मराठी और अंग्रेजी के ट्रांसलेशन में अंतर था, हाई कोर्ट ने आरोपी मजदूर को रिहा कर दिया
Bombay High Court ने माना कि आदेश के मराठी और अंग्रेजी वर्जन में अंतर था. इस कारण से याचिकाकर्ता के सामने भ्रम की स्थिति बनी और वो सही ढ़ंग से अपना पक्ष नहीं रख सका.

बॉम्बे हाई कोर्ट (Bombay High Court) ने 30 साल के एक मजदूर को जेल से रिहा करने का फैसला सुनाया है. पुणे के पुलिस कमिश्नर की ओर से इस मजदूर को हिरासत में रखने का आदेश जारी किया गया था. कोर्ट ने पाया कि हिरासत के लिए जिन कारणों का हवाला दिया गया था, उसके अंग्रेजी और मराठी ट्रांसलेशन में अंतर था. इसके बाद उच्च न्यायालन ने हिरासत के आदेश को रद्द कर दिया है. इस शख्स पर हत्या के प्रयास का केस दर्ज था.
जस्टिस एएस गडकरी और रंजीत सिंह राजा भोसले की बेंच ने अपने फैसले में कहा कि अंग्रेजी और मराठी वर्जन में अंतर के कारण याचिकाकर्ता को भ्रम की स्थिति का सामना करना पड़ा और इसके कारण वो सही ढ़ंग से अपना पक्ष नहीं रख सका. उन्होंने कहा,
अनुच्छेद 22(5) में क्या प्रावधान हैं?दोनों वर्जन में विसंगति के कारण याचिकाकर्ता के मन में भ्रम पैदा हुआ और इसके परिणामस्वरूप, याचिकाकर्ता सक्षम प्राधिकारी के समक्ष प्रभावी ढंग से अपना पक्ष रखने में असमर्थ रहा. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 22(5) के तहत उसके अधिकार का उल्लंघन हुआ.
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 22(5) के अनुसार, निवारक (किसी बुरी घटना को रोकने के लिए) नजरबंदी आदेश पारित करने वाले प्राधिकारियों को यथाशीघ्र, हिरासत में लिए गए व्यक्ति को आदेश के कारणों के बारे में सूचित करना चाहिए. साथ ही उन्हें नजरबंदी के विरुद्ध अपना पक्ष रखने का जल्द से जल्द अवसर प्रदान करना चाहिए. अनुच्छेद 22 के अंतर्गत ये एक प्रमुख सुरक्षा उपाय है, जो व्यक्तियों को मनमानी गिरफ्तारी और नजरबंदी से बचाता है.
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पुणे के मजदूर के लिए डिटेंशन ऑर्डरमजदूर को हिरासत में रखने का आदेश पुणे के पुलिस आयुक्त की ओर से 22 नवंबर, 2024 को जारी किया गया था. ये कार्रवाई ‘महाराष्ट्र प्रिवेंशन ऑफ डेंजर एक्टिविटीज एक्ट (MPDA), 1981’ की धारा 3(2) के आधार पर की गई थी. इसमें अधिकारियों को सार्वजनिक व्यवस्था के लिए खतरनाक माने जाने वाले व्यक्तियों को हिरासत में लेने का अधिकार दिया गया है.
हिरासत में लेने वाले अधिकारी ने निष्कर्ष निकाला था कि याचिकाकर्ता MPDA की परिभाष के अनुसार एक ‘खतरनाक व्यक्ति’ था. ये निष्कर्ष पार्वती पुलिस स्टेशन में दर्ज हत्या के प्रयास के एक आपराधिक मामले और दो गवाहों के बयानों पर आधारित था. हिरासत में लिए गए याचिकाकर्ता के वकील ओम एन लतपते का प्राथमिक तर्क ये था कि हिरासत के कारणों के अंग्रेजी और मराठी संस्करण विरोधाभासी थे.
अंग्रेजी संस्करण में कहा गया था कि याचिकाकर्ता की जमानत याचिका अदालत ने स्वीकार कर ली है. हालांकि, मराठी संस्करण में कहा गया था कि याचिकाकर्ता न्यायिक हिरासत में है और भविष्य में उसे जमानत मिलने की संभावना है. अदालत ने इस तर्क को स्वीकार करते हुए 22 नवंबर, 2024 के हिरासत आदेश को रद्द कर दिया और निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता श्रवण उर्फ राहुल अशोक बुरुंगले को नासिक केंद्रीय कारागार से रिहा किया जाए.
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