1971 से ऑपरेशन सिंदूर तक: क्यों रूस है भारत का सबसे भरोसेमंद यार
कई विशेषज्ञ अनुमान लगा रहे हैं कि President Putin की India Visit पर कई मुद्दों के अलावा रक्षा सौदों पर भी चर्चा संभव है. इसमें S-400 Surface to Air Missile Defence System और Sukhoi Su-57 पर बातचीत संभव है.

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन 4-5 दिसंबर, 2025 को भारत की यात्रा (President Putin visit to India) पर आ रहे हैं. कई विशेषज्ञ अनुमान लगा रहे हैं कि प्रेसिडेंट पुतिन की इस विजिट पर कई मुद्दों के अलावा रक्षा सौदों पर भी चर्चा संभव है. और भारत-रूस की दोस्ती (Indo-Russia Relations) की बात हो, और रक्षा सौदों का जिक्र न आए, ऐसा मुमकिन नहीं. मई 2025 में ऑपरेशन सिंदूर (Operation Sindoor) के दौरान रूस और उसके हथियारों ने जिस तरह से भारत की मदद की, उससे ये समझ आता है कि खुद एक युद्ध में उलझे होने के बावजूद रूस ने भारत का साथ दिया. चाहे मिसाइल्स रोकने के लिए S-400 जैसे एयर डिफेंस सिस्टम (S-400 Air Defence System) हों, सुखोई (Sukhoi Su-30MKI) जैसे शानदार फाइटर जेट्स हों ब्रह्मोस (Brahmos Missile) जैसी घातक मिसाइल. इन सभी में भारत-रूस पार्टनरशिप की झलक साफ दिखती है.
1971 से अब तक, हमेशा साथ है रूसनई दिल्ली में होने वाली मोदी-पुतिन मीटिंग में एक बार फिर भारत-रूस के मिलिट्री रिश्ते मजबूत होंगे. भारत रूस से S-400 सरफेस-टू-एयर मिसाइल सिस्टम के और बैच खरीदने पर विचार कर रहा है, क्योंकि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान ये हथियार बहुत असरदार साबित हुए थे. लेकिन ये पहली बार नहीं था जब रूस ने भारत का साथ दिया हो, या उसने भारत को हथियार दिए हों. भारत के बेड़े में 6 दशक तक सेवाएं देने वाला मिग-21 रूस (तत्कालीन सोवियत संघ) का ही विमान था. इसके अलावा भारत का एयरक्राफ्ट कैरियर INS विक्रमादित्य भी एक रूसी कैरियर है. जब रूस की जगह सोवियत यूनियन था, तब भी उसने भारत का साथ दिया था. 1971 की जंग में अमेरिका खुल कर पाकिस्तान के पक्ष में खड़ा था. भारत पर दबाव बनाने के लिए अमेरिकी नौसेना की 7th फ्लीट आई थी. इस अमेरिकी बेड़े ने भारत को बंगाल की खाड़ी में घेरने की योजना बनाई.
लेकिन तभी हिंद महासागर से होते हुए बंगाल की खाड़ी में एंट्री हुई सोवियत बेड़े की. सोवियत नेवी के अफसर एडमिरल व्लादिमीर क्रुगलेकॉव (Admiral Vladimir Kruglyakov) एक पूरे बेड़े को लेकर भारत की मदद को पहुंचे. इस बेड़े को 10th ऑपरेटिव बैटल ग्रुप कहा जाता था. इसमें तब न्यूक्लियर जहाज और सबमरीन शामिल थीं. इस बात को 5 दशक बीत गए लेकिन 2025 में जब ऑपरेशन सिंदूर शुरू हुआ, तब भी रूस ने भारत की मदद की. और ये दोस्ती सिर्फ युद्ध तक सीमित नहीं है. डिप्लोमेसी के मैदान पर संयुक्त राष्ट्र में भी रूस ने कई बार भारत का साथ दिया है
इस बात को 5 दशक बीत गए लेकिन 2025 में जब ऑपरेशन सिंदूर शुरू हुआ, तब भी रूस ने भारत की मदद की. रूस और भारत की दोस्ती पर नीति आयोग के सदस्य और जाने-माने मिसाइल साइंटिस्ट डॉ वीके सारस्वत ने एनडीटीवी से बात की है. डॉ सारस्वत कहते हैं,
भारत और रूस के बीच डिफेंस में सहयोग बहुत, बहुत पुराना है. मुझे आज भी 1970 के दशक के दिन याद हैं, जब इंडियन एयरफोर्स रूस से मिली SAM-2 मिसाइल इस्तेमाल करती थी. हमारे पास MiG-21, MiG-23, MiG-25, MiG-27 और MiG-29 जैसे रशियन एयरक्राफ्ट थे. टैंक, T-90 टैंक, ये सभी टेक्नोलॉजी भारत आ गई हैं और इंडियन डिफेंस प्रोग्राम को सपोर्ट किया है.
