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कांग्रेस की याचिका ख़ारिज की, डॉ. कफील को बेल दी... जस्टिस यशवंत वर्मा की पूरी कहानी

Delhi High Court के जस्टिस यशवंत वर्मा (Justice Yashwant Varma) के घर में भारी मात्रा में कैश मिलने के बाद उनकी मुश्किलें बढ़ गई हैं. इस मामले में जांच शुरू की गई है, और सुप्रीम कोर्ट उनके तबादले पर विचार कर रहा है. जानिए जस्टिस यशवंत वर्मा और उनके कुछ खास फैसलों के बारे में.

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Justice Yashwant Varma
जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट ने जांच शुरू की है. (India Today)
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मौ. जिशान
21 मार्च 2025 (Published: 11:42 PM IST)
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दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा अपने घर में मिले कैश की वजह से चर्चा में हैं. उनके घर में आग लगने के बाद भारी मात्रा में कैश बरामद हुआ था. इस घटना के बाद दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस ने उनके खिलाफ आंतरिक जांच प्रक्रिया शुरू कर दी है. इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम उनका तबादला करने के बारे में सोच रहा है. जस्टिस वर्मा एक वकील से हाई कोर्ट के जज की कुर्सी तक पहुंचे हैं. उन्होंने दिल्ली हाई कोर्ट का जज रहते कई अहम फैसले दिए हैं. फिलहाल, कैश मिलने की वजह से उनकी मुश्किलें बढ़ गई हैं. आइए जस्टिस यशवंत वर्मा की पूरी कहानी जानते हैं.

जस्टिस यशवंत वर्मा का जन्म 6 जनवरी 1969 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में हुआ था. उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी के हंसराज कॉलेज से बी.कॉम (ऑनर्स) किया है. इसके बाद उन्होंने 1992 में मध्य प्रदेश की रीवा यूनिवर्सिटी से कानून की डिग्री हासिल की. इसी साल से उन्होंने वकील के तौर पर रजिस्ट्रेशन कराया. उनके लीगल करियर की शुरुआत इलाहाबाद हाई कोर्ट से हुई. यहां वे ज्यादातर सिविल मैटर से जुड़े मामले देखते थे, जिनमें संवैधानिक, औद्योगिक विवाद, टैक्सेशन, पर्यावरण और कॉर्पोरेट मामले शामिल हैं.

कानून के क्षेत्र में नॉलेज और एक्सपीरियंस ने उन्हें एक काबिल वकील बनाया, जिसकी तस्दीक 2006 में उनकी इलाहाबाद हाई कोर्ट में स्पेशल काउंसिल के तौर पर नियुक्ति है. 2012 में उन्हें उत्तर प्रदेश राज्य का चीफ स्टैंडिंग काउंसिल बनाया गया, और 2013 में उन्हें कोर्ट से सीनियर वकील के तौर पर मान्यता मिली.

जज के तौर पर जस्टिस वर्मा का सफर इलाहाबाद हाई कोर्ट से ही शुरू हुआ. 13 अक्टूबर 2014 को उन्हें इलाहाबाद हाई कोर्ट में एडिशनल जज बनाया गया. इसके बाद 1 फरवरी 2016 को परमानेंट जज के तौर पर उनका प्रोमोशन हुआ.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, इलाहाबाद हाई कोर्ट में जज रहते हुए 2018 में जस्टिस वर्मा ने डॉ. कफील खान को जमानत दी थी. डॉ. कफील पर उत्तर प्रदेश सरकार ने मेडिकल लापरवाही का आरोप लगाया था. दरअसल, 2017 में गोरखपुर के बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में ऑक्सीजन खत्म होने की वजह से 63 बच्चों और 18 वयस्कों की मौत हो गई थी. उनपर आरोप लगा कि उन्होंने अस्पताल में अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई. इस मामले में डॉ. कफील लगभग सात महीने तक जेल में रहे थे.

11 अक्टूबर 2021 को जस्टिस वर्मा का दिल्ली हाई कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया गया. यहां वे दूसरे सबसे सीनियर जज हैं. दिल्ली हाई कोर्ट में जस्टिस वर्मा कम से कम 11 कमेटी का हिस्सा रहे हैं. इनमें प्रशासनिक से लेकर जनरल सुपरविजन, फाइनेंस और बजट जैसी कमेटी शामिल हैं. इसके अलावा आकस्मिक खर्च की मंजूरी और 5 लाख रुपये से ज्यादा के नुकसान को बट्टे खाते में डालने के लिए पैनल शामिल रहे.

