कफ सिरप के 'जहर' से 116 दिन लड़कर जिंदा लौटा 5 साल का बच्चा, ये कहानी पढ़ आंसू आ जाएंगे
कफ सिरप पीने के कुछ देर बाद ही बच्चे की हालात बिगड़ने लगी. बुखार उतरने के बजाय उसे उल्टियां और शुरू हो गईं. पेट भी फूलने लगा. इसके बाद बच्चे को 27 अगस्त को दोबारा डॉक्टर को दिखाया गया. लेकिन उसकी सेहत में कोई सुधार नहीं हुआ.

मध्यप्रदेश में जहरीले कफ सिरप ने कई बच्चों की जान ले ली. 5 साल के कुणाल यदुवंशी को भी जहरीला कफ सिरप दिया गया था. आरोप है कि इसके बाद बच्चे की हालत तेजी से बिगड़ी. उसकी आंखों की रोशनी चली गई. पैरों ने भी ठीक से काम करना बंद कर दिया. हालांकि कुणाल ने मौत को मात दे दी. 116 दिन अस्पताल में रहने के बाद बच्चे की जान बच गई है. हालांकि उसका भविष्य अब अंधेरे में है. कुणाल अब भी देख नहीं पा रहा और उसके पैरों में नसों की समस्या भी बनी हुई है.
कुणाल मध्यप्रदेश के परासिया विकासखंड के गांव जाटा छापर के निवासी टिंकू यदुवंशी का बेटा है. इंडिया टुडे से जुड़े रवीश पाल सिंह और पवन शर्मा की रिपोर्ट के मुताबिक, इसी साल 24 अगस्त को कुणाल को बुखार आया. इलाज के लिए परिजन बेटे को परासिया के उसी अस्पताल में ले गए जहां बच्चों को विवादित कोल्ड्रिफ कफ सिरप पिलाया गया था.
कफ सिरप पीने के कुछ देर बाद ही बच्चे की हालात बिगड़ने लगी. बुखार उतरने के बजाय उसे उल्टियां और शुरू हो गईं. पेट भी फूलने लगा. इसके बाद बच्चे को 27 अगस्त को दोबारा डॉक्टर को दिखाया गया. लेकिन उसकी सेहत में कोई सुधार नहीं हुआ. हालत ज्यादा बिगड़ने पर परिजन 30 अगस्त को उसे छिंदवाड़ा में डॉ. नाहर के पास ले गए. जहां उन्होंने जांच के बाद बताया कि बच्चे की किडनी डैमेज हो गई. साथ ही उसे फौरन नागपुर ले जाने की सलाह दी.
कुणाल का नागपुर के एक प्राइवेट हॉस्पिटल में 11–12 दिन तक इलाज चला. वहां उसका 7 से 8 बार डायलिसिस कराना पड़ा. महंगे इलाज की वजह से पिता टिंकू की आर्थिक स्थिति भी खराब हो गई. वो बच्चे को ज्यादा दिन प्राइवेट अस्पताल में नहीं रख सकते थे. इसलिए उसे 11 सितंबर को नागपुर एम्स में भर्ती कराना पड़ा. यहां लगभग साढ़े तीन महीने तक इलाज चला. आखिरकार 23 दिसंबर को उसे छुट्टी दे दी गई.
इंडिया टुडे से बात करते हुए कुणाल के पिता ने बताया कि जहरीले कफ सिरप का असर बच्चे के दिमाग पर भी पड़ा है. डॉक्टरों ने उन्हें बताया कि ब्रेन में अटैक की वजह से कुणाल की आंखों की नसें सिकुड़ गईं और आंखों का पानी सूख गया. जिसकी वजह से उसके आंखों की रोशनी चली गई. इसके अलावा पैरों की नसों में भी समस्या बनी हुई है.
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कुणाल के पिता टिंकू यदुवंशी ने बताया कि एम्स में उनके बच्चे के साथ 7 और बच्चे भी एडमिट थे. उनमें से 6 बच्चों की 11 दिन के भीतर मौत हो गई. टिंकू ने दुखी मन से बताया, 'हमें हर दिन एक साल जैसा लगता था.'
बच्चे के इलाज के दौरान उनकी आर्थिक स्थिति खराब हो गई. जिसकी वजह से उन्हें अपने रिश्तेदारों से कर्ज लेना पड़ा. पत्नी, मां और भाभी के गहने बेचने पड़े. यहां तक कि घर की दो भैंसों को भी बेचना पड़ा. उन्होंने अब तक अपने बच्चे के इलाज में करीब 8 लाख रुपये तक खर्च किए हैं. इस दौरान उन्हें सरकार से 4 लाख 25 हजार रुपये सहायता राशि भी मिली.
टिंकू पहले प्राइवेट नौकरी करते थे. इलाज के दौरान उनकी नौकरी भी चली गई. फिलहाल वो अपने परिवार के पालन-पोषण के लिए खेती-किसानी पर निर्भर हैं.
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