लद्दाख हिंसा में मरने वालों में करगिल योद्धा भी शामिल, पिता बोले- 'पाकिस्तानी ना मार पाए, हमारी फोर्स ने मार दिया'
Ladakh के Tsewang Tharchin 1996 से 2017 तक लद्दाख स्काउट्स में हवलदार रहे और Kargil War में हिस्सा लिया था. उन्होंने द्रास के दह टॉप और तोलोलिंग सेक्टर में पाकिस्तानी घुसपैठियों से लोहा लिया था.

लद्दाख की राजधानी लेह से 8 किलोमीटर दूर साबू गांव के एक घर में गम का माहौल है. घर के बीचों-बीच कारगिल युद्ध लड़ चुके त्सेवांग थारचिन का शव रखा है, जिसके चारों ओर परिवार वाले बौद्ध मंत्र पढ़ रहे हैं. 24 सितंबर को लेह में हुए एक प्रदर्शन के दौरान गोली लगने से 46 साल के थारचिन समेत चार लोगों की मौत हुई थी.
प्रदर्शन में शामिल लोग लद्दाख को राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची के तहत विशेष अधिकार देने की मांग कर रहे थे. जब प्रदर्शन उग्र हुआ तो पुलिस ने फायरिंग कर दी, जिसमें थारचिन समेत चार लोग मारे गए.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, थारचिन 1996 से 2017 तक लद्दाख स्काउट्स में हवलदार रहे और कारगिल युद्ध में हिस्सा लिया था. वे तोलोलिंग सेक्टर में पाकिस्तानियों से लड़े थे. रिटायर होने के बाद वे लेह में एक कपड़ों की दुकान चलाने लगे.
उनके पिता स्तानजिन नामग्याल ने भी कारगिल युद्ध लड़ा है. वे 2002 में सेना में सूबेदार मेजर और मानद कैप्टन के पद से रिटायर हुए हैं. अपने बेटे की मौत पर उन्होंने कहा,
"मेरा बेटा देशभक्त था. पाकिस्तानी मार ना सके, हमारी ही फोर्स ने मार दिया. क्या हमारे जैसे देशभक्तों के साथ ऐसा बर्ताव होना चाहिए?"
परिवार का आरोप है कि थारचिन के शरीर पर लाठी के निशान भी हैं, जिससे लगता है कि उन्हें गोली मारने से पहले पीटा गया था. परिवार ने थारचिन की मौत को 'हत्या' बताया है. थारचिन की पत्नी ने घटना की निष्पक्ष जांच की मांग की है. वे कहती हैं,
"फायरिंग का आदेश किसने दिया? किसने गोली मारी? रबर बुलेट या आंसू गैस से भीड़ को काबू क्यों नहीं किया गया? हम इसलिए हैरान हैं कि हमारे खुद के लोगों ने उन्हें मार दिया."
थारचिन के छोटे भाई एक इंजीनियर हैं. वे कहते हैं, “जब भी जंग होती है, हम लद्दाखी आगे बढ़कर सेना की मदद करते हैं. अब हमें ही देशद्रोही कहा जा रहा है.” उन्होंने कहा कि लद्दाखियों की जायज मांगों पर सरकार की बेपरवाही ही उनके भाई की मौत का कारण बनी है. वे कहते हैं,
"लोग क्या मांग रहे हैं? अपनी जमीन और अर्थव्यवस्था पर अधिकार? खुद प्रशासन करने का अधिकार, अपनी अनूठी संस्कृति को बचाए रखने का अधिकार. लेकिन आप इसका जवाब हम पर गोलियां चलाकर और हमारी सबसे मुखर आवाज सोनम वांगचुक को जेल में डालकर कैसे देंगे?"
त्सेवांग थारचिन के पिता कहते हैं, "मेरा बेटा लद्दाख के लिए शहीद हुआ है. उम्मीद है सरकार हमारी आवाज सुनेगी." उन्होंने कहा कि भारतीय सेना में शामिल होना हमारे खून में है और इस घटना के बावजूद हमारे बच्चे आर्मी जॉइन करेंगे.
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