पूर्व CJI चंद्रचूड़ के 'समाज सुधारक' वाले तंज पर जस्टिस मुरलीधर का जवाब आ गया
राम मंदिर को लेकर फैसला देने वाली सुप्रीम कोर्ट के जजों की पीठ में शामिल जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की ओडिशा के पूर्व मुख्य न्यायाधीश मुरलीधर ने आलोचना की थी.
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सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और ओडिशा हाई कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस एस मुरलीधर के बीच ‘खींचतान’ देखने को मिल रही है. राम मंदिर को लेकर फैसला देने वाली सुप्रीम कोर्ट के जजों की पीठ में शामिल रहे जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की जस्टिस मुरलीधर ने आलोचना की थी. फिर जस्टिस चंद्रचूड़ ने उस पर जवाब देते हुए जस्टिस मुरलीधर पर ‘तंज भरा कॉमेंट’ कर दिया. और अब पूर्व CJI की टिप्पणी पर जस्टिस मुरलीधर ने भी जवाब दे दिया है.
CJI चंद्रचूड़ को जस्टिस मुरलीधर का जवाबदरअसल, जस्टिस मुरलीधर ने राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर सवाल उठाया था. उन्होंने कहा था कि इसे ‘बिना लेखकों के नाम वाला’ यानी ऑथरलेस फैसला कहा गया, लेकिन खुद इसके एक लेखक (जस्टिस चंद्रचूड़) ने कहा कि उन्होंने ये फैसला ‘एक देवता से बातचीत’ के बाद लिखा था. उन्होंने आगे कहा,
इसमें कोई समस्या नहीं है. लेकिन ऐसा लगता है कि इस मध्यस्थता की प्रक्रिया को आगे न बढ़ाने का एक सोचा-समझा फैसला था जबकि मध्यस्थ सुप्रीम कोर्ट को ये बता रहे थे कि समझौता हो चुका है. लेकिन सभी पक्षों ने उस पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं. अगर जज खुद उन पक्षों के साथ बैठे होते तो शायद कोई बातचीत से हल निकल सकता था.
जस्टिस मुरलीधर ने आगे कहा था,
इतनी जल्दी क्या थी. थोड़ी देर और क्यों नहीं इंतजार कर सकते थे. इतना बड़ा मुद्दा था. इसे इतनी जल्दबाजी में निपटाना ठीक नहीं था.
बीते दिनों दी लल्लनटॉप के ‘गेस्ट इन द न्यूजरूम’ में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ आए थे. उनके सामने जस्टिस मुरलीधर के इस वक्तव्य को रखा गया और उनकी प्रतिक्रिया मांगी गई तो उन्होंने जस्टिस मुरलीधर से साफ असहमति जताई. उन्होंने कहा,
“जस्टिस मुरलीधर ने हाल ही में जो कहा था, उसे मैंने भी पढ़ा है. अब बात ये है कि कई जज अपनी सेवानिवृत्ति (रिटायरमेंट) के बाद समाजसुधारक बन जाते हैं. शायद वो (जस्टिस मुरलीधर) समाज सुधारक बनना चाहते हैं.”
जस्टिस चंद्रचूड़ ने आगे ये भी कहा,
"जस्टिस मुरलीधर ने जो भी कहा है, उससे मैं सहमत नहीं हूं. उनकी राय उनकी राय है. लेकिन उन्होंने ये जो भी कहा है, वो बिल्कुल ठीक नहीं है."
इसके कुछ समय बाद जस्टिस मुरलीधर ‘दी लल्लनटॉप’ के शो ‘किताबवाला’ में आए. तब उन्हें जस्टिस चंद्रचूड़ की प्रतिक्रिया बताई गई. ये सुनकर उन्होंने कहा कि वो इसे कॉम्पिलेंट के तौर पर लेते हैं. जस्टिस मुरलीधर कहते हैं,
जज के 3 सवालों पर सीजेआई का जवाब"जस्टिस चंद्रचूड़ इस बात से अच्छी तरह वाकिफ हैं कि जज बनने से पहले मैं समाज से जुड़ी जनहित याचिकाओं के मामले देखता था. एक वकील के तौर पर भी मैंने कोर्ट में इस तरह के ढेर सारे मुकदमे लड़े हैं. तो मुझे नहीं लगता कि उन्होंने ये नकारात्मक तौर पर कहा है. मैं जस्टिस चंद्रचूड़ को जानता हूं तो मैं इसे अपनी तारीफ ही मानूंगा."
