दिल्ली की सुरक्षा में तैनात होगा DRDO का स्वदेशी IADWS एयर डिफेंस, अमेरिकन NASAMS-II पर भरोसा नहीं!
भारत ने दिल्ली-एनसीआर की सुरक्षा के लिए स्वदेशी इंटीग्रेटेड एयर डिफेंस वेपन सिस्टम (IADWS) विकसित किया है. यह मल्टीलेयर्ड एयर डिफेंस सिस्टम QRSAM, VSHORADS और डायरेक्ट एनर्जी वेपन जैसी तकनीकों से लैस है. ये मिसाइल, ड्रोन और फाइटर जेट्स जैसे हवाई खतरों से राजधानी की रक्षा करेगा. अमेरिका के NASAMS-II सिस्टम की महंगी डील को खारिज कर भारत ने पूरी तरह देसी समाधान अपनाया है. IADWS का संचालन इंडियन एयरफोर्स करेगा और इसे 2035 तक पूरी तरह ऑपरेशनल होने की योजना है.

फरवरी 2022 में रूस-यूक्रेन की सीमा पर फौजों का ऐसा जमाव था कि लग रहा था जैसे बस एक पल में दुनिया बदल जाएगी. और बस वही हुआ- 24 फरवरी को जंग छिड़ गई और कीव में हवाई हमले के सायरन की आवाज़ ने शहर को झकझोर दिया. इंडिया में भी कुछ ऐसा ही माहौल था. पहलगाम हमले के बाद दिल्ली और कई बड़े शहरों में सायरन बजने लगे. हवाई खतरे की घंटी सुनते ही पता चलता है कि चीज़ें गंभीर हैं. कहते हैं, देश तब तक नहीं हारता जब तक उसकी राजधानी सुरक्षित है. दिल्ली के आसमान को दुश्मन की नजरों से बचाना इसलिए जरूरी है. और अब भारत ने ठान लिया है कि राजधानी की रक्षा के लिए देसी एयर डिफेंस सिस्टम लगाएगा. नाम है- इंटीग्रेटेड एयर डिफेंस वेपन सिस्टम, यानी IADWS.
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली-एनसीआर को मिसाइल, ड्रोन और फाइटर जेट्स जैसे हवाई खतरों से बचाने के लिए भारत अब एक मल्टीलेयर्ड, यानी कई परतों वाला एयर डिफेंस सिस्टम तैयार कर रहा है. सूत्र बताते हैं, अगर दुश्मन पहली परत पार भी कर गया, तो अगली उसे रोक देगी. इस सिस्टम में क्विक रिएक्शन सरफेस टू एयर मिसाइल, वेरी शॉर्ट रेंज एयर डिफेंस (VSHORDS) और दिल्ली-एनसीआर की सुरक्षा के लिए कई और देसी इक्विपमेंट शामिल होंगे. यह कदम ऐसे समय में उठाया जा रहा है जब पाकिस्तान ने मई 2025 में ऑपरेशन सिंदूर के दौरान दिल्ली को निशाना बनाने की कोशिश की थी. भले ही उस प्रयास में कामयाबी नहीं मिली, लेकिन सबक साफ़ था—दिल्ली की सुरक्षा किसी भी हालत में समझौते की नहीं.

IADWS तैनात करने की योजना भारत के देसी सिस्टम के लिए एक बड़ा बूस्ट साबित होगी क्योंकि इससे पहले भारत ने अमेरिकी नेशनल एडवांस्ड सरफेस टू एयर मिसाइल सिस्टम-II NASAMS-II को तैनात करने की योजना बनाई थी. दोनों देशों ने इसकी बिक्री को लेकर बातचीत भी शुरू की थी क्योंकि NASAMS-II अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन DC और वहां के वाइट हाउस की सुरक्षा करता है. लेकिन सूत्र बताते हैं कि भारत ने इस डील पर आगे नहीं बढ़ाया क्योंकि अमेरिकी NASAMS-II के लिए बहुत अधिक कीमत मांग रहे थे. अब IADWS नेशनल कैपिटल रीजन में जरूरी जगहों की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार होगा और इसका संचालन इंडियन एयरफोर्स के हाथ में होगा, जिससे राजधानी की रक्षा पूरी तरह देसी और भरोसेमंद तरीके से सुनिश्चित होगी.