डॉ सारस्वत आगे कहते हैं,
यह ऐतिहासिक रिश्ता पिछले कुछ दशकों में बहुत तेजी से बदला है. जो बायर-सेलर के तौर पर शुरू हुआ था, वह एक मजबूत टेक्नोलॉजी पार्टनरशिप में बदल गया है. यानी पहले भारत रूस से खरीदता था, अब वो उसके साथ पार्टनरशिप में है. पिछले दो या तीन दशकों में, यह सहयोग सिर्फ खरीदने वाले देश से टेक्नोलॉजी सहयोग करने वाले देश बन गया है, और इसका नतीजा ब्रह्मोस मिसाइल का डेवलपमेंट और प्रोडक्शन है.
डॉ सारस्वत बताते हैं कि ब्रह्मोस का नाम ब्रह्मपुत्र और मॉस्को नदियों के नाम पर रखा गया है. ये भारत-रूस के तालमेल का एक शानदार उदाहरण है. ऑपरेशन सिंदूर के दौरान, इसकी भूमिका शानदार थी. डॉ सारस्वत जोर देकर कहते हैं कि दुश्मन के इलाके में टारगेट को हम जिस सटीकता से मार सके, वह ब्रह्मोस की सुपरसॉनिक क्रूज मिसाइल की खासियतों की वजह से था. इसका दुनिया में कोई मुकाबला नहीं है.
ब्रह्मोस अकेला नहीं, S-400 भी हैभारत में हाल ही में रूस से लिया गया S-400 एयर डिफेंस सिस्टम ऑपरेशन सिंदूर में गेम-चेंजर साबित हुआ. डॉ सारस्वत बताते हैं कि यह एक और सिस्टम था जिसका इस्तेमाल दुश्मन की तरफ से आने वाली मिसाइलों और ड्रोन का मुकाबला करने के लिए बड़े पैमाने पर किया गया था. S-400 बैटरी, एडवांस्ड रडार और इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर सिस्टम के साथ मिलकर, एक ऐसी ढाल बनाती थीं जिसे कोई नहीं भेद सकता था, जिससे दुश्मन के एयरक्राफ्ट भारतीय आसमान से दूर रहते थे. उन्होंने आगे कहा,
सिर्फ डिफेंस ही नहीं, अटैक मोड में भी साथ है रूसरडार और इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर (EW) सिस्टम्स समेत पूरी एयर डिफेंस बैटरी ने उनके (पाकिस्तानी) एयरक्राफ्ट्स को हमारी सीमाओं से काफी दूर रखा.
रूसी सिस्टम्स के अलावा भारत के बेड़े में मौजूद सुखोई Su-30MKI फाइटर जेट ने भी भारत को हमेशा बढ़त दिलाई. सुखोई फाइटर जेट्स, भारत की एयर पावर का मुख्य हिस्सा हैं. इन्हें एयरफोर्स की ‘बैकबोन’ यानी रीढ़ की हड्डी कहा जाता है. ये विमान रूस से लाइसेंस के तहत भारत में बने हैंं. डॉ सारस्वत कहते हैं कि जब भारत ने सीधा हमला किया, तो सुखोई ने जो भूमिका निभाई, वह बहुत अहम थी. बकौल डॉ सारस्वत, रूस से आए हथियारों में सुखोई सबसे अहम एयरक्राफ्ट में से एक है. और अच्छी बात ये है कि ये विमान अब भारत में बन रहे हैं.
मुश्किल समय में भी साथ रहे भारत-रूसजैसे-जैसे जियोपॉलिटिकल अनिश्चितताएं बढ़ रही हैं, एक भरोसेमंद पार्टनर के तौर पर रूस पर भारत का भरोसा पक्का बना हुआ है. और ये एक तरफा नहीं है. इस समय जब यूरोपीय देश और अमेरिका रूस के खिलाफ हैं, ऐसे में भी भारत ने रूस के हितों का ध्यान रखा है. डॉ. सारस्वत कहते हैं,
मुझे लगता है कि यह सबसे भरोसेमंद सहयोग है. इसने सच में बहुत अच्छा काम किया है. समय की कसौटी पर यह साबित हुआ है. इसलिए, मुझे लगता है कि हम इस सहयोग से बहुत खुश हैं और हम उम्मीद करते हैं कि यह और मजबूत होता जाएगा.
ऑपरेशन सिंदूर को न सिर्फ इसकी टैक्टिकल काबिलियत के लिए याद किया जाएगा, बल्कि दशकों से चली आ रही दोस्ती के सबूत के तौर पर भी याद किया जाएगा. मॉस्को नदी से लेकर ब्रह्मपुत्र तक, भारत और रूस के बीच मजबूत फ्यूल वाली मिसाइलों, रिएक्टरों को पावर देने और आसमान को सुरक्षित करने का रिश्ता बना हुआ है.
वीडियो: ऑपरेशन सिंदूर और भारत के S-400 खरीदने को लेकर रुसी राजदूत ने क्या कहा?


