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रेप से गर्भवती हुई युवती का AIIMS ने नहीं किया अबॉर्शन, अब HC ने अहम आदेश दिया है

जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने 17 वर्षीय रेप पीड़िता की याचिका पर सुनवाई करते हुए ये आदेश दिया. पीड़िता मेडिकल जांच और अबॉर्शन के लिए एम्स गई थी. रिपोर्ट के मुताबिक उसके साथ पुलिस अधिकारी भी था, इसके बावजूद हॉस्पिटल ने अल्ट्रासाउंड करने से इनकार कर दिया क्योंकि वो अपने साथ कोई आई कार्ड लेकर नहीं गई थी.

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Delhi high court expressed dissatisfaction over AIIMS doctors behavior in the case
दिल्ली हाई कोर्ट ने केस में AIIMS डॉक्टरों के रवैये पर असंतुष्टि जताई है. (India Today)
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उपासना
2 जून 2025 (Published: 08:00 PM IST) कॉमेंट्स
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दिल्ली हाई कोर्ट ने रेप या यौन उत्पीड़न की शिकार महिलाओं के गर्भपात को लेकर अहम निर्देश दिया है. जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने कहा कि पीड़िता की मेडिकल जांच बिना देरी के होनी चाहिए. कोर्ट ने निर्देश में ये भी कहा कि पीड़िता के साथ रेप हुआ है या नहीं, इसकी पहचान करना जांच अधिकारी (IO) की जिम्मेदारी है. मेडिकल जांच के लिए पीड़िता को पेश करते समय सभी जरूर कागजात, केस फाइल अन्य जरूरी चीजें उपलब्ध कराना भी IO की जिम्मेदारी है.

बार एंड बेंच के मुताबिक जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने ऑर्डर में कहा, “अगर रेप या यौन उत्पीड़न की पीड़िता (बालिग या नाबालिग) जांच अधिकारी के साथ आई है, या न्यायालय या CWC ने टेस्ट कराने का निर्देश दिया है तो किसी भी तरह की मेडिकल जांच के लिए अस्पताल (विक्टिम से) जबरदस्ती ID प्रूफ नहीं मांग सकते. IO द्वारा किया गया आईडेंटिफिकेशन ID प्रूफ के लिए काफी होगा.” 

कोर्ट ने आगे कहा, “अगर पीड़िता 24 सप्ताह से ज्यादा की गर्भवती है तो कोर्ट के विशेष निर्देश का इंतजार किए बिना तत्काल प्रभाव से मेडिकल बोर्ड का गठन कर दिया जाए.”

ऑर्डर के मुताबिक, मेडिकल बोर्ड जल्द से जल्द मेडिकल टेस्ट कराकर उनकी रिपोर्ट अधिकारियों के सामने पेश करे. ताकि पीड़िता के अबॉर्शन के लिए अदालत बिना देरी के आदेश जारी कर सके. कोर्ट ने आगे ये भी कहा कि अबॉर्शन के बाद भ्रूण को ठीक से संरक्षित रखा जाए ताकि DNA या अन्य फॉरेंसिक जांच के लिए उसे भेजा जा सके.

जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने 17 वर्षीय रेप पीड़िता की याचिका पर सुनवाई करते हुए ये आदेश दिया. पीड़िता मेडिकल जांच और अबॉर्शन के लिए एम्स गई थी. रिपोर्ट के मुताबिक उसके साथ पुलिस अधिकारी भी था, इसके बावजूद हॉस्पिटल ने अल्ट्रासाउंड करने से इनकार कर दिया क्योंकि वो अपने साथ कोई आई कार्ड लेकर नहीं गई थी. मेडिकल बोर्ड ने उसकी जांच नहीं की. तर्क दिया गया कि चूंकि पीड़िता प्रेग्नेंसी की 'वैधानिक सीमा' को पार कर चुकी है इसलिए उसे कोर्ट से आदेश लाना पड़ेगा.

पीड़िता जब कोर्ट से आदेश लेकर आई तब जाकर मेडिकल बोर्ड ने उसका टेस्ट किया. इसमें पता चला कि पीड़िता 24 सप्ताह की ही प्रेग्नेंट है. बेंच ने एम्स के इस रवैये पर असंतुष्टि जाहिर की है. उसने आदेश का पालन सुनिश्चित कराने के लिए इसकी कॉपी अन्य संस्थानों को भी भेजी है. इनमें दिल्ली हाई कोर्ट लीगल सर्विसेज कमेटी, दिल्ली पुलिस कमिश्नर, दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार शामिल हैं.

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