छात्र ही नहीं पैरेंट्स और टीचर्स को भी हो जाता है बोर्ड एग्जाम का तनाव, CBSE अब ये करने रही है
CBSE ने 10 वीं और 12 वीं के बोर्ड एग्जाम की डेटशीट निकाल दी है. इस बार 110 दिन पहले डेटशीट निकाली गई है ताकि बच्चे एग्जाम का लोड ना लें. Board Exam के दौरान बच्चे स्ट्रेस लेने लगते हैं. शिक्षकों और अभिभावकों की चिंताएं बढ़ जाती हैं. ऐसे में क्या करना चाहिए?

CBSE बोर्ड एग्जाम सिर्फ एक परीक्षा नहीं होते, बल्कि स्टूडेंट लाइफ का सबसे बड़ा प्रेशर पॉइंट बन जाते हैं. 10वीं और 12वीं के बोर्ड्स न सिर्फ रिजल्ट तय करते हैं, बल्कि बच्चों की नींद, रूटीन और मानसिक शांति पर भी असर डालते हैं. जैसे जैसे बोर्ड एग्जाम पास आते हैं, पढ़ाई का दबाव बढ़ता जाता है और हर दिन एक नई टेंशन लेकर आता है. ऐसे वक्त में शांत दिमाग रखना सबसे मुश्किल और सबसे ज़रूरी हो जाता है.
दिसंबर आते ही CBSE बोर्ड एग्जाम का मोड ऑन हो जाता है. नया साल नज़दीक होता है और साथ ही 10वीं-12वीं के बोर्ड्स भी. स्कूलों में सिलेबस रिविज़न तेज हो जाता है, एक्स्ट्रा क्लासेज शुरू हो जाती हैं और बच्चों की दुनिया किताबों, नोट्स और सैंपल पेपर्स तक सिमट जाती है. स्टडी टेबल पर अचानक भीड़ लग जाती है और हर बातचीत का एक ही सवाल होता है, बोर्ड्स की तैयारी कितनी हुई.

सिर्फ बच्चे ही नहीं, पैरेंट्स भी इसी प्रेशर में आ जाते हैं. ट्यूशन की बढ़ती फीस, रिजल्ट की चिंता, रिश्तेदारों के सवाल और व्हाट्सऐप ग्रुप में चलती कट ऑफ और परसेंटेज की चर्चा. टीचर्स पर भी सिलेबस खत्म कराने और बच्चों से रिजल्ट निकलवाने का दबाव रहता है. कुल मिलाकर बोर्ड एग्जाम का वक्त पूरे सिस्टम के लिए स्ट्रैस सीजन बन जाता है.
कुछ साल पहले दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट आई थी. इसमें 10वीं और 12वीं के छात्रों पर सर्वे किया गया. सामने आया कि बोर्ड एग्जाम के दौरान 42 फीसदी बच्चों की नींद प्रभावित होती है और 61 फीसदी बच्चों की भूख. टेंशन इतना हावी रहता है कि बच्चे खेलकूद या किसी एक्स्ट्रा एक्टिविटी में हिस्सा ही नहीं ले पाते. परफॉरमेंस प्रेशर उन्हें मैदान से लेकर दोस्तों तक, हर चीज से दूर कर देता है. ऐसे में सवाल यही है कि इस दबाव को कम कैसे किया जाए.
CBSE ने क्या किया हैइस साल सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन ने एक अहम कदम उठाया है. 10वीं और 12वीं बोर्ड एग्जाम की डेटशीट 110 दिन पहले जारी कर दी गई है. द हिन्दू की रिपोर्ट के मुताबिक CBSE का कहना है कि इससे बच्चों को तैयारी के लिए ज्यादा वक्त मिलेगा और आखिरी समय की घबराहट कम होगी.
इसके अलावा 10वीं के छात्रों को साल में दो बार परीक्षा देने का मौका दिया जा रहा है. यानी अगर किसी एक एग्जाम में नंबर उम्मीद के मुताबिक नहीं आए, तो सुधार का रास्ता खुला रहेगा. बच्चे तीन विषयों में अपने नंबर बेहतर कर सकते हैं, बशर्ते वे सभी परीक्षाओं में पास हों. माना जा रहा है कि इससे फेल होने और नंबर खराब होने का डर कुछ हद तक कम होगा.
इसी तरह राजस्थान के शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने भी ऐलान किया है कि 10वीं और 12वीं के छात्र साल में दो बार एग्जाम दे सकेंगे. मकसद वही है, बच्चों का दबाव कम करना और उन्हें दूसरा मौका देना.
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इससे पहले 2020 में CBSE ने 10वीं के लिए मैथ्स को दो लेवल में बांटा था. बेसिक और एडवांस. बच्चे अपनी क्षमता और आगे के करियर प्लान के हिसाब से विषय चुन सकते हैं. इससे उन छात्रों को राहत मिली, जिन्हें मैथ्स से डर लगता था.
नई शिक्षा नीति के तहत CBSE ने 2026-27 से क्लास 9 के लिए ओपन बुक एग्जाम कराने की भी तैयारी शुरू कर दी है. यानी रटने से ज्यादा समझ पर जोर.
हम अपनी तरफ से क्या कर सकते हैंनीतियां और नियम अपनी जगह हैं, लेकिन सबसे बड़ी जिम्मेदारी घर और स्कूल की है. बच्चों को ये समझाना जरूरी है कि जीत और हार के बीच फर्क उतना बड़ा नहीं, जितना हिम्मत न हारने में है. 70 प्रतिशत आएं या 80, मेहनत की तारीफ जरूर होनी चाहिए.
माता पिता और टीचर्स को ये बात गांठ बांध लेनी चाहिए कि एक एग्जाम, एक रिजल्ट बच्चे की काबिलियत तय नहीं करता. तुलना सबसे खतरनाक चीज है. एक बच्चे को दूसरे बच्चे से तौलना उसका कॉन्फिडेंस धीरे धीरे खत्म कर देता है.
अगर बच्चों को भरोसा मिले कि गलती करने और दोबारा कोशिश करने की जगह है, तो शायद बोर्ड एग्जाम का डर भी थोड़ा कम हो जाए. और यही असली मानसिक शांति की शुरुआत है.
वीडियो: कोरोना के दौर में 12वीं के बोर्ड एग्जाम को लेकर छात्रों, अभिभावकों और टीचर्स की क्या राय है?

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