The Lallantop
Advertisement
  • Home
  • India
  • FSSAI defines Camellia sinensis products can be called tea

आप 'चाय' समझकर जो पी रहे हैं, वो चाय है भी? FSSAI ने परिभाषा दे दी

FSSAI ने चाय की निश्चित परिभाषा दे दी है और कहा है कि जो चाय कैमेलिया साइनेंसिस नाम के पौधे से बनेगी, उसी को कानूनी तौर पर चाय कहा जाएगा. अन्य पौधों की पत्तियों, फूलों, जड़ों से बनने वाले काढ़े को चाय कहना गैरकानूनी होगा.

Advertisement
Tea definition by FSSAI
FSSAI ने तय कर दिया कि चाय किसको कहेंगे (india today)
pic
राघवेंद्र शुक्ला
26 दिसंबर 2025 (Published: 06:12 PM IST)
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

पानी में कोई भी पत्ती डालकर उबाल देने को चाय नहीं कह सकते. ये किसी चाय प्रेमी की ‘भावना’ नहीं है. बल्कि भारत की फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी यानी FSSAI का फरमान है. बाजार में इतनी तरह की चाय मिलने लगी है कि कोई भी कन्फ्यूज हो जाए. हर्बल टी, रोज टी, तुलसी टी. कैमोमाइल टी, हर्बल टी और न जाने क्या-क्या. लेकिन अब पानी में कोई भी ‘पत्ती-फूल’ उबालकर उसे चाय नहीं कहा जा सकेगा. FSSAI ने चाय की एक निश्चित परिभाषा तय करते हुए कहा है कि जो भी चाय कैमेलिया साइनेंसिस (Camellia sinensis) नाम के पौधे की पत्तियों से नहीं बनी होगी, उसे चाय नहीं माना जाएगा. 

क्या है कैमेलिया साइनेंसिस?

‘कैमेलिया साइनेंसिस’ वो पौधा है जिससे चाय बनती है. भारत में असम समेत अन्य कई राज्यों के छोटे-बड़े बागानों में इसकी खेती की जाती है. असमिया संस्कृति चाय के उत्पादन से गहराई से जुड़ी है. आपने भूपेन हजारिका का वो मशहूर गीत सुना होगा. ‘एक कली दो पत्तियां. नाजुक-नाजुक उंगलियां. तोड़ रही हैं बाग में. एक कली दो पत्तियां रतनपुर बागीचे में.’ 'मैं और मेरा साया' एल्बम का ये गीत है. इसका जिक्र इसलिए क्योंकि ये सिर्फ गाना नहीं है बल्कि चाय के उत्पादन की प्रक्रिया बताती कविता है.

रतनपुर समेत असम और देश के अन्य तमाम चाय बागानों में चाय की पत्तियां ऐसे ही तोड़ी जाती हैं. इस काम में ज्यादातर महिलाएं हिस्सा लेती हैं. प्रक्रिया ये होती है कि कैमेलिया साइनेंसिस नाम के पौधे से ‘दो कोमल पत्तियों और एक बंद कली’ को तोड़ा जाता है. चाय की पत्तियां चुनने की ये प्रथा बागान के मजदूरों द्वारा पीढ़ियों से अपनाई जाती रही है.

ग्रीन टी, ब्लैक टी में क्या अंतर है?

तोड़ी गई पत्तियों से ही नॉर्मल चाय और ग्रीन टी तैयार किए जाते हैं. यानी ग्रीन टी और ब्लैक टी दोनों ही Camellia sinensis पौधे की पत्तियों से बनती हैं, लेकिन इन्हें बनाने की प्रक्रिया अलग-अलग होती है और यही दोनों के स्वाद और असर में बड़ा फर्क लाता है. ब्लैक टी बनाने के लिए चाय की पत्तियों को जानबूझकर हवा के संपर्क में रखा जाता है ताकि उसका ऑक्सीडेशन हो सके. जब ये पत्तियां ठीक से सूख जाती हैं, तो वो चाय तैयार होती है जो आमतौर पर दुकानों और घरों में हम यूज करते हैं. वहीं, ग्रीन टी बनाने के लिए चाय की पत्तियों को ऑक्सीडेशन से बचाया जाता है. उन्हें हल्का सुखाकर तुरंत गर्म किया जाता है ताकि हरा रंग बरकरार रहे और ऑक्सीकरण न हो.

FSSAI ने क्या कहा?

FSSAI ने साफतौर पर कहा है कि कैमेलिया साइनेंसिस से बने चाय को ही कानूनी रूप से ‘चाय’ कहलाने का अधिकार है. संस्था ने कहा कि दूसरे पौधों की पत्तियों से बनने वाले ड्रिंक या काढ़े को चाय कहना भ्रामक है. ऐसा करना खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 के नियमों के तहत गलत ब्रांडिंग माना जाएगा. क्योंकि कैमेलिया साइनेंसिस के अलावा किसी और पौधों के फूलों, जड़ों, बीजों और पत्तियों से बने हर्बल काढ़े या ड्रिंक चाय की ‘वैधानिक परिभाषा’ को पूरा नहीं करते. ऐसे प्रोडक्ट को कानूनी रूप से बेचा जा सकता है, लेकिन उन्हें उचित रूप से वर्गीकृत किया जाना चाहिए. इन्हें इनकी सामग्री के हिसाब से कुछ और नाम दिया जा सकता है लेकिन इन्हें चाय के रूप में बेचा या ‘लेबल’ नहीं किया जा सकता.

FSSAI ने कारोबारियों को निर्देश दिया है कि वो इस नियम का सख्ती से पालन करें और कैमेलिया साइनेंसिस से न बनने वाले किसी भी प्रोडक्ट को ‘चाय’ कहने से परहेज करें.

FSSAI ने सभी राज्यों के अपने अधिकारियों से इस चाय की इस स्पष्ट ‘परिभाषा’ को सख्ती से लागू करने का निर्देश दिया है. अधिकारियों को इसका उल्लंघन करने वाले कारोबारियों के खिलाफ जरूरी कार्रवाई करने के लिए कहा गया है.

वीडियो: उदयपुर में महिला के साथ चलती कार में गैंगरेप करने वालों के साथ क्या हुआ?

Advertisement

Advertisement

()