क्या है IADWS?15 अगस्त 2025 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले से एलान किया था कि हवाई हमलों से देश की सुरक्षा के लिए भारत 'सुदर्शन चक्र' नाम का एक मल्टी-लेयर्ड सिस्टम डेवलप कर रहा है. एक इजरायल के आयरन डोम से मिलता-जुलता एक सिस्टम होगा जो किसी भी हवाई हमले जैसे ड्रोन्स, फाइटर जेट्स और क्रूज मिसाइल जैसे हवाई खतरों से भारत की रक्षा करेगा. इस सिस्टम के 2035 तक पूरी तरह से ऑपरेशनल हो जाने की उम्मीद है. लेकिन इसकी शुरुआत भारत ने 10 साल पहले, 2025 से कर दी है. IADWS इसी प्रणाली का एक हिस्सा है. IADWS के परीक्षण के बाद रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने एक्स पर पोस्ट करते हुए लिखा था,
मैं IADWS के सफल विकास के लिए DRDO, भारतीय सशस्त्र बलों और उद्योग जगत को बधाई देता हूं. इस अद्वितीय उड़ान परीक्षण ने हमारे देश की बहुस्तरीय एयर डिफेंस क्षमता को स्थापित किया है. साथ ही ये दुश्मन के हवाई खतरों के खिलाफ जरूरी ठिकानों की क्षेत्रीय सुरक्षा को और मजबूत करेगा.
IADWS कोई एक सिंगल सिस्टम नहीं बल्कि तीन अलग तरह के मिसाइल डिफेंस सिस्टम का कॉम्बिनेशन है. इसमें एक क्विक रिएक्शन सरफेस टू एयर मिसाइल (QRSAM), कम दूरी की मिसाइलें (VSHORADS) और एक उच्च शक्ति वाला लेजर वेपन सिस्टम (Direct Energy Weapon) शामिल है. तो समझते हैं क्या है इन तीनों सिस्टम्स की खासियत.
क्विक रिएक्शन सरफेस टू एयर मिसाइल - QRSAMजैसा कि इसके नाम से जाहिर है, एक क्विक रिएक्शन सिस्टम है. यानी खतरे की स्थिति में ये चंद मिनटों में एक्टिव होकर अपने टारगेट को नष्ट करने के लिए मिसाइल लॉन्च कर देता है. टारगेट किसी भी तरह का हवाई खतरा मसलन एयरक्राफ्ट, ड्रोन या मिसाइल हो सकती है. ये एक सरफेस टू एयर सिस्टम है. यानी इसमें मिसाइल जमीन से लॉन्च कर हवा में मार की जाती है. इस सिस्टम को DRDO ने डेवलप किया है. और इसकी मैन्युफैक्चरिंग भारत डायनैमिक्स लिमिटेड (BDL) और भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) साथ में मिल कर करते हैं.
इस सिस्टम को तैनात करने के लिए अशोक लेलैंड डिफेंस सिस्टम की एक गाड़ी पर माउंट किया या लगाया जाता है. इसका फायदा ये होता है कि जरूरत पड़ने पर इसे आसानी और तेजी से एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जा सकता है. दुश्मन द्वारा लॉन्च किए गए हवाई खतरों को डिटेक्ट करने के लिए इसमें एक्टिव ऐरे बैटरी सर्विलांस रडार (Array" (Active Array Battery Surveillance Radar) और एक्टिव ऐरे बैटरी मल्टीफंक्शन रडार (Active Array Battery Multifunction Radar) लगा है.
