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'रोक सको तो रोक लो.......', जब आतंकियों ने ब्लास्ट से पहले ईमेल भेजा था

Delhi Red Fort Blast: ये पहला मौका नहीं है जब दिल्ली में आतंकियों ने दहशत मचाई हो. 13 सितंबर 2008, कई न्यूज चैनलों को एक ईमेल मिला, जिसमें लिखा था ‘अल्लाह के नाम पर, इंडियन मुजाहिदीन एक बार फिर वार करता है... जो करना है कर लो, अगर रोक सकते हो तो रोक लो.’

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delhi red fort lal qila blast all incidents when delhi got attacked by terrorists
लाल किले पर ब्लास्ट के बाद इलाके को सील कर दिया गया है (PHOTO-India Today/PTI)
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हिमांशु तिवारी
11 नवंबर 2025 (Published: 10:18 AM IST)
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10 नवंबर को शाम के लगभग 7 बजे दिल्ली के लाल किले के सामने जोरदार धमाका हुआ. ये धमाका इतना जबरदस्त था कि आसपास के घरों और दुकानों के शीशे टूट गए. ये ब्लास्ट इतना तेज था कि एक किलोमीटर से भी अधिक दूरी तक लोगों ने धमाके की आवाज सुनी. घटना की जांच कर रहीं एजेंसियां पर एंगल पर जांच कर रही हैं. इस मामले में आतंकी एंगल को भी नकारा नहीं जा रहा. क्योंकि 10 नवंबर की सुबह, दिल्ली से कुछ ही घंटे की दूरी पर लगभग 2,900 किलोग्राम खतरनाक विस्फोटक मिला था. इससे पहले भी आतंकी दिल्ली को निशाना बना चुके हैं. तो जानते हैं कि ऐसे मौके कब-कब आए जब दिल्ली को आतंकियों ने धमाके से दहला दिया.

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लाल किले के ब्लास्ट के बाद जांच करती फोरेंसिक टीम (PHOTO-India Today/PTI)
अटैक नंबर 1: लाल किले पर हमला

दिसंबर 2000, अटल सरकार जम्मू-कश्मीर में शांति कायम करने की कोशिश कर रही थी, हुर्रियत के नेताओं और पाकिस्तान से बातचीत चल रही थी. 22 दिसंबर 2000 की रात तकरीबन 9 बजे दिल्ली के लाल किले पर दो आतंकवादियों ने हमला कर दिया. हमलावरों ने लाल किले के अंदर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी. इस फायरिंग में 7 राजपुताना राइफल्स के 2 जवान शहीद हो गए और एक नागरिक की मौत हो गई. बटालियन की क्विक रिएक्शन फोर्स ने जवाबी फायरिंग की लेकिन दोनों आतंकवादी किले की पिछली दीवार फांद कर भाग निकले.

लेकिन लाल किले में सेना के बटालियन क्यों मौजूद थी? असल में लाल किला सिर्फ एक ऐतिहासिक ईमारत नहीं है, वो अंग्रेजों के समय से एक सेना की छावनी भी रहा है. आज़ादी के बाद दिसंबर 2003 तक सेना की एक टुकड़ी लाल किले में मौजूद रहती थी. 2003 में जब लाल किले की देख रेख ASI को सौंपी गई तबसे लाल किले की सुरक्षा पैरामिलिट्री फोर्सेज के हाथों में है. हमले के बाद लश्कर-ए-तैयबा ने मीडिया के ज़रिए इसकी जिम्मेदारी ली. दूसरी तरफ दिल्ली पुलिस ने जांच शुरू की. 

President rejects mercy plea by 2000 Red Fort attack convict | Hindustan  Times
पुलिस कस्टडी में 2000 बम धमाके का मास्टरमाइंड (PHOTO-AajTak)

नवंबर 2022 में द इंडियन एक्सप्रेस में एक आर्टिकल छपा ‘Supreme Court affirms death penalty of LeT militant in Red Fort attack case. What happened on December 22, 2000?’ इसके मुताबिक लाल किले में छानबीन के दौरन पुलिस को एक पॉलीथीन बैग मिला, इस बैग में मिले सुराग ने आतंकवादियों को पकड़ने में मदद की. इस बैग में कुछ पैसे और एक कागज का टुकड़ा, जिसपर एक फोन नंबर लिखा था. नंबर को पुलिस ने सर्विलांस पर लगाया, और आतंकवादियों को धरधबोचा गया. 