जस्टिस वर्मा दिल्ली इंटरनेशनल ऑर्बिटरेशन सेंटर की ऑर्बिटरेशन कमेटी और दिल्ली हाई कोर्ट लीगल सर्विसेज कमेटी के भी अध्यक्ष हैं. जस्टिस वर्मा उन तीन जजों में शामिल थे जो दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस मनमोहन की अध्यक्षता वाली स्टैंडिंग कमेटी का हिस्सा थे. इस कमेटी ने पिछले साल दिल्ली हाई कोर्ट में नामित सीनियर वकीलों को सम्मानित करने का फैसला किया था.

दिल्ली हाई कोर्ट में जस्टिस यशवंत वर्मा के अहम फैसले

2022 में जस्टिस वर्मा ने फैसला दिया कि किसी व्यक्ति को आर्म्स एक्ट, 1959 के तहत दो से ज्यादा आर्म्स रखने की इजाजत नहीं है, भले ही वो एक राइफल क्लब का सदस्य हो. उन्होंने कहा कि अगर किसी व्यक्ति को ‘किसी भी संख्या में आर्म्स’ रखने की इजाजत दी जाती है, तो इससे 'बेतुके परिणाम' सामने आएंगे, जो इन व्यक्तियों को हथियार डीलरों और राइफल एसोसिएशन के बराबर कर देगा.

2023 में जस्टिस वर्मा ने गोल्ड इंपोर्ट पर अहम फैसला सुनाया. उन्होंने सोने के इंपोर्ट को कस्टम्स एक्ट के तहत 'प्रतिबंधित वस्तु' करार दिया. उन्होंने जोर दिया कि कस्टम्स एक्ट में 'प्रतिबंध (Prohibition)' शब्द में वे चीजें भी शामिल हैं, जो इस एक्ट के तहत प्रतिबंधित हैं या रेगुलेट होती हैं.

इसी साल जस्टिस वर्मा ने एक डिवीजन बेंच की अध्यक्षता करते हुए सिंगल बेंच के आदेश को बरकरार रखा, जिसमें कहा गया था कि निर्देशक सत्यजीत रे 1966 की फिल्म 'नायक' के मूल कॉपीराइट मालिक थे. आरडीबी एंड कंपनी (HUF) के 'कर्ता' आर डी बंसल ने एक अपील दायर की थी. इसमें कोर्ट से मांग की थी कि फिल्म ‘नायक’ की पटकथा को उपन्यास के रूप में प्रकाशित करने से पब्लिशिंग हाउस हार्पर कॉलिन्स को रोका जाए. कोर्ट ने फैसला सुनाया कि फिल्म 'स्वर्गीय श्री सत्यजीत रे ने लिखी और स्क्रिप्ट की गई थी, और इसलिए इसका कॉपीराइट केवल उक्त व्यक्ति (सत्यजीत रे) के पास ही होगा'.

दिल्ली हाई कोर्ट में जज रहते हुए जस्टिस वर्मा ने टैक्स से जुड़े कई बड़े मामलों पर सुनवाई की. 2024 में उन्होंने टैक्स रीअसेसमेंट कार्रवाई का विरोध करने वाली कांग्रेस की याचिका को खारिज कर दिया था. कांग्रेस पार्टी ने इनकम टैक्स अधिकारियों के उस रीअसेसमेंट को चुनौती दी थी, जिसमें लगभग 520 करोड़ रुपये को हिसाब में ना जोड़ने का दावा किया गया था. जस्टिस वर्मा ने माना कि इनकम टैक्स अधिकारियों के पास ठोस सबूत हैं और इस रीअसेसमेंट की पूरी जांच की जरूरत है.

फिलहाल, घर से कैश मिलने के मामले में दिल्ली हाई कोर्ट ने उनके खिलाफ जांच शुरू कर दी है. जब भी किसी हाई कोर्ट के किसी जज के खिलाफ कदाचार के आरोप लगते हैं, तो उस कोर्ट के चीफ जस्टिस को एक रिपोर्ट देनी होती है. अगर सुप्रीम कोर्ट के जज के खिलाफ आरोप लगते हैं, तो सीधे भारत के चीफ जस्टिस की पहल पर एक इन-हाउस कमेटी का गठन किया जाता है.

जस्टिस वर्मा की बात करें तो बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस आज सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को रिपोर्ट सौंपेंगे. इसके आधार पर आगे की कार्रवाई की जाएगी. जहां तक जस्टिस वर्मा के तबादले का सवाल है, सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने इस संबंध में दिल्ली हाई कोर्ट और इलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस से जवाब मांगा है. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट तबादले के लिए आगे का कदम उठाएगा.

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