे की मां सरिता को उम्मीद थी कि ठेकेदार से आजादी मिलने के बाद उनका बेटा उनके पास आ जाएगा. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. सरिता ने बताया,
बेटे को छोड़कर आना मेरी जिंदगी का सबसे बड़ा दर्द है. उम्मीद थी कि रेस्क्यू के बाद बेटा मेरे पास लौट आएगा, लेकिन दस्तावेजों की कमी से उसे बालगृह भेज दिया गया.
पुलिस की ओर से बच्चे को उसके माता-पिता को तभी सौंपा जाएगा, जब उनके पास उनके बेटे की पहचान से जुड़े दस्तावेज होंगे. लेकिन गंजू और सरिता के पास तो बच्चे का जन्म प्रमाण पत्र भी नहीं है. इसके कारण बच्चे को छिंदवाड़ा बालगृह में रखा गया है. हालांकि, जिला प्रशासन ने जरूरी दस्तावेज तैयार कराने की प्रक्रिया शुरू कर दी है.
(इनपुट: राजेश भाटिया, इंडिया टुडे ग्रुप)
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