पुतिन की भारत यात्रा और RELOS समझौता, भारत-रूस की दोस्ती का नया चैप्टर क्या है?
Modi-Putin मीटिंग में RELOS की घोषणा होते ही एक बार फिर भारत-रूस के सामरिक रिश्ते मजबूत होंगे. भारत रूस से S-400 सरफेस-टू-एयर मिसाइल सिस्टम के और बैच खरीदने पर विचार कर रहा है. इसके अलावा रूस ने अपना Su-57 विमान भी भारत को ऑफर किया है.

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (Putin visit to India) 4 दिसंबर, 2025 को भारत की यात्रा पर आ रहे हैं. लेकिन इस यात्रा से पहले रूस से एक बड़ी खबर आई है. रूस की संसद के निचले सदन, स्टेट डूमा (Russian State Duma) में भारत के साथ होने वाले एक अहम रक्षा समझौते पर वोटिंग होगी. इस समझौते का नाम RELOS यानी Reciprocal Exchange of Logistics Agreement है. इस समझौते के मसौदे पर रूस काफी समय से काम कर रहा है. इंतजार था तो बस प्रेसिडेंट पुतिन की भारत यात्रा का. उनकी भारत यात्रा की तारीख तय होने के साथ ही अब इसे अंतिम रूप दिया जा रहा है. तो समझते हैं कि क्या है ये समझौता, और क्यों इसे दोनों देशों की दोस्ती का एक नया चैप्टर कहा जा रहा है.
RELOS, माने पूरा सहयोगRELOS का मतलब है ‘Reciprocal Exchange of Logistics Agreement.’ इसका मकसद है- भारत और रूस की सेनाएं, जरूरत पड़ने पर एक-दूसरे के सैन्य ठिकानों, बंदरगाहों, सुविधाओं, रसद और ईंधन की मदद लेने-देने के लिए स्वतंत्र हों. इसमें लॉजिस्टिक सपोर्ट, सैनिकों और जहाजों के लिए सुविधाएं, संयुक्त अभ्यास, आपदा और मानवीय सहायता शामिल है.
RELOS समझौते पर दोनों देशों ने 18 फरवरी 2025 को मॉस्को में साइन किया था. भारत की ओर से इस दस्तावेज पर भारत के राजदूत विनय कुमार और रूस की ओर से उप रक्षा मंत्री कर्नल जनरल एलेक्जेंडर फोरमिन ने साइन किया था. फिलहाल, रूस की संसद (स्टेट डूमा) ने इसे वैध घोषित करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है, ताकि समझौता कानूनी रूप से पूरी तरह लागू हो जाए. इस समझौते से रूस के सैन्य बंदरगाहों, एयरबेस या सुविधाओं का इस्तेमाल इंडियन नेवी और वायुसेना कर सकेगी -ईंधन, राशन, स्पेयर पार्ट्स, मरम्मत वगैरह. इसी तरह रूसी सेनाओं को भारत के बंदरगाहों, डॉक, सुविधाओं का फायदा मिलेगा, जिससे उन्हें हिंद महासागर क्षेत्र में लॉजिस्टिकल मदद मिलेगी.

साथ ही संयुक्त सैन्य अभ्यास, मानवीय सहायता, आपदा राहत (Disaster relief), और शांति-कालीन सहयोग (Peace-Time Cooperation) और ऑपरेशंस में काम आसान हो जाएगा.खासकर, अगर दोनों मिलकर कोई फुल-स्केल ऑपरेशन करना चाहें, जैसे लंबी दूरी, समुद्र, आर्कटिक जैसे कठिन इलाकों में RELOS से उनका ऑपरेशनल दायरा बढ़ जाएगा.
इस समझौते के बाद इंडियन नेवी अब सिर्फ हिंद महासागर तक सीमित नहीं रहेगी. हालांकि अब भी इंडियन नेवी लाल सागर के पास मर्चेंट शिप्स को सुरक्षा देना और एंटी-पायरेसी ऑपरेशंत करती रही है. अगर जरूरत पड़ी, तो आर्कटिक, या रूस के अन्य बंदरगाहों तक इंडियन नेवी अपनी लॉजिस्टिक पहुंच बना सकेगी. रूस को हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी मौजूदगी मजबूत करने का मौका मिलेगा. साथ ही भारत के बंदरगाहों, डॉक-यार्ड्स और नेवल सुविधाओं का इस्तेमाल करके उसका ऑपरेशनल दायरा दक्षिण एशिया और हिंद महासागर तक बढ़ जाएगा.
भारत और रूस की दोस्तीनई दिल्ली में होने वाली मोदी-पुतिन मीटिंग में एक बार फिर भारत-रूस के सामरिक रिश्ते मजबूत होंगे. भारत रूस से S-400 सरफेस-टू-एयर मिसाइल सिस्टम के और बैच खरीदने पर विचार कर रहा है, क्योंकि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान ये हथियार बहुत असरदार साबित हुए थे. इसके अलावा रूस ने अपना Su-57 विमान भी भारत को ऑफर किया है.
लेकिन ये पहली बार नहीं था जब रूस ने भारत का साथ दिया हो, या उसने भारत को हथियार दिए हों. भारत के बेड़े में 6 दशक तक सेवाएं देने वाला मिग-21 रूस (तत्कालीन सोवियत संघ) का ही विमान था. इसके अलावा भारत का एयरक्राफ्ट कैरियर INS विक्रमादित्य भी एक रूसी कैरियर है. जब रूस की जगह सोवियत यूनियन था, तब भी उसने भारत का साथ दिया था. 1971 की जंग में अमेरिका खुल कर पाकिस्तान के पक्ष में खड़ा था. भारत पर दबाव बनाने के लिए अमेरिकी नौसेना की 7th फ्लीट आई थी. इस अमेरिकी बेड़े ने भारत को बंगाल की खाड़ी में घेरने की योजना बनाई.
लेकिन तभी हिंद महासागर से होते हुए बंगाल की खाड़ी में एंट्री हुई सोवियत बेड़े की. सोवियत नेवी के अफसर एडमिरल व्लादिमीर क्रुगलेकॉव (Admiral Vladimir Kruglyakov) एक पूरे बेड़े को लेकर भारत की मदद को पहुंचे. इस बेड़े को 10th ऑपरेटिव बैटल ग्रुप कहा जाता था. इसमें तब न्यूक्लियर जहाज और सबमरीन शामिल थीं. इस बात को 5 दशक बीत गए लेकिन 2025 में जब ऑपरेशन सिंदूर शुरू हुआ, तब भी रूस ने भारत की मदद की. और ये दोस्ती सिर्फ युद्ध तक सीमित नहीं है. डिप्लोमेसी के मैदान पर संयुक्त राष्ट्र में भी रूस ने कई बार भारत का साथ दिया है.
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