अरावली पर बोले भूपेंद्र यादव, 'कांग्रेस सरकार में होता था अवैध खनन, अब पेट में दर्द हो रहा है'
Aravalli Hills: अरावली पर उठ रहे खतरों पर सफाई देते हुए केंद्रीय मंत्री Bhupendra Yadav ने कहा कि अरावली में नई माइनिंग लीज को अनुमति नहीं दी जाएगी. उन्होंने कहा कि सरकार इकोलॉजी और इकोनॉमी को साथ-साथ लेकर चल रही है.

अरावली पर मचे हंगामे पर केंद्र सरकार ने एक बार फिर जवाब दिया है. केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने दावा किया कि अरावली पर कोई खतरा नहीं है. उन्होंने कहा कि भारत सरकार अरावली के संरक्षण के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है. इससे पहले भी भूपेंद्र यादव इस मामले में सफाई दे चुके हैं. उन्होंने कांग्रेस पर भी निशाना साधा. कहा कि कांग्रेस सरकार में कोर्ट का फैसला आता था, तो उसमें भ्रष्टाचार का जिक्र होता था.
सोमवार, 22 दिसंबर को भूपेंद्र यादव ने कहा कि अरावली रेंज मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला अरावली ग्रीन वॉल प्रोजेक्ट के जरिये रेंज की सुरक्षा के लिए सरकार की लगातार कोशिशों को मान्यता देता है. नई दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा,
“अरावली हमारे देश की सबसे प्राचीन पर्वत श्रंखला है. कुछ दिन पहले सर्वोच्च न्यायालय का एक निर्णय आया है. उसे लेकर कुछ लोगों ने भ्रम फैलाने की कोशिश की और तरह-तरह के झूठ फैलाए और झूठा प्रचार किया. कांग्रेस के समय में जब निर्णय आते थे, तो उनकी सरकार की विफलता, करप्शन, कैग रिपोर्ट में उनकी नाकामी, और उनके भ्रष्टाचार के विषय में आते थे. मैंने बहुत गंभीरता से इस पूरे निर्णय को देखा है. मैं इस बात को आपके सामने कहना चाहता हूं कि प्रधानमंत्री जी के नेतृत्व में विगत वर्षों में ग्रीन अरावली मूवमेंट, ग्रीन अरावली के विषयों को आगे बढ़ाया गया है.”
इस बीच उन्होंने अरावली पर उठ रहे खतरों पर सफाई देते हुए कहा कि अरावली में नई माइनिंग लीज को अनुमति नहीं दी जाएगी. मंत्री ने कहा,
"नई माइनिंग लीज की इजाजत नहीं दी जाएगी, खासकर संरक्षित और पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्रों में, जिसमें नेशनल कैपिटल रीजन (NCR) भी शामिल है."
उन्होंने आगे कहा,
"कोर्ट का फैसला अरावली क्षेत्र में माइनिंग से संबंधित है, जिसमें साफ किया गया है कि नई माइनिंग लीज नहीं दी जाएगी, सिवाय ऐसे खनिजों के जिनका सामरिक या परमाणु महत्व हो. अरावली क्षेत्र में चार टाइगर रिजर्व और बीस वन्यजीव अभयारण्य हैं, जहां माइनिंग पूरी तरह प्रतिबंधित है. सरकार ने पेड़ लगाने के कई कार्यक्रम चलाए हैं, जैसे ग्रीन इंडिया मिशन, जिनके तहत भी माइनिंग की इजाजत नहीं दी जाएगी."
भूपेंद्र यादव ने जोर दिया कि सरकार साइंटिफिक मैनेजमेंट के जरिये अरावली के विकास के लिए प्रतिबद्ध है. उन्होंने बताया कि अगर सरकार कहीं माइनिंग की इजाजत देगी, तो पहले उस क्षेत्र की पहचान करेगी. उन्होंने कहा,
"सरकार अगर माइनिंग की परमिशन दे, तो माइनिंग की परमिशन देने से पहले सरकार को उस क्षेत्र की पहचान करनी होगी."
