25 दिसंबर को क्रिसमस मनाने वाले जावेद अख्तर की ये बात सुनकर बुरा ना मान जाएं!
ईश्वर के अस्तित्व वाली बहस के दौरान जावेद अख्तर ने क्रिसमस को लेकर एक दिलचस्प किस्सा सुनाया. उनका दावा है कि ये त्योहार पहले पेगन फेस्टिवल के नाम से जाना जाता था, जिस पर रोमन सम्राट कॉन्सटेंटाइन के समय ईसाईयों ने कब्जा कर लिया.

दुनिया में जितने भी धर्म हैं, सबके अपने त्योहार हैं. हिंदू होली-दिवाली मनाते हैं. क्रिश्चियन्स के क्रिसमस पर पूरी दुनिया जश्न मनाती है. ईद पर भी दुनिया भर में रौनक रहती है. ये उस समाज के उत्सव हैं, जहां भगवान या खुदा की अवधारणा (Concept) है. हर त्योहार से किसी धार्मिक चरित्र (भगवान या पैगंबर) की कहानी जुड़ी है, जो त्योहारों की नींव रखती है. यानी त्योहार धार्मिक संस्कृति से गहरे जुड़े होते हैं. अब सवाल उठता है कि उन लोगों के समाज में ऐसे उत्सवों या त्योहारों के क्या विकल्प हैं, जो किसी भगवान को नहीं मानते. खुद को नास्तिक कहने वाले जावेद अख्तर के सामने भी यही सवाल दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन क्लब में 'Does God Exist' बहस के दौरान सामने आया. 'दी लल्लनटॉप' के दीपक तैनगुरिया ने जावेद अख्तर से सवाल किया,
जैसे आस्तिकों (भगवान को मानने वालों) के पास अपने सोशल ‘गेट टुगेदर्स’ हैं. क्रिसमस आने वाला है. होली है. दिवाली है. ईद है. नास्तिक लोग क्या ऑफर कर रहे हैं? मतलब मैं इनकी ‘दुकान’ (नास्तिकता) पर आना चाहता हूं लेकिन उस तरफ अट्रैक्ट नहीं हो पा रहा हूं. उनके सोशल गेट टुगेदर्स क्या हैं.
इसका जवाब देने से पहले जावेद अख्तर ने क्रिसमस को लेकर एक दिलचस्प कहानी बताई. उन्होंने दावा किया कि ये इतिहास है और इतिहासकारों से पूछा भी कि वो बताएं कि ये सच है या नहीं? इस कहानी के जरिए जावेद अख्तर ने दावा किया कि त्योहार धर्मों के नहीं होते. त्योहार मौसम के, फसलों के और किसानों के होते थे. कई त्योहारों पर धार्मिक लोगों ने ‘कब्जा’ कर लिया. इस संदर्भ में उन्होंने क्रिसमस और जीसस क्राइस्ट की जन्मतिथि को लेकर एकदम अलग तरह की कहानी सुनाई. उन्होंने कहा,
कॉन्स्टेंटाइन नाम का एक रोमन राजा था. क्रिश्चियनिटी आने के 400 साल बाद उसने डिसाइड किया कि वह क्रिश्चियन हो जाएगा. उस जमाने में ऐसे ही होता था. राजा जो धर्म अपनाता था, जनता भी वही अपना लेती थी. उस समय वो बैंकरप्ट (दिवालिया) हो गया था. उसे मेडिटेरियन कोस्ट के अमीर व्यापारी ईसाईयों से पैसा चाहिए था तो वह क्रिश्चियन हो गया. उसने अपने वजीर से कहा कि अब हम लोग क्रिश्चियन हो जाते हैं. उसने कहा कि सर हो जाएंगे. कोई प्रॉब्लम नहीं है. लेकिन एक प्रॉब्लम ये है कि 17 दिसंबर से 25 दिसंबर तक जो ‘पेगन फेस्टिवल’ होता है वो बंद हो जाएगा. इसलिए कि हम क्रिश्चियन हो गए तो ये त्योहार तो होगा नहीं. ये बच्चों को बहुत बुरा लगेगा क्योंकि वो इस त्योहार को बहुत एंजॉय करते हैं. खासतौर से 25 दिसंबर को. इस पर राजा ने कहा कि ये तो सही कह रहे हो. उसने पूछा कि ये जीसस क्राइस्ट की पैदाइश कब थी? बोले, साहब वो तो अप्रैल में थी. राजा बोले, नहीं इसे 25 दिसंबर को करो. ये हकीकत है. लोग पेगन फेस्टिवल मनाते थे जो अब क्रिसमस हो गया है.
जावेद अख्तर ने आगे कहा कि ये जो सारे फेस्टिवल हैं, ये रिलीजन नहीं थे. ये सेकुलर त्यौहार थे जिन्हें रिलीजंस ने ले लिया. ये त्योहार मौसम के थे. फसलों के थे. किसानों के थे. उसको आपने लेकर रिलीजियस रंग दे दिया. ये कोई रिलीजन से थोड़ी आए हैं. नास्तिकों के त्योहार पर जवाब देते हुए जावेद अख्तर ने कहा,
आप हमें देखिए. हम तो ईद मनाते हैं. हम दिवाली मनाते हैं. हम होली मनाते हैं. हम क्रिसमस मनाते हैं. मुंबई की फिल्म इंडस्ट्री की सबसे बड़ी होली हमारे घर में होती है. सबसे बड़ी ईद हमारे घर में होती है. वो हमारा सोशल ‘गेट टुगेदर’ है.
बता दें कि 'दी लल्लनटॉप' के सभी चैनलों पर गीतकार जावेद अख्तर और मुफ्ती शमाइल नदवी के बीच क्या ईश्वर का अस्तित्व है विषय पर 20 दिसंबर 2025 को लाइव बहस हुई थी. इसके सूत्रधार दी लल्लनटॉप के संपादक सौरभ द्विवेदी थे. पूरी बहस आप यहां देख सकते हैंः
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