घटना के चार दिन बाद, दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल ने मोहम्मद आरिफ उर्फ अशफाक और उसकी पत्नी रेहाना यूसुफ फारूकी को दिल्ली के जामिया नगर इलाके में गिरफ्तार किया. 20 फरवरी 2001 को पुलिस ने अशफाक और 21 अन्य आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की. 8 आरोपी फरार घोषित किए गए, जबकि 3 अलग-अलग मुठभेड़ों में मारे गए. 24 अक्टूबर 2005 को अदालत ने अशफाक और छह अन्य  लोगों के को दोषी करार दिया, जबकि चार को बरी कर दिया गया. 10 अगस्त 2011 को सुप्रीम कोर्ट ने अशफाक की फांसी की सजा बरकरार रखी और उसकी अपील खारिज कर दी. अदालत ने कहा कि यह हमला एक ‘सुनियोजित आतंकवादी साजिश’ थी, जिसका उद्देश्य भारत–पाकिस्तान शांति प्रयासों को अस्थिर करना था.

अटैक नंबर 2 : संसद भवन

13 दिसंबर 2001 की सुबह संसद में महिला आरक्षण बिल पर बहस होनी थी. शुक्रवार का दिन था. संसद भवन के बाहर लॉन में पत्रकार धूप सेंक रहे थे. सदन की कार्यवाही शुरू हुई लेकिन पांच मिनट में ही स्थगित कर दी गई. इसके चलते प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी उस दिन सदन में नहीं पहुंचे. लेकिन गृहमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी सहित करीब 400 सांसद अभी भी सदन के भीतर थे कि संसद परिसर में गोलियां चलने लगी. 

From the India Today archives (2001) | Parliament attack: The day India was  targeted - India Today
संसद हमले के दौरान मोर्चा संभाले हुए सुरक्षबल (PHOTO-India Today Archives)

एक सफेद ऐम्बैसडर कार में बैठकर 5 आतंकी संसद भवन के गेट तक पहुंच गए थे. आतंकवादी हड़बड़ी में थे. उनकी गाड़ी उप-राष्ट्रपति कृष्णकांत की गाड़ी से टकरा गई और उन्हें गाड़ी से उतरना पड़ा. मुहम्मद अफजल गुरू को ये जिम्मेदारी मिली थी कि वो TV पर देखकर आतंकियों को फोन पर आगाह करे कि कब कौन सा नेता पहुंच रहा है. लेकिन उस दिन दिल्ली की बिजली ने साथ दिया और ऐन मौके पर चली गई. अफजल अपने TV पर सदन की कार्रवाई देख नहीं पाया. जिसके चलते सांसद सदन कब से निकले, आतंकियों को इसकी ठीक-ठीक सूचना नहीं मिल पाई. सुरक्षा बलों की कार्यवाही से आतंकी हमला टल गया. सारे आतंकियों को मार गिराया गया. इस मुड़भेड़ में 8 सिक्योरिटी पर्सनल्स और 1 सिविलियन की जान गई. 3 दिन के अंदर सारी जांच हुई और पता चल गया कि आतंकी लश्कर-ए-तैय्यबा और जैश-ए-मोहम्मद के ट्रेन किए थे. ISI इस आतंक को स्पॉन्सर कर रही थी.

अटैक नंबर 3: 18 मिनट 3 धमाके

दीपावली से बस दो दिन पहले, 29 अक्टूबर 2005 की शाम दिल्ली के बाजारों की रौनक अपने चरम पर थी. हर तरफ दीयों, मिठाइयों, कपड़ों की खरीदारी चल रही थी. लेकिन 18 मिनट ये रौनक मातम में बदल गई. 18 मिनटों में दिल्ली में तीन सबसे भीड़भाड़ वाले इलाकों में बम ब्लास्ट हुए. इसमें करीब 70 लोगों की जान चली गई और 200 से ज्यादा लोग घायल हुए. पहला ब्लास्ट हुआ शाम को 5:38 पर नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के पास पहाड़गंज इलाके में हुआ. ये ब्लास्ट पहाड़गंज स्थित नेहरू मार्केट में एक ज्वेलरी स्टोर के पास हुआ था. इसके बाद पहाड़गंज से करीब 17 किलोमीटर दूर गोविंदपुरी से एक DTC बस गुजर रही थी. तभी बस के कंडक्टर बुद्ध प्रकाश ने सीट के नीचे एक बैग देखा, उसे शक हुआ और उसने बस के ड्राइवर कुलदीप सिंह को इसके बारे में बताया. 

2005 Delhi Bombings: Court Acquits Alleged Terrorist In 2005 Delhi Serial  Blasts Case
ब्लास्ट के बाद पूरे इलाके में अफरातरी मच गई थी (PHOTO-India Today)

ड्राइवर ने तुरंत बस रोक दी. उस समय बस में करीब 50 यात्री थे, उन्हें बाहर निकलने की कोशिश की गई. तभी 5 बज कर 52 मिनट पर बम फट गया. ड्राइवर कुलदीप खुद बुरी तरह घायल हो गए लेकिन उस शाम उनकी बहादुरी ने कई जाने बचा लीं. इसके सिर्फ चार मिनट बाद, 5 बज कर 56 मिनट पर सरोजनी नगर में सबसे भीषण विस्फोट हुआ. बम एक फलों और चाट के ठेले के पास रखे बैग में था. एक बच्चा बैग उठाकर पूछ रहा था कि यह किसका है, तभी उसमें रखा बम फैट गया. धमाके की तीव्रता इतनी तेज थी कि आसपास की कई इमारतों में दरारें पड़ गईं और सिलेंडर फटने से आग और बढ़ गई. 

