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सेना का अधिकारी मंदिर-गुरुद्वारे जाने से मना करता था, नौकरी चली गई, HC का आदेश

Samuel Kamalesan अनिवार्य रेजिमेंटल परेड के दौरान मंदिर या गुरुद्वारे के अंदर नहीं जाना चाहते थे. उनका कहना था कि यह उनके ईसाई धर्म का सम्मान करने के साथ-साथ अपने सैनिकों की भावनाओं का भी सम्मान था. लेकिन सेना और हाई कोर्ट इस बात से सहमत नहीं हुए.

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Delhi High Court, Christian Army Officer, Army Officer
दिल्ली हाई कोर्ट ने ईसाई सेना अधिकारी की बर्खास्तगी को सही ठहराया. (PIB)
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मौ. जिशान
1 जून 2025 (Published: 08:05 PM IST) कॉमेंट्स
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दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) ने एक ईसाई सेना अधिकारी लेफ्टिनेंट सैमुअल कमलेसन (Christian Army Officer) की बर्खास्तगी को सही माना है. सेना ने उन्हें इसलिए निकाल दिया था क्योंकि उन्होंने अपने रेजिमेंट के मंदिर और गुरुद्वारे में धार्मिक अनुष्ठानों में शामिल होने से मना कर दिया था. लेफ्टिनेंट कमलेसन 2017 में सेना में आए थे. उन्हें सिख रेजीमेंट में शामिल किया गया था.

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस शालिंदर कौर की बेंच ने कहा कि अधिकारी को अपनी धार्मिक आस्था का पालन करने का अधिकार है, लेकिन जब वो अपनी टुकड़ी का कमांडिंग ऑफिसर होता है, तो उससे और भी जिम्मेदारियां जुड़ी होती हैं.

कोर्ट ने बताया कि भले ही सेना की टुकड़ियों के नाम धर्म या इलाके से जुड़े हों, लेकिन इससे सेना की धर्मनिरपेक्षता पर कोई असर नहीं पड़ता. कोर्ट ने कहा,

"हमारे सशस्त्र बलों में रेजिमेंटों के नाम ऐतिहासिक रूप से धर्म या क्षेत्र से जुड़े हुए हो सकते हैं, लेकिन इससे संस्थान या इन रेजिमेंटों में तैनात कर्मियों के धर्मनिरपेक्ष चरित्र को नुकसान नहीं पहुंचता. युद्ध के नारे भी होते हैं, जो किसी बाहरी व्यक्ति को धार्मिक प्रकृति के लग सकते हैं, हालांकि, वे पूरी तरह से जोश बढ़ाने का काम करते हैं, जिसका मकसद सैनिकों के बीच एकजुटता और एकता को बढ़ावा देना है."

कमलेसन अनिवार्य रेजिमेंटल परेड के दौरान मंदिर या गुरुद्वारे के अंदर नहीं जाना चाहते थे. उनका कहना था कि यह उनके ईसाई धर्म का सम्मान करने के साथ-साथ अपने सैनिकों की भावनाओं का भी सम्मान था. उन्होंने कहा कि उनके सैनिकों को इससे कोई आपत्ति नहीं थी और इससे उनके बीच का रिश्ता भी प्रभावित नहीं हुआ.

सेना ने बताया कि कमांडिंग ऑफिसर और कुछ ईसाई धर्मगुरुओं ने कहा था कि इसमें कोई समस्या नहीं है, लेकिन फिर भी उन्होंने अपनी बात नहीं बदली. सेना ने कहा कि उनका यह रवैया टुकड़ी की एकता और मनोबल को नुकसान पहुंचाता है. इसलिए उन्हें 2021 में नौकरी से निकाल दिया गया.

कोर्ट ने कहा कि यह मामला धार्मिक आजादी का नहीं बल्कि एक सीनियर अधिकारी के आदेश को मानने का है. आर्मी एक्ट का सेक्शन 41 कहता है कि सीनियर अधिकारी का आदेश ना मानना अपराध है. अदालत ने कहा कि अधिकारी के लिए जरूरी था कि वो टुकड़ी के मनोबल को बढ़ाने के लिए आदेश का पालन करे, लेकिन उसने अपनी धार्मिक आस्था को आदेश से ऊपर रखा, जो अनुशासन का उल्लंघन है.

कोर्ट ने सेना की बात से सहमति जताई कि ऐसे आदेश ना मानने से सेना की मूल भावना और अनुशासन पर बुरा असर पड़ता है. कोर्ट ने यह भी कहा कि सेना में अनुशासन की जरूरत आम नागरिकों से अलग होती है.

आखिर में कोर्ट ने कहा कि सेना के फैसले को तब तक नहीं बदला जा सकता जब तक वो साफ तौर पर अनुचित ना हो. कोर्ट ने ईसाई अधिकारी का कोर्ट मार्शल ना करने के सेना के फैसले पर भी सहमति जताई, क्योंकि इससे सेना की धर्मनिरपेक्षता पर विवाद हो सकता था.

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