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दिल्ली हाई कोर्ट ने किया बड़ा खुलासा! ORS लेबल वाले नए प्रोडक्ट्स पर नहीं दी कोई मंजूरी

ORS Label Case: हाई कोर्ट ने कहा है कि अगर उसे पता होता कि FSSAI फैसला लेने में दो हफ्ते लेगा तो वह पहले ही नए प्रोडक्शन पर रोक लगा देता. अब कोर्ट ने FSSAI को फैसले के लिए शुक्रवार, 31 अक्टूबर तक का समय दिया है.

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Delhi High Court clarifies decision on ORS case said permission not given for new production
दिल्ली हाई कोर्ट ने FSSAI को अंतिम फैसले के लिए दो दिन का समय दिया है. (Photo: ITG/File)
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सचिन कुमार पांडे
29 अक्तूबर 2025 (Updated: 29 अक्तूबर 2025, 01:20 PM IST)
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दिल्ली हाई कोर्ट ने ORS लेबल के मामले में दिए गए अपने पिछले फैसले को स्पष्ट किया है. कोर्ट ने कहा है कि उसने ORS लेबल के साथ नए प्रोडक्ट बनाने की अनुमति नहीं दी है. उसने केवल JNTL कन्ज्यूमर हेल्थ को FSSAI के सामने उसका पक्ष रखने की अनुमति दी थी. कोर्ट का यह स्पष्टीकरण तब आया है, जब सोशल मीडिया में उसके फैसले की आलोचना हो रही थी. सोशल मीडिया में दावा किया जा रहा था कि हाई कोर्ट ने ORS ब्रांडिंग वाले बेवरेजेस (पेय पदार्थों) का प्रोडक्शन जारी रखने की अनुमति दी है. फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा जा रहा था कि इससे लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ होगा.

कोर्ट ने क्या कहा?

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार हाई कोर्ट ने 28 अक्टूबर को इसी से जुड़े एक और मामले की सुनवाई की. इस दौरान जस्टिस सचिन दत्ता ने कहा कि अगर उन्हें पता होता कि FSSAI को फैसला लेने में दो हफ्ते लगेंगे तो वह कंपनियों को नए बैच बनाने से रोक देते. उन्होंने कहा कि पिछला आदेश FSSAI को इस मामले में आवश्यक कदम उठाने में सक्षम बनाने के लिए दिया गया था. इसका उद्देश्य कंपनियों को प्रोडक्ट्स का निर्माण जारी रखने की अनुमति देना नहीं था. विचार यह था कि FSSAI दो से तीन दिनों में जरूरी काम कर देगा. साथ ही कोर्ट ने कहा है कि अगर FSSAI शुक्रवार, 31 अक्टूबर तक इस पर कोई फैसला नहीं लेता है तो वह प्रोडक्ट्स के निर्माण पर रोक लगाने का आदेश देंगे.

क्या मामला है?

बता दें कि पूरा मामला भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) के एक आदेश से जुड़ा हुआ है. FSSAI ने 14 और 15 अक्टूबर को आदेश जारी किया था कि कोई भी ब्रांड अपने प्रोडक्ट में ORS शब्द का इस्तेमाल नहीं कर सकता. भले ही यह शब्द किसी और शब्द के साथ जोड़कर बनाया गया हो, जैसे कि ORSL या फिर VITORS. FSSAI का मानना था कि यह ग्राहकों को गुमराह करने वाले नाम हैं. मालूम हो कि ORS विश्व स्वास्थ्य संगठन, WHO द्वारा मान्यता प्राप्त एक मेडिकल फॉर्मूला है. डायरिया या डिहाइड्रेशन के मामलों में मरीज को यह दिया जाता है. इसके अलावा भी इस फॉर्मूले का व्यापक रूप से इस्तेमाल होता है. लेकिन कई कंपनियां ORS की आड़ में इसी से मिलता-जुलता नाम रख लेती हैं और ग्राहक इसे असली ORS समझ लेते हैं.

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FSSAI के फैसले के खिलाफ अमेरिकी कंपनी केनव्यू की भारतीय सहायक कंपनी JNTL कंज्यूमर हेल्थ इंडिया ने हाई कोर्ट में अपील दायर की थी. कंपनी ने कहा कि FSSAI ने बिना किसी नोटिस के अचानक से ORS शब्द का इस्तेमाल न करने का फैसला दिया है. ऐसे में उसके करोड़ों का बचा हुआ स्टॉक बेकार हो जाएंगा. इसलिए उसे अंतरिम राहत दी जाए. कोर्ट ने इस पर JNTL के पक्ष में फैसला सुनाते हुए FSSAI को निर्देश दिया था कि वह कंपनी की बात सुने और इसके बाद इस पर फैसला ले. कोर्ट ने तब तक JNTL को अपना पुराना स्टॉक बेचने की अनुमति भी दी थी. FSSAI ने भी इस पर सहमति जताई थी कि जब तक वह JNTL की अपील पर फैसला नहीं लेता, तब तक नया आदेश उस पर लागू नहीं होगा.

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