ये दोनों रडार मिलकर इस सिस्टम को पूरे 360 डिग्री के क्षेत्र में टारगेट ढूंढने में मदद करते हैं. टारगेट का पता चलते ही ये सिस्टम एक के बाद एक मिसाइल फायर कर उन्हें रोकने, मिलिट्री की भाषा में कहें तो इंगेज करने का काम करता है. इसके कुछ फीचर्स पर नजर डालें तो
- लंबाई: 14.31 फीट
- वजन: 270 किलोग्राम
- रेंज: 5 किलोमीटर से 30 किलोमीटर, 10 किलोमीटर की ऊंचाई तक
- क्षमता: एक साथ 6 टारगेट्स को इंगेज कर सकता है
- हर मौसम में ऑपरेट किया जा सकता है
इसके मिसाइल सिस्टम की एक खास बात इसमें लगा रेडियो फ़्रीक्वेंसी सीकर (RF Seeker) है. मिसाइल्स पारंपरिक तौर पर अपने टारगेट तक पहुंचने के लिए हीट सीकर का इस्तेमाल किया करती हैं. यानी मिसाइल का सबसे आगे का हिस्सा जिसे सीकर कहते हैं, वो गर्मी को डिटेक्ट करता है. आमतौर पर ये तरीका सफल हो जाता है, लेकिन नए और आधुनिक विमानों में हीट सिग्नेचर या यूं कहें कि उनसे निकलती हुई गर्मी को कम करने के उपाय किए गए हैं.
साथ ही मिसाइल्स को छकाने के लिए फ्लेयर्स का इस्तेमाल भी किया जाता है. लेकिन RF Seeker से लैस मिसाइल को भटकाया नहीं जा सकता. क्योंकि ये गर्मी नहीं बल्कि अपने टारगेट से निकल रही रेडियो तरंगों के जरिए उसका पीछा करती हैं. यही वजह है कि भारत के आकाश मिसाइल डिफेंस सिस्टम को भी इस सीकर से लैस किया गया है.

इस सिस्टम का इस्तेमाल बहुत ही कम दूरी के हवाई खतरों से निपटने के लिए किया जाता है. इससे पहले भी भारत इसके 3 वर्जन इस्तेमाल कर चुका है. IADWS का हिस्सा VSHORADS चौथी पीढ़ी का सिस्टम है. ये एक मैन पोर्टेबल एयर डिफेंस सिस्टम (MANPAD) है. यानी ये इतना हल्का है कि एक आदमी इसे अपने साथ लेकर चल सकता है. इंडियन आर्मी अपने फॉरवर्ड पोस्ट्स पर इनका इस्तेमाल भी करती है. वजह, पाकिस्तान अक्सर जासूसी करने के लिए अपने ड्रोन्स भेजता रहता है.
कुल मिलाकर देखें तो VSHORADS कोई एक मिसाइल नहीं बल्कि एक कैटेगरी है जिसमें शॉर्ट रेंज के एयर डिफेंस सिस्टम आते हैं. ऑपरेशन सिंदूर के ठीक दो दिन पहले 5 मई 2025 को खबर आई थी कि रक्षा मंत्रालय ने VSHORADS के नए वेरिएंट NG (Next Generation) लिए रिक्वेस्ट फोर प्रपोजल यानी RFP जारी की है. इस सिस्टम को DRDO की Research Centre Imarat और Centre for High Energy Systems and Sciences ने मिलकर डेवलप किया है. तो समझते हैं क्या खासियत है इस सिस्टम की.
VSHORADS एक पोर्टेबल एयर डिफेंस सिस्टम है जिसे DRDO की रिसर्च सेंटर इमरात ने बाकी लैब्स के साथ मिलकर डेवलप किया है. ये सिस्टम आर्मी, नेवी और एयरफोर्स; तीनों सेनाओं को हवाई खतरों से निपटने में मदद करता है. जनवरी 2025 में DRDO ने इस सिस्टम का सफल टेस्ट किया था. टेस्ट के दौरान इसकी मिसाइलों ने कम ऊंचाई पर उड़ान वाले ड्रोन्स की नकल करते हुए कम हीट सिग्नेचर वाले टारगेट्स को पूरी तरह से नष्ट कर दिया. इस सिस्टम की सबसे खास बात है इसकी सटीकता.
