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पहली पत्नी की इजाजत के बिना दूसरी शादी रजिस्टर नहीं करा सकते मुस्लिम पुरुष: केरल हाई कोर्ट

Kerala High court ने कहा कि दूसरी शादी का रजिस्ट्रेशन कराने से पहले शख्स को अपनी पहली पत्नी को नोटिस भेजना होगा और उसकी सहमति लेनी होगी. बशर्ते वह अभी भी उसकी पत्नी हो.

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Kerala High Court said Muslim men cannot register second marriage without first wife permission
हाई कोर्ट ने मुस्लिम शख्स और उसकी दूसरी पत्नी की याचिका खारिज कर दी. (Photo: ITG/File)
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सचिन कुमार पांडे
5 नवंबर 2025 (Published: 04:47 PM IST)
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'पहली पत्नी को बताए बिना और उसकी बात सुने बिना मुस्लिम व्यक्ति दूसरी शादी का रजिस्ट्रेशन नहीं करा सकते'. यह कहना है केरल हाई कोर्ट का. हाई कोर्ट ने कहा कि दूसरी शादी का रजिस्ट्रेशन कराने से पहले शख्स को अपनी पहली पत्नी को नोटिस भेजना होगा और उसकी सहमति लेनी होगी. बशर्ते वह अभी भी उसकी पत्नी हो. और अगर पहली पत्नी इस पर आपत्ति दर्ज कराती है तो रजिस्ट्रार को दूसरी शादी की वैधता की पुष्टि करने के लिए सिविल कोर्ट में मामले को भेजना होगा. हाई कोर्ट ने इसके लिए केरल विवाह पंजीकरण (सामान्य) नियम, 2008 का हवाला दिया.

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक पीवी कुन्हीकृष्णन ने कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ एक पुरुष को कई शादियां करने की इजाजत देता है. लेकिन इससे किसी के समानता और निष्पक्ष सुनवाई के संवैधानिक अधिकार को नहीं छीना जा सकता. कोर्ट ने कहा,

जब कोई पुरुष शादी का रजिस्ट्रेशन कराना चाहता है तो उसे संवैधानिक आदेशों का सम्मान करना चाहिए. 2008 के नियमों के अनुसार, मुस्लिम पुरुष अपनी पहली पत्नी को सूचित किए बिना, जिसके साथ उसकी शादी अभी भी वैध है, दूसरी शादी के लिए रजिस्ट्रेशन नहीं करा सकता. यदि कोई पति अपनी पहली पत्नी का ध्यान नहीं रख रहा है, जीवन यापन के लिए उसे जरूरी खर्च नहीं दे रहा है या फिर उस पर अत्याचार कर रहा है और बाद में व्यक्तिगत कानून का उपयोग करते हुए दूसरी शादी कर रहा है, तो पहली पत्नी को सुनवाई का मौका देना, उसकी बहुत मदद करेगा.

जस्टिस पीवी कुन्हीकृष्णन ने आगे कहा,

लैंगिक समानता (Gender Equality) हर नागरिक का संवैधानिक अधिकार है. पुरुष, महिलाओं से श्रेष्ठ नहीं हैं. लैंगिक समानता केवल महिलाओं का नहीं बल्कि एक मानवीय मामला है. पवित्र कुरान और हदीस भी शादियों में न्याय, निष्पक्षता और पारदर्शिता के सिद्धांतों की वकालत करते हैं. इसलिए, मेरा यह मानना है कि यदि कोई मुस्लिम पुरुष नियम 2008 के अनुसार अपनी दूसरी शादी का रजिस्ट्रेशन कराना चाहता है और अगर उसकी पहली शादी अस्तित्व में है और पहली पत्नी जीवित है, तो रजिस्ट्रेशन के लिए पहली पत्नी को सुनवाई का मौका दिया जाना चाहिए. हालांकि, यदि पहली पत्नी को तलाक देने के बाद दूसरी शादी होती है, तो पहली पत्नी को नोटिस देने का कोई सवाल ही नहीं उठता.

क्या है मामला?

हाई कोर्ट एक मुस्लिम शख्स और उसकी दूसरी पत्नी की रिट याचिका पर सुनवाई कर रहा था. केरल के कासरगोड ज़िले की त्रिक्कारिपुर ग्राम पंचायत ने शख्स की दूसरी शादी का रजिस्ट्रेशन करने से इनकार कर दिया था. इसके खिलाफ उसने दूसरी पत्नी के साथ मिलकर कोर्ट में याचिका दाखिल की थी. उसने स्वीकार किया था कि उसके पहली बीवी से भी दो बच्चे हैं. शख्स ने दावा किया कि पहली पत्नी की सहमति से ही उसने 2017 में दूसरी शादी की थी. उसने कहा कि दूसरी पत्नी और उससे हुए बच्चों का संपत्ति में दावा सुरक्षित करने के लिए उसने ग्राम पंचायत से दूसरी शादी के रजिस्ट्रेशन की मांग की थी.

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शख्स का कहना था कि वह मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत चार पत्नियां रख सकता है. इसलिए, रजिस्ट्रार दूसरी शादी को रजिस्टर करने के लिए बाध्य है. इस पर कोर्ट ने कहा कि कुरान की भावना और उसका उद्देश्य, एक पत्नी का ही है. एक से अधिक पत्नियों की व्यवस्था अपवाद है, जो तभी मान्य होती है, जब पति सभी पत्नियों के साथ न्याय कर सके.

कोर्ट ने कहा कि हालांकि, कुरान में दूसरी शादी के लिए पहली पत्नी की सहमति की स्पष्ट रूप से आवश्यकता नहीं है. फिर भी, दूसरी शादी के रजिस्ट्रेशन से पहले उसकी सहमति लेना या कम से कम उसे सूचित करना, न्याय और पारदर्शिता के मूल्यों के अनुरूप है. अंत में कोर्ट ने शख्स और उसकी दूसरी पत्नी की रिट याचिका खारिज कर दी. कोर्ट ने दलील दी कि शख्स ने अपनी पहली पत्नी को मामले में पक्षकार नहीं बनाया. हालांकि, कोर्ट ने रजिस्ट्रेशन के लिए फिर से आवेदन करने की अनुमति दे दी. और निर्देश दिया कि अगर वे ऐसा करते हैं तो पहली पत्नी को नोटिस जारी किया जाए, और उसकी सहमति ली जाए.

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