Su-57 फाइटर जेट पर भारत की चुप्पी: रणनीति का हिस्सा या संकोच?
Russia ने Su-57 को Make In India के तहत भारत में ही बनाने का ऑफर दिया है. साथ ही रूस ने इस विमान का 'Source Code' भी ऑफर किया है. संभव है कि भारत इस विमान की 2 Squadron की सीधी खरीद करे और बाकी के 5 स्क्वाड्रन भारत में ही बनाए जाएं.

सितंबर 2025 में 6 दशक से अधिक समय इंडियन एयरफोर्स (Indian Air Force) में सेवा देते आए मिग-21 (Mig-21) विमानों को रिटायर कर दिया गया. इनके रिटायर होने के साथ ही इंडियन एयरफोर्स में अब 29 स्क्वाड्रन बचे हैं. एक स्क्वाड्रन में 16-18 विमान होते हैं. भारत की जरूरत और सीमाओं को देखते हुए 42 स्क्वाड्रन की संख्या स्वीकृत है. लेकिन भारत उस नंबर से काफी पीछे है. मिग विमानों की जगह भारत का स्वदेशी तेजस (LCA Tejas Mk1A) लेगा. लेकिन यहां गौर करने वाली बात ये है कि तेजस एक हल्का और छोटा विमान है. बड़े विमानों में देखें तो भारत के पास सुखोई Su-30MKI और रफाल (Rafale) हैं. अगर भारत को चुनौतियों का सामना बेहतर तरीके से करना है तो उसे जल्द से जल्द नए विमान लेने होंगे क्योंकि तेजस की डिलीवरी पूरी होने में समय लगेगा. और यहीं एंट्री होती है रूस के Sukhoi-Su57 की. खबरें हैं कि रूस ने भारत को इस विमान के लिए कई तरह के ऑफर दिए हैं. तो समझते हैं, क्या है इस विमान की खासियत और रूस ने भारत को क्या-क्या ऑफर किया है?

भारत में चल रहे एयरो इंडिया शो के दौरान इस रूसी विमान ने सभी को आकर्षित किया. रूस ने इस विमान को भारत को भी ऑफर किया है. साथ ही इसके जॉइंट प्रोडक्शन (साथ मिलकर बनाना) की बात भी सामने रखी है. इससे पहले इस विमान ने चीन में आयोजित Zhuhai एयर शो में अपना जलवा दिखाया था. Su-57 एक 5वीं पीढ़ी का मल्टीरोल (कई तरह के मिशंस को अंजाम देने में सक्षम) फाइटर जेट जिसे यूनाइटेड एयरक्राफ्ट कॉर्पोरेशन ने सुखोई के साथ मिलकर बनाया है. एयर-कॉम्बैट (हवाई जंग) के अलावा इस विमान में एयर-टू-ग्राउंड (हवा से जमीन) टारगेट्स पर हमला करने की भी क्षमता है. साथ ही इसकी स्टेल्थ तकनीक इसे रडार को चकमा देने में मदद करती है.

मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो रूस ने इस विमान को भारत में ही बनाने का ऑफर दिया है. यहां भारत के लिए एक फायदा है क्योंकि नासिक में मौजूद हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स फैसिलिटी (HAL Nasik) में पहले से ही सुखोई के Su-30MKI बन रहे हैं. ऐसे में रूसी प्लेटफॉर्म (विमान बनाने के तरीके) की जानकारी को अलग से नहीं लेना होगा. साथ ही मेक इन इंडिया की वजह से इस विमान में भारतीय उपकरण लग सकेंगे. ये भी भारत के लिए एक पॉजिटिव चीज है. खबरें हैं कि भारत 2 स्क्वाड्रन बनी-बनाई हालत में रूस से खरीदेगा, जबकि, 5 स्क्वाड्रन का निर्माण भारत में ही लाइसेंस के तहत किया जाएगा.
