क्लाउड सीडिंग तो जमकर हो गई, ये दिल्ली में बारिश काहे नहीं हुई?
IIT कानपुर ने अपनी प्रेस रिलीज में बताया कि पहली उड़ान में 4 हजार फीट की ऊंचाई पर छह फ्लेयर्स छोड़े गए, जो 18.5 मिनट तक जले. दूसरी उड़ान दोपहर 3 बजकर 55 मिनट पर शुरू हुई, जिसमें 5 हजार से 6 हजार फीट की ऊंचाई पर आठ फ्लेयर्स छोड़े गए. यानी क्लाउड सीडिंग तो हो गई.

IIT कानपुर ने मंगलवार, 28 अक्टूबर को दिल्ली में क्लाउड सीडिंग की (Cloud Seeding in Delhi). ये ऑपरेशन दिल्ली के खेकड़ा से बुराड़ी के आसपास किया गया. इसमें लगभग 25 नॉटिकल मील लंबे और 4 नॉटिकल मील चौड़े क्षेत्र को कवर किया गया. लेकिन, भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने साफ किया कि अगले एक हफ्ते तक दिल्ली में बारिश लाने वाले बादल या बारिश की कोई संभावना नहीं है. दिल्ली सरकार ने भी पुष्टि की कि मंगलवार को जिन क्षेत्रों में क्लाउड सीडिंग की गई, वहां अभी तक बारिश नहीं हुई.
IIT कानपुर ने अपनी प्रेस रिलीज में बताया कि पहली उड़ान में 4 हजार फीट की ऊंचाई पर छह फ्लेयर्स छोड़े गए, जो 18.5 मिनट तक जले. दूसरी उड़ान दोपहर 3 बजकर 55 मिनट पर शुरू हुई, जिसमें 5 हजार से 6 हजार फीट की ऊंचाई पर आठ फ्लेयर्स छोड़े गए. यानी क्लाउड सीडिंग तो हो गई. लेकिन दिल्ली के इन इलाकों में रत्ती भर बारिश नहीं हुई. इसको लेकर राजनीति भी शुरू हो गई. शाम आते-आते आम आदमी पार्टी (AAP) की दिल्ली यूनिट के मुखिया सौरभ भारद्वाज ने ये मुद्दा उठा दिया. उन्होंने X पर डेटा शेयर करते हुए लिखा,
“कृपया झूठे और फर्जी दावों में न आएं. जनता के रुपये पूरी तरह बेकार, दिल्ली में कोई बारिश नहीं हुई. कोई भी Artificial Rain नहीं हुई.”

मामला बढ़ा तो दिल्ली सरकार का पक्ष भी सामने आया. दिल्ली के पर्यावरण मंत्री मंजिंदर सिंह सिरसा ने कहा,
“IIT कानपुर की टीम के मुताबिक, सीडिंग के बाद बारिश होने में 15 मिनट से चार घंटे तक का समय लग सकता है. लेकिन बादलों में नमी की कमी के कारण ज्यादा बारिश की उम्मीद नहीं है.”
बता दें कि दिल्ली में क्लाउड सीडिंग का ये दूसरा प्रयोग था. इससे पहले 23 अक्टूबर की रात को भी ऐसा ही प्रयास किया गया था, लेकिन कम बादल और नमी के कारण तब भी बारिश नहीं हुई. दिल्ली सरकार ने सितंबर में IIT कानपुर के साथ पांच एक्सपेरिमेंट्स के लिए 3 करोड़ रुपये की लागत से एक समझौता किया था. अब सिरसा ने घोषणा की है कि अगले कुछ दिनों में मौसम अनुकूल होने पर 9-10 और प्रयोग किए जाएंगे.