इस बीच उन्होंने कांग्रेस को निशाने पर लिया. उन्होंने कहा,
"एक लंबे समय से कांग्रेस के शासनकाल में राजस्थान में अवैध खनन होता रहा. वे लोग उसका बचाव करते है. आज उन्हीं को सबसे ज्यादा दर्द हो रहा है."
उन्होंने आगे कहा कि सरकार इकोलॉजी और इकोनॉमी को साथ-साथ लेकर चल रही है. उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि जो झूठ बोल रहे हैं, उनका झूठ धीरे-धीरे बेनकाब हो रहा है.
भूपेंद्र यादव ने कहा कि जो झूठ और गलतफहमियां फैलाई जा रही हैं, उनका निपटारा पहले ही सुप्रीम कोर्ट के फैसले में हो गया है. उन्होंने आगे कहा, “ऑर्डर में यह कहा गया है कि उन्होंने पहाड़ियों और पर्वत श्रंखलाओं की परिभाषा के संबंध में कमेटी की सिफारिशों को मान लिया है, लेकिन यह सिर्फ माइनिंग के मामले में है. बाकी अरावली क्षेत्र का 58 फीसदी हिस्सा कृषि क्षेत्र है. अरावली क्षेत्र का लगभग 11 फीसदी हिस्सा जंगल वाला क्षेत्र है. मैं थोड़ा ऊपर-नीचे हो सकता हूं, लेकिन 6-7 फीसदी रिहायशी इलाका है. शहर इसी इलाके में बसे हुए हैं. 2 फीसदी पानी वाला क्षेत्र है. लेकिन जो 20 फीसदी संरक्षित है, संरक्षित वन क्षेत्र, जैसा कि मैंने बताया, उसमें 4 टाइगर रिजर्व और 20 वन्यजीव अभयारण्य शामिल हैं. यहां सरकार द्वारा किया गया वृक्षारोपण भी है. इन क्षेत्रों में माइनिंग की बिल्कुल भी इजाजत नहीं है.”
अरावली पर क्या है विवाद?
अरावली पर सारा विवाद सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले की वजह से है. 20 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में केंद्र सरकार की एक विशेषज्ञ समिति की बनाई अरावली की उस परिभाषा को स्वीकार कर लिया, जिसमें कहा गया है कि स्थानीय भूभाग से 100 मीटर या उससे ज्यादा ऊंचाई वाली भू-आकृतियों को ही ‘अरावली’ के रूप में माना जाएगा.
यानी अब सिर्फ वही पहाड़ या जमीन के ऊंचे हिस्से ‘अरावली पहाड़ियां’ माने जाएंगे, जो अपने आसपास की जमीन से कम-से-कम 100 मीटर ऊंचे हों. इसके अलावा, दो या उससे ज्यादा पहाड़ियों को तभी ‘अरावली पर्वत श्रंखला’ का हिस्सा माना जाएगा, जब वे आपस में 500 मीटर के दायरे में हों.
कई पर्यावरणविद और अरावली से लगाव रखने वाले लोग कोर्ट के इस फैसले से टेंशन में हैं. उन्हें लगता है कि ये परिभाषा अरावली का पूरा सिस्टम तबाह कर देगा. उन्होंने चेतावनी दी है कि इस फैसले के चलते अरावली क्षेत्र के लगभग 90 प्रतिशत हिस्से से संरक्षण हट सकता है.
उनके मुताबिक इसका सीधा असर ये होगा कि यहां खनन गतिविधियां बढ़ेंगी. अचल संपत्तियों पर अवैध कब्जे को बढ़ावा मिलेगा और इससे ऐसे पारिस्थितिकीय नुकसान का खतरा पैदा होगा जिसे संभालना मुश्किल हो जाएगा.
वीडियो: अरावली विवाद को लेकर पर्यावरण मंत्री ने यूट्यूबर पर क्या आरोप लगाए?

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