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'सिर्फ साथ रहने से पति के घर पर पत्नी का मालिकाना हक नहीं हो जाता', दिल्ली HC ने ऐसा क्यों कहा?

Delhi High Court ने कहा कि पारिवारिक स्थिरता के लिए घरेलू और भावनात्मक योगदान बहुत जरूरी हैं. हालांकि, कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि अकेले ये योगदान कानूनी स्वामित्व को दरकिनार नहीं कर सकते.

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Delhi High Court News
दिल्ली हाई कोर्ट ने महिला की याचिका खारिज कर दी. (प्रतीकात्मक तस्वीर- Usplash.com)
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हरीश
12 सितंबर 2025 (Updated: 12 सितंबर 2025, 10:24 PM IST)
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दिल्ली हाई कोर्ट का कहना है कि पति के नाम पर खरीदे गए घर में रहने मात्र से ही पत्नी को मालिकाना हक नहीं मिल जाता. इसके लिए जरूरी है कि घर में पत्नी का कानूनी तौर पर 'सार्थक और ठोस योगदान' होना चाहिए. ऐसे ‘सबूतों’ के अभाव में मालिकाना हक पति के पास ही रहेगा. हालांकि, हाई कोर्ट ने परिवारों में पत्नियों के काम और योगदान को महत्व और मान्यता देने के लिए विधायिका को कानून बनाने की भी सलाह दी.

मामला एक कपल से जुड़ा है. उनकी शादी 2005 में हुई थी. दो बच्चों वाले इस जोड़े का सालों के मतभेद के बाद 2020 में तलाक हो गया. तलाक की अर्जी देते हुए महिला ने अपने पति के नाम पर खरीदे गए घर में बराबर का हिस्सा मांगा था. उन्होंने तर्क दिया कि घर चलाने और बच्चों की परवरिश में उनकी भूमिका से ही उनका पति संपत्ति हासिल कर पाया.

हिंदुस्तान टाइम्स की खबर के मुताबिक, अपनी याचिका में महिला ने तर्क दिया कि शादी के दौरान खरीदी गई किसी भी संपत्ति को ‘संयुक्त प्रयास’ का नतीजा माना जाना चाहिए. उन्हें हिस्सा देने से मना करना घोर अन्याय होगा, खासकर तब जब उन्होंने परिवार की देखभाल के लिए अपनी नौकरी छोड़ दी हो.

पारिवारिक अदालत ने जुलाई, 2025 में महिला की याचिका खारिज कर दी थी, जिसे उन्होंने हाई कोर्ट में चुनौती दी. गुरुवार, 11 सितंबर को जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर की दो जजों की बेंच मामले की सुनवाई कर रही थी.

बैंच ने अपने फैसले में माना कि शादी सिर्फ एक सामाजिक कॉन्ट्रैक्ट नहीं है बल्कि एक कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त साझेदारी है, जो दोनों पति-पत्नी की साझा कोशिशों पर आधारित है. हाई कोर्ट ने कहा कि पारिवारिक स्थिरता के लिए घरेलू और भावनात्मक योगदान बहुत जरूरी हैं. हालांकि, कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि अकेले ये योगदान कानूनी स्वामित्व को दरकिनार नहीं कर सकते. 

हाई कोर्ट ने आगे कहा,

एक वैध और लागू करने योग्य दावा, सार्थक और ठोस योगदान के प्रूफ पर आधारित होना चाहिए. ऐसे प्रूफ के अभाव में स्वामित्व उसी शख्स के पास होगा जिसके नाम पर संपत्ति दर्ज है, जो वैधानिक या न्यायसंगत अपवादों के अधीन है.

हालांकि, कोर्ट ने इस मौके पर घरेलू महिलाओं के योगदान को वैधानिक मान्यता न मिलने की बात को उजागर किया. कोर्ट ने कहा कि इसे अक्सर कानूनी कार्यवाहियों में छिपा दिया जाता है और कम करके आंका जाता है. कोर्ट ने केंद्र सरकार से आग्रह किया कि वो संपत्ति विवादों में अवैतनिक घरेलू काम की वैल्यू दर्शाने वाले कानून बनाने पर विचार करें.

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