क्या आंतकवादी पकड़े गए? द हिन्दू में 28 नवंबर 2021 में एक आर्टिकल छपा "3 Delhi blasts accused walk free". इसके मुताबिक दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने इस मामले में आरोपियों पर हत्या, साजिश रचने और UAPA का चार्ज लगाया. लेकिन सबूतों और गवाहों की आभाव में जस्टिस रीतेश सिंह ने तीन आरोपियों तारिक अहमद डार, मोहम्मद हुसैन फाजिली और मोहम्मद रफीक शाह को आरोपों से बरी कर दिया. हालांकि, जज ने तारिक अहमद डार को UAPA की धारा 38 और 39 के तहत दोषी ठहराया, लेकिन उसने जेल में पहले ही उतना समय काट लिया था जितनी सजा इन धाराओं में निर्धारित थी, इसलिए उसे भी रिहा कर दिया गया.

अटैक नंबर 4: 31 मिनट में 5 धमाके

13 सितंबर 2008, कई न्यूज चैनलों को एक ईमेल मिला, जिसमें लिखा था ‘अल्लाह के नाम पर, इंडियन मुजाहिदीन एक बार फिर वार करता है... जो करना है कर लो, अगर रोक सकते हो तो रोक लो.’ मेल आया, सुरक्षा एजेंसियां मुस्तैद हुई. लेकिन शाम के 6 बज कर 7 मिनट पर दिल्ली में करोल बाग की सबसे पॉपुलर बाजार “गफ्फार मार्केट” में बम ब्लास्ट हुआ. बम को एक कार के पास में रखा गया था. ब्लास्ट की वजह से कार के पास खड़े एक ऑटो रिक्शा का सिलिंडर भी फट गया, इस वजह से ब्लास्ट का इम्पैक्ट और बढ़ गया. एक तरफ ब्लास्ट में घायल हुए लोगों को पास के राम मनोहर लोहिया अस्पताल पहुंचाने की कोशिशें हो रही थीं. दूसरी तरफ चंद मिनटों के भीतर इस जगह से सिर्फ 4 किलोमीटर दूर कनॉट प्लेस में दो धमाके हुए. 

पहला धमाका बाराखंबा रोड पर हुआ, और उसके कुछ मिनट के बाद दूसरा धमाका सेंट्रल पार्क में. लेकिन कहानी यहां खत्म नहीं हुई. 6 बजकर के 38 मिनट के करीब ग्रेटर कैलाश की M ब्लॉक मार्केट में भी दो धमाके हुए. देश की राजधानी में एक शाम को 6 बजकर 7 मिनट से 6 बज के 38 मिनट के बीच, सिर्फ 31 मिनटों में, तीन अलग-अलग जगहों पर 5 धमाके हुए. इन सीरियल ब्लास्ट्स में 26 लोगों की जान चली गई और करीब 135 लोग घायल हुए. 

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2008 बम ब्लास्ट के बाद क्षतिग्रस्त कार (PHOTO-X)

लेकिन ऐसा भी नहीं था कि सुरक्षा एजेंसियां मुस्तैद नहीं थी. एजेंसियों ने समय रहते 4 बमों को डिफ्यूज भी किया. एक इंडिया गेट पर, दो कनॉट प्लेस एरिया में और एक पार्लियामेंट स्ट्रीट पर. इसके बावजूद आतंकवादी इस कायराना हमले को अंजाम देने में सफल रहे. दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने बताया कि इन ब्लास्ट्स के पीछे इंडियन मुजाहिदीन 23 लोग शामिल थे. 13 बम लगाने वाले (बॉम्बर्स) लोग थे, जबकि 10 अन्य ने लॉजिस्टिक सपोर्ट दिया. इनमें से कई लोगों की ट्रेनिंग पाकिस्तान में लश्कर-ए-तैयबा के कैंप्स में हुई थी. इस बम ब्लास्ट के 6 दिन बाद जामिया नगर के बाटला हाउस एनकाउंटर हुआ था.

इसमें दो आरोपी आतिफ अमीन, मोहम्मद साजिद मारे गए. मोहम्मद सैफ को गिरफ्तार किया गया, जबकि दो अन्य भागने में सफल रहे. अगले दिन पुलिस ने जिया-उर-रहमान, साकिब निसार और मोहम्मद शकील को जामिया नगर से ही गिरफ्तार किया. दस दिन बाद, यूपी पुलिस ने आरिफ कादिर को पकड़ा. चार्जशीट में कहा गया कि ये लोग उस साल जयपुर, अहमदाबाद और हैदराबाद में हुए सीरियल ब्लास्ट्स में भी शामिल थे. केस की सुनवाई अभी तक पूरी नहीं हुई है.

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