रूस ने भारत को Su-57 के साथ उसका सोर्स कोड ऑफर किया है जो अपने आप में यूनिक है. लेकिन ये होता क्या है? नाम से तो लगता है कि ये कोई कोड होगा जिससे विमान चलता है. लेकिन ये एक ऐसा कोड है जिसे विमान का दिमाग कहा जाता है. जब भारत ने फ्रांस की कंपनी दसॉ एविएशन से रफाल खरीदा, तब दसॉ ने भारत को सोर्स कोड नहीं दिया था. इस वजह से भारत रफाल में अपने मनचाहे हथियार नहीं लगा सका. आज भी भारत को अगर रफाल में अपनी जरूरत के अनुसार कोई बदलाव करना होता है तो इसके लिए उसकी निर्भरता फ्रांस पर है.
आधुनिक फाइटर जेट्स में सोर्स कोड सिर्फ प्रोग्रामिंग नहीं बल्कि उससे कहीं ज्यादा है. एक तरह से यह विमान का दिमाग है. सोर्स कोड ये तय करता है कि जेट कैसे उड़ता है और युद्ध में कैसे ढलता है. सबसे जरूरी बात कि विमान में किसी भी तरह का बदलाव बिना सोर्स कोड के नहीं हो सकता.
ऑपरेशन सिंदूर के बाद BVR , स्टेल्थ वॉरफेयर पर फोकसऑपरेशन सिंदूर में फाइटर जेट्स आमने-सामने लड़ने की बजाए दूर से एक दूसरे को लॉक कर उन पर हमले कर रहे थे. इसमें बियॉन्ड विजुअल रेंज मिसाइल (BVR Missile) का इस्तेमाल हुआ था. यानी अब दुश्मन का प्लेन नजर आए या न आए, अगर वो रडार पर दिख गया तो उसे 400-500 किलोमीटर से भी अधिक की दूरी से लॉक कर, उसपर हमला किया जा सकता है. भारत के बेड़े में मौजूद रफाल विमानों की BVR क्षमता अच्छी है. लेकिन सुखोई Su-57 बना ही BVR वॉरफेयर के लिए है. ऐसे में दूरी के मामले में इसकी मिसाइल्स रफाल से बेहतर हैं. यही वजह है कि भारत इस विमान को खरीदने पर विचार कर रहा है.
भारत ने इस ऑपरेशन को बखूबी अंजाम दिया. लेकिन डिफेंस एक ऐसा क्षेत्र है जहां हमेशा बेहतरी की गुंजाइश होती है. अगर ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत के पास रडार पर न दिखने वाले स्टेल्थ तकनीक के विमान होते, तो ये पाकिस्तान के लिए और भी विनाशकारी हो सकता था. Su-57 के स्टेल्थ की आलोचना तो होती है, क्योंकि ये रडार पर अमेरिका के F-35 और F-22 से थोड़ा सा ही सही, लेकिन उनसे बड़ा दिखता है. बावजूद इसके भारत के बॉर्डर एरिया में ऑपरेट करने के लिए एकदम मुफीद है. इसके हथियार इसके पंखों यानी विंग्स पर नहीं होते, बल्कि इसके निचले हिस्से में बने एक चैंबर में होते हैं. इस चैंबर को 'वेपन बे' कहा जाता है. दरअसल विमान के विंग्स पर लगे हथियार उसका रडार से छुपना मुश्किल करते हैं. ऐसे में हथियार अंदर होने से रडार पर दिखने की संभावना काफी हद तक कम हो जाती है. लेकिन इस विमान को खरीदने में एक ‘अमेरिकन पंगा’ भी है. क्या है वो, ये भी समझ लेते हैं.
दुनिया में कोई भी देश हो, अगर उस पर अमेरिका किसी तरह के प्रतिबंध लगाता है तो निश्चित तौर पर उसे कई सारी समस्याओं का सामना करना पड़ता है. ऐसा नहीं है कि Su-57 एक बिल्कुल ही औसत फाइटर जेट हो. कई देशों की सामरिक जरूरतों को ये बखूबी पूरा करता है. कई देश इसे खरीदना भी चाहते हैं पर उन्हें डर है कि इस कारण उन्हें अमेरिका द्वारा कई तरह के प्रतिबंधों का सामना करना पड़ सकता है. ठीक यही चिंता भारत की भी है. रूस भारत का एक अहम और पुराना डिफेंस पार्टनर है. और अमेरिका भी भारत को F-35 देना चाहता है ताकि वो भारत की सेना में अपना पहला फाइटर जेट शामिल करवा सके. अभी तक फाइटर श्रेणी में देखें तो भारत के पास कोई भी अमेरिकन जेट नहीं है. सारे जेट्स या तो फ्रेंच, या रूस के हैं.
