The Lallantop
Advertisement
  • Home
  • India
  • Karnataka High court said POCSO act is Gender neutral

यौन शोषण सिर्फ पुरुष करता है? HC ने POCSO एक्ट पर सब साफ कर दिया

कर्नाटक हाई कोर्ट ने कहा है कि पॉक्सो एक्ट जेंडर न्यूट्रल है. यानी अपराध लड़के के साथ हो या लड़की के साथ. दोनों ही केस में इस एक्ट के तहत कार्रवाई की जा सकती है.

Advertisement
Karnataka High court on pocso act
कर्नाटक हाई कोर्ट ने पॉक्सो एक्ट को जेंडर न्यूट्रल बताया है (India Today)
pic
राघवेंद्र शुक्ला
19 अगस्त 2025 (Updated: 19 अगस्त 2025, 11:30 PM IST)
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

‘पॉक्सो एक्ट (Pocso Act) ‘जेंडर न्यूट्रल’ है. यानी, अगर किसी बच्चे के साथ कोई महिला यौन शोषण करती है तो उस पर भी इस कानून के तहत कार्रवाई की जाएगी. यह कानून लड़का और लड़की दोनों के लिए बराबर है.' ये कहते हुए कर्नाटक हाई कोर्ट ने पॉक्सो एक्ट के तहत यौन उत्पीड़न की आरोपी एक महिला के खिलाफ दर्ज FIR रद्द करने से इनकार कर दिया. 48 साल की एक महिला आर्ट टीचर पर एक 13 साल के लड़के के साथ बार-बार यौन शोषण का आरोप है. टीचर ने हाई कोर्ट से पॉक्सो एक्ट के तहत अपने ऊपर दर्ज FIR रद्द करने की मांग की थी.

इंडिया टुडे से जुड़ीं अनीशा माथुर की रिपोर्ट के मुताबिक, इस मांग को खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा कि POCSO एक्ट जेंडर के फर्क को नहीं मानता. अपराधी महिला हो या पुरुष, इससे फर्क नहीं पड़ता है. इसमें अहम ये है कि शोषण बच्चे पर हुआ है. कोर्ट ने आगे कहा कि POCSO में ‘Person’ शब्द सिर्फ पुरुष के लिए नहीं है. सेक्शन 3 और 5 में बताए अपराध किसी भी जेंडर के अपराधी द्वारा किए जाने पर अपराध ही माने जाएंगे. बशर्ते अपराध किसी बच्चे के साथ हुआ हो.

जस्टिस नागप्रसन्ना की पीठ ने महिला और बाल विकास मंत्रालय की 'Study on Child Abuse: India 2007' नाम की रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि NCRB के आंकड़े कहते हैं कि लड़कियों के मुकाबले लड़कों के साथ यौन शोषण की घटनाएं ज्यादा दर्ज होती हैं. इस रिपोर्ट के मुताबिक, बच्चों में यौन शोषण के मामलों में 54.4 फीसदी पीड़ित लड़के थे और 45.6 प्रतिशत लड़कियां थीं. 

कोर्ट ने कहा कि यौन हिंसा किसी एक जेंडर तक सीमित नहीं है.

आरोपी महिला के सारे तर्क खारिज

दलील-1ः आरोपी महिला के वकील ने तर्क दिया कि IPC के तहत रेप कानून की तरह पॉक्सो अधिनियम भी केवल पुरुषों को ही यौन उत्पीड़न का अपराधी मानता है. उन्होंने ये भी कहा कि कानून की कई धाराओं में अपराधी के लिए ‘He’ शब्द लिखा है, इसलिए महिला पर बच्चे के यौन उत्पीड़न का आरोप नहीं लग सकता. 

कोर्ट ने इस तर्क को खारिज कर दिया और कहा कि आईपीसी या बीएनएस के तहत रेप की परिभाषा पॉक्सो के तहत यौन शोषण के परिभाषा से अलग है. कोर्ट ने कहा, 

पॉक्सो एक्ट के सेक्शन 3(a), 3(b), 3(c) और 3(d) में लिखा गया ‘He’ शब्द सिर्फ पुरुष तक सीमित नहीं माना जा सकता. ये बहुत जरूरी है समझना कि इन धाराओं में Penetrative sexual assault का दायरा बहुत व्यापक है. इसमें किसी भी वस्तु या बॉडी पार्ट को Insert करना, Penetration के लिए बच्चे के बॉडी पार्ट को छेड़ना या मुंह का इस्तेमाल करना शामिल होता है. ऐसे में ये कहना तर्कसंगत नहीं होगा कि इन अपराधों का मतलब सिर्फ ‘Penis के Penetration’ से है.

दलील-2ः आरोपी महिला की ओर से एक और दलील थी कि बच्चे को साइकोलॉजिकल ट्रॉमा की वजह से ‘इरेक्शन’ नहीं हो सकता. इस पर कोर्ट ने कहा कि ये लॉजिक भी गलत है. तमाम साइंटिफिक स्टडी बताती हैं कि डर और दबाव की स्थिति में भी ऐसी प्रतिक्रिया हो सकती है. 

दलील-3ः महिला के वकील ने दलील दी कि Intercourse में महिला Passive होती है और सिर्फ पुरुष Active होता है. कोर्ट ने इस दलील को भी अतार्किक बता दिया और कहा, 

ये बहुत पुरानी सोच है. आज का कानून पीड़ितों की असली तकलीफों को ध्यान में रखता है. ऐसे रूढ़िवादी सोच-विचार को जांच पर हावी नहीं होने देता.

दलील-4ः आरोपी पक्ष ने एक और तर्क दिया कि 13 साल का बच्चा यौन रूप से सक्षम नहीं होता. और फिर इस केस में एफआईआर भी देर से दर्ज कराई गई. 

कोर्ट ने इन दोनों दलीलों को भी खारिज कर दिया और केस को ट्रायल कोर्ट वापस भेज दिया ताकि सबूतों की जांच करके महिला आरोपी के खिलाफ मुकदमा चले.

वीडियो: हरियाणा के भिवानी में 19 साल की मनीषा का मर्डर, लड़कों पर उतरे लोग

Advertisement