परीक्षण के दौरान टेलीमेट्री, इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल ट्रैकिंग जैसे सिस्टम्स से पता चला कि अपने टारगेट को चिन्हित करने से लेकर उसे मार गिराने तक इस स्वदेशी सिस्टम की सटीकता का कोई जवाब नहीं. IADWS में शामिल होने के बाद ये इंडियन एयर डिफेंस सिस्टम के सबसे भीतरी सर्कल में सुरक्षा प्रदान करेगा. ये एक शॉर्ट रेंज सिस्टम है इसलिए इसकी रेंज 300 मीटर से 6 किलोमीटर तक के बीच है.
उच्च शक्ति वाला लेजर वेपन सिस्टम - Direct Energy Weaponजैसा कि नाम से जाहिर है इस हथियार को हमला करने के लिए गोला या बारूद नहीं चाहिए. इसमें इस्तेमाल होती है ऊर्जा माने एनर्जी. एनर्जी ही इस हथियार का कारतूस है. इस हथियार में ऊर्जा को एक निश्चित दिशा में, नियंत्रित तरीके से प्रोजेक्ट किया जाता है. नतीजा ये होता है कि इसके रास्ते में आने वाली हर चीज, चाहे वो विमान हो, ड्रोन हो या कोई बख्तरबंद गाड़ी; ऊर्जा इतनी अधिक होती है कि इसके सामने वो चीज ध्वस्त हो जाती है. इस सिस्टम को DRDO की Research Centre Imarat और Centre for High Energy Systems and Sciences ने मिलकर डेवलप किया है. तो समझते हैं कि क्या है ये हथियार जो भारत ने बनाया है, और इसे बनाने के पीछे भारत का क्या मकसद है?
मिलिट्री की भाषा में किसी हमले के संदर्भ में दो शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है, एक काइनेटिक (Kinetic) एक्शन, दूसरा नॉन-काइनेटिक एक्शन. काइनेटिक एक्शन का मतलब ऐसे हमले से है जिसमें फायर किया हुआ कोई गोला, गोली या मिसाइल जैसा कुछ भी जाकर टारगेट को लगे और उसे नष्ट करे. लेकिन नॉन काइनेटिक एक्शन में बिना टारगेट को छुए, सिर्फ कुछ तरंगेंं भेज कर उसे नष्ट किया जा सकता है. डायरेक्ट एनर्जी वेपन भी एक नॉन-काइनेटिक एक्शन वाला हथियार है.
तो जैसा कि हमने बताया, इन हथियारों में ऊर्जा का इस्तेमाल किया जाता है. हथियार इस ऊर्जा को लेजर, इलेक्ट्रोमैग्नेटिक" तरंगों के रूप में बाहर छोड़ता है. ये तरंगें इतनी शक्तिशाली होती हैं कि अपने सामने आने वाली किसी भी चीज को निष्क्रिय कर सकती हैं. बिना बारूद का इस्तेमाल किए ये हथियार विमानों को या तो पूरी तरह निष्क्रिय कर सकता है, या काम करने लायक नहीं छोड़ता. भारत की डीआरडीओ ने जो हथियार बनाया है, वो 30 किलोवाट की ऊर्जा को लेजर के रूप में छोड़ता है.
इस ऊर्जा को ऐसे समझिए कि आपके 7-8 कमरों के घर में 3 किलोवाट का बिजली कनेक्शन होता है. ये हथियार उससे 10 गुना अधिक ऊर्जा एक साथ लेजर के रूप में छोड़ता है. 13 अप्रैल 2025 को DRDO ने आंध्र प्रदेश के कुरनूल में इसका सफल परीक्षण किया. इस मौके पर जानकारी देते हुए DRDO के चेयरमैन समीर वी कामत ने बताया था
यह तो बस इस सफर की शुरुआत है. इस लैब और DRDO की अन्य लैब्स ने उद्योग और शिक्षा जगत के साथ जो तालमेल बनाया है, मुझे पूरा विश्वास है कि हम जल्द ही अपनी मंजिल तक पहुंच जाएंगे.