भारत के अमेरिका से भी अच्छे संबंध हैं. अगर भारत रूस से Su-57 की डील करता है तो उसे अमेरिका की नाराजगी का सामना करना पड़ सकता है. साथ ही भविष्य में पाकिस्तान और खालिस्तानी आतंकवाद जैसे मुद्दों पर भारत को अमेरिका का साथ जरूरी है. वहीं UN में पाकिस्तान को काउंटर करने में भी अमेरिकन सहयोग का अहम रोल रहता है. दूसरी तरफ रूस ने हर युद्ध में भारत की सहायता की है, तो भारत अपने पुराने दोस्त को भी नाराज नहीं कर सकता. ऐसे में भारत के लिए फिलहाल असमंजस स्थिति बनी हुई है.
कुलजमा बात ये है कि भारत के पास तीन रास्ते हैं. या तो वो अमेरिका से F-35 खरीदे, या रूस से Su-57. एक तीसरा रास्ता भी है कि इन दोनों की जगह भारत अपने 5th जेनरेशन एयरक्राफ्ट प्रोजेक्ट AMCA में निवेश करे. अब भारत कौन सा रास्ता लेता है, ये आने वाले वक्त में पता चलेगा पर एक बात तो तय है कि डॉनल्ड ट्रंप के F-35 ऑफर (टैरिफ के साथ) , और रूस के Su-57 सोर्स कोड के दुर्लभ ऑफर ने भारत को ऊहापोह में जरूर डाल रखा है.
दूसरी ओर Su-57 को देखें तो इस जेट में चीनी उपकरणों का इस्तेमाल भी भारत के लिए चिंता का कारण बन सकता है. भारतीय वायुसेना के रिटायर्ड ग्रुप कैप्टन अजय अहलावत कहते हैं कि भारत को रूस से अच्छे संबंध रखने हैं. लेकिन साथ ही उन्होंने आगाह किया कि अगर चीन से जंग होगी तो मॉस्को यानी रूस शायद चीन के साथ खड़ा दिखाई दे. Su-57 पर ग्रुप कैप्टन अहलावत कहते हैं-
Su-57 में इस्तेमाल होने वाले अधिकतर इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट्स चीन से आते हैं. लिहाजा भारत को संयम से काम लेना चाहिए. भारत के लिए Su-57 या F-35 के बीच चॉइस करने से अच्छा है कि वो अपने स्वदेशी 5th जेनरेशन विमान AMCA पर फोकस करे. हालांकि इसमें टाइमलाइन एक बहुत बड़ा चैलेंज है.
इसी तरह इंडियन एयरफोर्स के पूर्व चीफ एयर चीफ मार्शल (रिटायर्ड) आरकेएस भदौरिया ने भी कहा है कि भारत को पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमानों का कोई अंतरिम आयात जैसा कुछ नहीं करना चाहिए. जब उनसे पूछा गया कि क्या भारत किसी दूसरे देश से कुछ जेट खरीदेगा? खासकर तब जब पाकिस्तान चीन से स्टेल्थ लड़ाकू विमान खरीद रहा है. इसपर पूर्व एयरफोर्स चीफ कहते हैं
मेरा जवाब है नहीं. अब, सरकार ने स्पष्ट रूप से AMCA पर अपना भरोसा जता रही है, और अब हमें AMCA को रफ्तार देने के लिए एक राष्ट्र के रूप में सब कुछ करने की आवश्यकता है.
भदौरिया कहते हैं कि पाकिस्तान को चीन से क्या मिलने वाला है. चाहे वह J-20 हो या J-35, उन्हें ये मिलने दें. इंडियन एयरफोर्स द्वारा इसका अध्ययन किया जाएगा. जरूरी बात यह है कि इस बीच की अंतरिम अवधि में आप इन खतरों से कैसे निपटते हैं.
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