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'700 रुपये की कॉफी, 100 का पानी... ', मल्टीप्लेक्स में महंगी चीजों पर SC ने जमकर सुनाया

Supreme Court on Multiplex food Prices: सुप्रीम कोर्ट के मल्टीप्लेक्स में महंगी चीजों पर सवाल उठाने के बाद मुकुल रोहतगी ने कोर्ट से पूछा कि ताज होटल कॉफी के लिए 1000 रुपये लेता है, क्या आप इसे भी तय कर सकते हैं?

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Supreme Court shows concern on multiplex food and drink prices said people will stop coming
सुप्रीम कोर्ट ने मल्टीप्लेक्स में खाने-पीने की चीजों की ऊंची कीमतों पर चिंता जताई. (Photo: ITG/File)
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सचिन कुमार पांडे
5 नवंबर 2025 (Updated: 5 नवंबर 2025, 12:55 PM IST)
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सुप्रीम कोर्ट में सिनेमा हॉल और मल्टीप्लेक्स में महंगे खाने-पीने को लेकर जमकर बहस हुई. कोर्ट ने यहां तक कहा कि अगर इसी तरह दाम बढ़ते रहे तो लोग यहां आना छोड़ देंगे और सिनेमा हॉल खाली हो जाएंगे. सुप्रीम कोर्ट फिल्म के टिकटों की कीमत से जुड़े एक मामले की सुनवाई कर रहा था. यह याचिका मल्टीप्लेक्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया और अन्य ने दायर की थी.

लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने मल्टीप्लेक्स एसोसिएशन से कहा कि आप पानी की बोतल के लिए 100 रुपये और कॉफी के लिए 700 रुपये लेते हैं. इस पर एसोसिएशन के वकील मुकुल रोहतगी ने कहा,

ताज होटल कॉफी के लिए 1000 रुपये लेता है, क्या आप इसे भी तय कर सकते हैं? यह व्यक्तिगत पसंद का मामला है.

जवाब में जस्टिस विक्रम नाथ ने कहा कि हां यह रेट भी तय होने चाहिए. मुकुल रोहतगी ने इसे फिर व्यक्तिगत पसंद का मामला बताया. इस पर जस्टिस नाथ ने कहा,

सिनेमा हॉल पहले से ही कमजोर हो रहे हैं. इसलिए लोगों के आने और आनंद लेने के लिए इसे और ज़्यादा किफायती बनाया जाना चाहिए, वरना सिनेमा हॉल खाली हो जाएंगे.

मुकुल रोहतगी ने इस पर दलील देते हुए कहा,

इन्हें खाली ही रहने दीजिए. यह सिर्फ़ मल्टीप्लेक्स के लिए है. आप (दर्शक) सामान्य सिनेमा हॉल में जा सकते हैं. आप सिर्फ़ यहीं क्यों आना चाहते हैं?

इस पर जस्टिस नाथ ने कहा कि कोई सामान्य सिनेमा हॉल बचा ही नहीं है. कोर्ट ने कहा कि वह हाई कोर्ट के डिवीजन बेंच के फैसले से सहमत हैं कि टिकट की अधिकतम सीमा 200 रुपये होनी चाहिए. मुकुल रोहतगी ने इसके जवाब में कहा कि डिवीजन बेंच द्वारा लगाई गई शर्तें व्यावहारिक नहीं हैं. उन्होंने कैश पेमेंट करने वालों की पहचान की डिटेल लेने के निर्देश पर सवाल उठाया. मुकुल रोहतगी ने कहा कि बैंक और टिकट खरीदने वालों की पहचान पर नजर रखना संभव नहीं है, क्योंकि ज़्यादातर टिकट ‘बुक माई शो’ जैसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से बुक की जाती हैं. उन्होंने हाई कोर्ट के निर्देशों को अव्यावहारिक बताते हुए कहा कि टिकट खरीदने के लिए कौन पहचान पत्र लेकर जाता है?

इस पर कर्नाटक सरकार के वकील ने दलील दी कि डिवीजन बेंच ने केवल एक अंतरिम व्यवस्था की है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यदि अंत में राज्य यह केस जीतता है तो लोगों को उनका अतिरिक्त पैसा वापस मिल जाए. राज्य के वकील ने कहा,

यदि माननीय जज आज 1000 रुपये की टिकट खरीद रहे हैं और कल राज्य यह केस जीत जाता है तो माननीय जज को 800 रुपये वापस मिलेंगे. डिवीजन बेंच ने बस इतना ही आदेश दिया है.

वहीं एक अन्य याचिकाकर्ता के वकील ने मामले में दलील दी कि राज्य के पास फिल्मों की टिकट की कीमत तय करने का कोई वैधानिक अधिकार नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने सभी दलीलें सुनने के बाद कर्नाटक सरकार और अन्य पक्षों को नोटिस जारी किया. साथ ही कोर्ट ने डिवीजन बेंच की शर्तों वाले आदेश पर रोक लगा दी. मामले पर अगली सुनवाई अब 25 नवंबर को होगी.

क्या है मामला?

पूरा मामला कर्नाटक सरकार के उस फैसले से जुड़ा हुआ है, जिसमें उसने मल्टीप्लेक्स में फिल्मों के टिकट की कीमत अधिकतम 200 रुपये तय की थी. कर्नाटक सरकार के फैसले के खिलाफ मल्टीप्लेक्स एसोसिएशन और प्रोडक्शन हाउसेज ने पहले कर्नाटक हाई कोर्ट का रुख किया था. हाई कोर्ट की सिंगल बेंच ने राज्य सरकार के फैसल पर स्टे लगा दिया था. इसके बाद याचिकाकर्ताओं ने डिवीजन बेंच में अपील की थी.

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डिवीजन बेंच ने भी सरकार के फैसले पर स्टे को बरकरार रखा था. साथ ही मल्टीप्लेक्सों को निर्देश दिए थे कि वह हर टिकट की रसीद रखें, जिसका ऑडिट किया जा सके. साथ ही टिकटों की ऑनलाइन/ऑफलाइन बिक्री की जानकारी रखने, कैश पेमेंट पर ID का रिकॉर्ड मेंटेन रखने और हर महीने CA से वेरिफाईड रिपोर्ट जमा करने के निर्देश भी दिए गए थे. कोर्ट ने ऐसा इसलिए किया कि अगर सरकार यह केस जीते तो ग्राहकों को उनके पैसे रिफंड किए जा सकें. इन शर्तों के खिलाफ मल्टीप्लेक्स एसोसिएशन ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी.

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