दिल्ली में की गई क्लाउड सीडिंग पर IIT कानपुर ने अपनी फाइनल रिपोर्ट दी. रिपोर्ट के अनुसार, बाहरी एजेंसियों द्वारा मौसम का अनुमान लगाया गया था. 27 अक्टूबर की दोपहर से 29 अक्टूबर की दोपहर तक का समय क्लाउड सीडिंग के लिए कुछ हद तक अनुकूल माना गया था. IIT कानपुर ने बताया कि IMD और अन्य एजेंसियों द्वारा अनुमानित नमी का स्तर 10-15% रहा, जो क्लाउड सीडिंग के लिए आदर्श स्थिति नहीं है.
क्या है क्लाउड सीडिंग, ये काम क्यों नहीं कर रही?क्लाउड सीडिंग एक ऐसी तकनीक है, जिसमें पहले से मौजूद नमी वाले बादलों से बारिश कराने की कोशिश की जाती है. ये साफ आसमान में बारिश नहीं करा सकती. इंडिया टुडे से जुड़े मिलन शर्मा से बात करते हुए नेशनल सेंटर फॉर एटमॉस्फेरिक साइंस, यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग (UK) के रिसर्च साइंटिस्ट डॉक्टर अक्षय देवरस बताते हैं,
“क्लाउड सीडिंग तीन तरह के बादलों में की जा सकती है. जमीन के पास गर्म बादल, गहरे बादल जो गरज-चमक वाले बन सकते हैं, और ठंडे बादल जो ज्यादा ऊंचाई पर होते हैं.”
देवरस ने बताया कि क्लाउड सीडिंग ऊंचे बादलों पर काम नहीं कर सकती. माने, इतनी ऊंचाई वाले बादलों पर काम नहीं करती, जहां एयरक्राफ्ट को उड़ाया जाता है.
कैसे काम करती है क्लाउड सीडिंग?डॉक्टर देवरस के मुताबिक, पहले मौसम रडार से बारिश लाने वाले बादलों की पहचान की जाती है. फिर एयरक्राफ्ट से सिल्वर आयोडाइड, सोडियम क्लोराइड या कैल्शियम क्लोराइड जैसे केमिकल बादलों में छोड़े जाते हैं. ये केमिकल जलवाष्प (वॉटर वेपर) को बूंदों में बदलने में मदद करते हैं. जब ये बूंदें पर्याप्त भारी हो जाती हैं, तो बारिश होती है. लेकिन इसके लिए बादलों में पर्याप्त नमी और उनका वर्टिकल डेवलपमेंट होना जरूरी है.
क्लाउड सीडिंग का सही समयडॉक्टर देवरस का कहना है कि ये दिल्ली में क्लाउड सीडिंग का सही समय बिल्कुल नहीं है. उन्होंने साफ कहा,
“दिल्ली-एनसीआर के ऊपरी वातावरण में पर्याप्त नमी नहीं है. आसमान में बादल दिख रहे हैं, लेकिन ये क्लाउड सीडिंग के लिए उपयुक्त नहीं हैं.”
वो ये भी बताते हैं कि सर्दियों में क्लाउड सीडिंग तब सबसे अच्छी होती है, जब पश्चिमी विक्षोभ यानी Western Disturbance के कारण बारिश लाने वाले बादल बनते हैं. वेस्टर्न डिस्टरबेंस भूमध्यसागरीय क्षेत्र में उत्पन्न होने वाला एक उष्णकटिबंधीय तूफान (tropical storm) है. जो भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिमी हिस्सों में अटलांटिक महासागर और कैस्पियन सागर से नमी लाकर जाड़ों में अचानक बारिश कराता है. ये एक गैर मॉनसूनी बारिश का स्वरूप है जो पछुआ हवाओं (वेस्टर्लीज) से संचालित होता है.
तो दिल्ली को कब करना चाहिए क्लाउड सीडिंग?डॉक्टर देवरस के अनुसार, दिल्ली में क्लाउड सीडिंग तभी की जानी चाहिए, जब पश्चिमी विक्षोभ के प्रभाव से बारिश लाने वाले उपयुक्त बादल मौजूद हों. अभी दिल्ली में स्मॉग की मोटी परत छाई है, और सरकार इसे हटाने के लिए कृत्रिम बारिश (Artificial Rain) पर विचार कर रही है. लेकिन मौसम की मौजूदा स्थिति इसके लिए अनुकूल नहीं है.
IMD के अनुसार, अगले एक हफ्ते तक दिल्ली में आंशिक रूप से बादल छाए रहेंगे, लेकिन बारिश की कोई संभावना नहीं है.
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