44 साल का था जब 100 रुपये की घूस का आरोप लगा, रिहा होते-होते 83 साल का हो गया ये शख्स
निचली अदालत ने शख्स को एक साल की सजा सुनाई थी. 39 साल की कानूनी लड़ाई के बाद Chhattisgarh High Court ने अब इस फैसले को पलट दिया है.
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छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट (Chhattisgarh High Court) ने ‘मध्य प्रदेश स्टेट ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन’ के पूर्व बिलिंग असिस्टेंट जागेश्वर प्रसाद अवस्थी को 100 रुपये घूस मांगने के आरोप से रिहा कर दिया है. अवस्थी को ये साबित करने में पूरे 39 साल का वक्त लगा. लंबी कानूनी लड़ाई के बाद आखिरकार हाई कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को पलट दिया.
NDTV की रिपोर्ट के मुताबिक, 2004 में निचली अदालत ने रिश्वत मांगने के लिए जागेश्वर अवस्थी को एक साल की सजा सुनाई थी. छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के जस्टिस बिभु दत्ता गुरु ने अब ठोस सबूतों के अभाव का हवाला देते हुए उस फैसले को पूरी तरह से पलट दिया है.
नोटों के साथ पकड़े गए थे अवस्थी, लेकिन…मामला 1986 का है. अवस्थी पर आरोप लगे कि उन्होंने अशोक कुमार वर्मा नाम के एक कर्मचारी से बकाया राशि सेटल करने के लिए 100 रुपये की रिश्वत मांगी थी. इसकी शिकायत की गई जिसके बाद तत्कालीन लोकायुक्त ने फिनोलफ्थलीन केमिकल लगे नोटों का इस्तेमाल करके जाल बिछाया. अवस्थी नोटों के साथ पकड़े तो गए, लेकिन हाई कोर्ट को अभियोजन पक्ष के मामले में गंभीर खामियां मिलीं.
उच्च न्यायालय ने माना कि ये साबित करने के लिए कोई स्वतंत्र गवाह नहीं था कि अवस्थी ने पैसे मांगे थे. सरकारी गवाह ने स्वीकार किया कि उसने रिश्वत को लेकर हुई बातचीत नहीं सुनी. सरकारी गवाह 20-25 गज की दूरी पर खड़े थे, जिससे लेनदेन को देख पाना असंभव हो गया. ये भी स्पष्ट नहीं था कि जब्त की गई रिश्वत में 100 रुपये का एक नोट था या 50 रुपये के दो नोट.
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अवस्थी ने तर्क दिया कि कथित घटना के समय, उनके पास बिल पास करने का कोई अधिकार नहीं था. उनको ये अधिकार एक महीने बाद मिले. अदालत ने माना कि सिर्फ दागी नोटों की बरामदगी से अपराध सिद्ध नहीं हो सकता. जब तक कि रिश्वत के इरादे और घूस मांगने के सबूत मौजूद न हों. सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला देते हुए, कोर्ट ने फैसला सुनाया कि निचली अदालत की दोषसिद्धि में दम नहीं है. 83 साल की उम्र में जागेश्वर प्रसाद अवस्थी को कोर्ट ने रिहा कर दिया है.
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