जस्टिस मुरलीधर ने राम मंदिर के फैसले को लेकर कई और सवाल किए थे, जिसका जवाब पूर्व सीजेआई चंद्रचूड़ ने बारी-बारी से दिया.
ऑथरलेस जजमेंट पर उन्होंने कहा कि फैसला देने वाली पीठ के सभी जजों ने आपस में तय किया था कि निर्णय जो भी हो, वे एक आवाज में बोलेंगे. इस जजमेंट से हम समाज को संदेश देंगे कि फैसले से पहले जो भी विचार-विमर्श हुआ और जब अंतिम निर्णय का समय आया, तो हम सारे जज उसमें साथ हैं. हम सारे एकजुट हैं, इसलिए ये जजमेंट ‘ऑथरलेस’ रखा गया.
जस्टिस मुरलीधर के इस आरोप पर कि ‘जस्टिस रंजन गोगोई के रिटायरमेंट की वजह से जल्दबाजी में फैसला लिया गया’, पूर्व सीजेआई ने कहा कि इससे क्या फर्क पड़ता. रिटायरमेंट के बाद भी मीडिएशन चल सकता था. उन्होंने हैरानी जताते हुए उन्होंने कहा,
अरे. ये कोई जोक है. वो (जस्टिस मुरलीधर) खुद जज रहे हैं. उनका ये कहना ताज्जुब की बात है. कोई बाहर का व्यक्ति कहता तो ठीक है.
जस्टिस चंद्रचूड़ ने आगे कहा,
मध्यस्थता को लेकर सभी पक्षों को पूरा अवसर दिया गया था लेकिन जो मीडिएशन रिपोर्ट हमारे सामने आई थी, उसे पढ़कर हमें लगा कि इसमें कोई हल नहीं निकला है. हल ऐसा निकलना था, जो सभी पार्टी को स्वीकार हो. लेकिन रिपोर्ट में ऐसा कोई समाधान नहीं था. अब हम क्या कहते? कि ठीक है और 15-20 साल चलने दीजिए. लोग हंस पड़ेंगे. सुप्रीम कोर्ट है कि क्या है. आपने मैटर सुना है. बहस सुनी है. अब आपको निर्णय देना है. मीडिएशन हो जाता तो हम सेटलमेंट ले लेते. लेकिन मुझे ताज्जुब हुआ कि जस्टिस मुरलीधर जैसे व्यक्ति ऐसी बात भी कर सकते हैं. सोच सकते हैं.
हालांकि, जस्टिस मुरलीधर इससे सहमत नहीं दिखे. उन्होंने राम मंदिर के फैसले के एक हिस्से का जिक्र करते हुए दावा किया कि मार्च में बनी मध्यस्थता कमेटी अक्टूबर में सेटलमेंट के करीब पहुंच गई थी. ऐसे में कोर्ट को उन्हें थोड़ा और समय देना चाहिए था. जज ने बताया कि जजों ने अपने फैसले में साफ कहा था कि जजमेंट रिजर्व करने के दिन तक जो मध्यस्थता की रिपोर्ट उनके सामने लाई गई थी, वो फेल्योर रिपोर्ट नहीं थी बल्कि एक पार्टी ने इस पर सहमति भी दे दी थी और साइन भी कर दिया था.
जजमेंट का पैरा 32 पढ़ते हुए जस्टिस मुरलीधर ने कहा,
8 मार्च 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने खुद तीन मध्यस्थों का एक पैनल गठित किया था. मामले की सुनवाई के दौरान एक रिपोर्ट दी गई कि कुछ पार्टियां विवाद को निपटाना चाहती हैं. 18 सितंबर को कोर्ट ने कहा कि जबकि सुनवाई जारी रहेगी, अगर कोई पार्टी विवाद निपटाना चाहे तो उनके लिए दरवाजे खुले हैं कि वे मीडिएटर के पास जाएं और कोई सेटलमेंट अगर हो जाए तो कोर्ट के सामने रखें. इसमें अंतिम बहस अपीलों के समूह में 16 अक्टूबर 2019 को पूरा हुआ. हमें यह तारीख याद रखनी चाहिए. क्योंकि जजमेंट डिलीवर करने की तारीख 19 नवंबर 2019 थी.
जस्टिस मुरलीधर के मुताबिक, 'फाइनल रिपोर्ट ऑफ द कमेटी' में कहा गया कि वर्तमान विवाद पर कुछ पार्टियों ने सेटलमेंट कर लिया है. इस सेटलमेंट पर सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के चेयरमैन जुफर अहमद फारुकी ने साइन किया था. हालांकि, उस सेटलमेंट के तहत सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने विवादित भूमि पर अपने सभी अधिकार हित और दावे छोड़ने पर सहमति दी थी. यह कुछ निर्धारित शर्तों के पूरे होने पर निर्भर था. मीडिएशन पैनल से कोर्ट को प्राप्त सेटलमेंट एग्रीमेंट पर सभी पार्टियों ने न तो सहमति दी थी और न ही साइन किया था. इनके अनुसार, सिर्फ एक पार्टी ने सहमति दी थी और वास्तव में साइन भी किया.