चेयरमैन कामत ने बताया कि DRDO भविष्य में और अधिक ऊर्जा वाले माइक्रोवेव्स और इलेक्ट्रोमैग्नेटिक पल्स जैसी तकनीक पर भी काम कर रहा है. चेयरमैन कामत कहते हैं
हम कई ऐसी तकनीकों पर काम कर रहे हैं जो हमें स्टार वार्स मूवी जैसी क्षमता प्रदान करेंगी. आज आपने जो देखा वह स्टार वार्स की तकनीक का ही एक रूप था.
कैसे काम करता है?
ये पूरी हथियार प्रणाली टारगेट्स को निष्क्रिय या नष्ट करने के लिए अत्यधिक केंद्रित ऊर्जा छोड़ती है जो लेजर के रूप में होती है. चूंकि ये ऊर्जा केंद्रित होती है इसलिए इसे ‘डायरेक्टेड एनर्जी’ कहा जाता है. यही ऊर्जा जाकर टारगेट से टकराती है जिससे टारगेट या तो नष्ट हो जाता है, या काम करना बंद कर देता है. ये इस पर निर्भर करता है कि कितनी ऊर्जा को हथियार से एमिट किया गया (छोड़ा गया) है. कितनी ऊर्जा को एमिट करना है, इसका फैसला मौसम, टारगेट की दूरी और टारगेट के प्रकार को देख कर किया जाता है.

अप्रैल 2025 में हुए परीक्षण में DRDO ने इसे जमीन से टेस्ट किया था. इस वर्जन को DEW MK-II(A) नाम दिया गया. आने वाले समय में इसे समुद्री जहाजों और फाइटर विमानों में भी लगाया जा सकता है. टेस्ट में इस हथियार ने फिक्स विंग वाले ड्रोन्स और स्वार्म ड्रोन्स (झुंड में आने वाले ड्रोन्स) को न सिर्फ मार गिराया, बल्कि अपनी एनर्जी से कईयों के सर्विलांस सेंसर्स को भी बेकार कर दिया. इसके टेस्ट के साथ भारत उन चुनिंदा देशों के क्लब में शामिल हो गया जो इस तरह के 'स्टार वॉर्स' वाले हथियार इस्तेमाल कर रहे हैं. गौरतलब है कि 'स्टार वॉर्स' मूवी में इसी तरह का हथियार दिखाया गया था इसलिए इसे कई बार 'स्टार वॉर्स वेपन' भी कह दिया जाता है. कुल मिला कर देखें तो IADWS कोई एक सिस्टम नहीं, बल्कि ये कई सारे सिस्टम्स का कॉम्बिनेशन है.
IADWS को दिल्ली-NCR की सुरक्षा में तैनात करने के लिए डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन (DRDO) कई प्रोडक्शन एजेंसियों के साथ काम करेगा जो नेटवर्किंग और कमांड एंड कंट्रोल पर काम करेंगी. DRDO पहले ही क्विक रिएक्शन सरफेस टू एयर मिसाइल (QRSAM) और मीडियम रेंज सरफेस टू एयर मिसाइल (MRSAM) जैसे कई एयर डिफेंस सिस्टम सफलतापूर्वक डेवलप कर चुका है. साथ ही DRDO प्रोजेक्ट कुशा के तहत एक लॉन्ग रेंज सरफेस टू एयर मिसाइल डेवलप कर रहा है. इसके अलावा भारत S-400 एयर डिफेंस सिस्टम के अपने बचे हुए दो स्क्वाड्रन पाने के लिए भी काम कर रहा है. साथ ही भारत S-500 एयर डिफेंस सिस्टम के साथ और S-400 के लिए रूस के प्रपोजल पर भी विचार कर रहा है.
वीडियो: इजरायल की तर्ज पर होगा भारत का अपना आयरन डोम, नाम होगा 'सुदर्शन चक्र'

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