उन्होंने आगे कहा,
मैं जो कहना चाह रहा था वह ये है कि यह मीडिएशन की असफलता नहीं थी और सामान्य सिविल विवादों में जब पार्टियां कोर्ट से कहती हैं कि हम यहां तक पहुंच चुके हैं और शायद सभी सहमत नहीं हैं तो आमतौर पर कोर्ट कहता है कि चलिए देखते हैं कि असहमति के बिंदु क्या हैं और देखते हैं कि हम उन्हें सुलझा सकते हैं या नहीं. मैं यह सुझाव नहीं दे रहा कि उन्हें ऐसा करना चाहिए था. मैंने बस इतना कहा कि यह संभावना तलाश नहीं की गई.
जस्टिस मुरलीधर आगे कहते हैं,
चूंकि 16 अक्टूबर को बहस बंद हो गई थी और केवल तीन महीने बीते थे तो मेरी चिंता यह थी कि ऐसे मामले में जब पार्टियां खुद कह रही हैं कि वे सेटलमेंट तक पहुंच चुकी हैं तो आपने उस संभावना को क्यों नहीं तलाशा? मैंने अपनी स्पीच में भी कहा कि इसका मतलब यह नहीं कि मामला सुलझ ही जाता. वह सुलझता नहीं लेकिन कोर्ट के तौर पर एक मौका दिया जा सकता था.
पूर्व सीजेआई के ‘केस लंबा खिंचने’ की दलील पर जस्टिस मुरलीधर ने कहा, ‘आप खुद कह रहे हैं कि यह इतने सालों से लंबा खिंचता आ रहा विवाद है और इसे आसानी से हल नहीं किया जा सकता क्योंकि यह आस्था और विश्वास से जुड़ा है. मैं ये सुझाव नहीं दे रहा था कि मीडिएशन 10 साल या 20 साल तक चलना चाहिए था. बिल्कुल नहीं.’
आगे उन्होंने कहा,
देवता से बातचीत कर लिया फैसला?मीडिएशन मार्च में शुरु हुआ था और अक्टूबर तक इतने पुराने 100 साल पुराने मामले में अगर इतनी प्रगति हो गई थी तो कोर्ट की थोड़ी और पहल से मुझे यकीन है कि वे सेटलमेंट के और करीब आ जाते. यही मेरा मानना है और यही मैंने अपनी स्पीच में भी कहा था. मैं इस पर गलत भी हो सकता हूं. लेकिन मेरी केवल यही टिप्पणी थी कि कोर्ट को उस संभावना को तलाशना चाहिए था.
'देवता से बातचीत के आरोप' पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा था कि कई बार सोशल मीडिया देखकर जो राय बनाई जाती है, वो गलत हो सकती है. ‘देवता से बातचीत’ की जो बात जस्टिस मुरलीधर कह रहे हैं, वो उन्होंने अपने गांव के लोगों से कही थी. पूर्व सीजेआई ने कहा कि वह अपने गांव गए थे. वहां लोगों ने उनसे पूछा कि जब वो कोर्ट में कोई फैसला देते हैं तो इतने द्वंद्व के बीच अपने मन का संतुलन कैसे रखते हैं. इसके जवाब में उन्होंने कहा कि इसके लिए वह रोज 3 बजे उठकर योगा करते हैं और एक घंटे पूजा करते हैं.
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा,
मैं देवता से प्रार्थना करता हूं कि मेरे हाथ से किसी पर अन्याय न हो. क्योंकि न्याय-अन्याय में बहुत महीन फर्क है. जब मैं पूजा करता हूं तो मेरी एक ही भावना होती है कि मेरे हाथ से किसी पर अन्याय न हो.
उन्होंने आगे कहा कि अयोध्या का जो जजमेंट आया है, वो रिटेन रिकॉर्ड में है. क्या वो आस्था के आधार पर लिखा है या एविडेंशियली रिकॉर्ड पर लिखा है. जस्टिस चंद्रचूड़ ने ये भी कह दिया कि वह बहुत भरोसे से कह सकते हैं कि जस्टिस मुरलीधर ने राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट को पढ़ा ही नहीं है.
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