The Lallantop
Advertisement
  • Home
  • India
  • amit shah vande matram speech targeted congress

'नेहरू से आज की कांग्रेस तक, वंदे मातरम का विरोध इनके खून में' संसद में अमित शाह ये क्या बोले!

वंदे मातरम पर चर्चा के दौरान अमित शाह ने कहा कि वंदे मातरम का विरोध जवाहर लाल नेहरू से लेकर आज की कांग्रेस तक के खून में है. उन्होंने आरोप लगाया कि वंदे मातरम पर चर्चा शुरू हुई तो गांधी परिवार के दोनों सदस्य सदन से नदारद थे.

Advertisement
Amit shah
अमित शाह ने वंदे मातरम पर चर्चा के दौरान कांग्रेस पर निशाना साधा (India today)
pic
राघवेंद्र शुक्ला
9 दिसंबर 2025 (Updated: 9 दिसंबर 2025, 09:44 PM IST)
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

राज्यसभा में राष्ट्रगीत वंदे मातरम पर चर्चा के दौरान अमित शाह ने बंकिम बाबू की अमरकृति का महिमामंडन तो किया. साथ ही पीएम मोदी की तरह कांग्रेस और जवाहर लाल नेहरू को भी लपेटे में ले ही लिया. उन्होंने कहा कि जिस वंदे मातरम के गान के साथ गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर कांग्रेस के अधिवेशनों की शुरुआत करते थे, आज उसकी चर्चा पर कांग्रेस पूछती है कि ये क्यों जरूरी है? अमित शाह ने कहा कि जवाहर लाल नेहरू ने अगर वंदे मातरम को बांटकर दो अंतरों तक सीमित न किया होता तो तुष्टीकरण की शुरुआत न होती और बाद में देश का बंटवारा नहीं होता. 

गृहमंत्री ने दावा किया कि जब वंदे मातरम पर चर्चा शुरू हुई तो गांधी परिवार के दोनों सदस्य (राहुल गांधी और सोनिया गांधी) सदन से नदारद थे. उन्होंने कहा कि वंदे मातरम का विरोध जवाहर लाल नेहरू से लेकर आज के कांग्रेस तक के खून में है. उन्होंने वंदे मातरम पर चर्चा के बंगाल चुनाव से कनेक्शन को सीधे तौर पर नकार दिया और कहा कि उनकी सरकार मुद्दों पर चर्चा करने से नहीं डरती है. उनके पास छिपाने को कुछ नहीं है लेकिन विपक्ष के लोग सदन ही नहीं चलने देते.

वंदे मातरम पर तकरीबन 45 मिनट तक अमित शाह ने ढेर सारी बातें कहीं. पूरा भाषण सुनने का समय नहीं है तो 12 बिंदुओं में उनके भाषण की प्रमुख बातें यहां पढ़ सकते हैं. 

1. 'वंदे मातरम' पर चर्चा की जरूरत

सदन में जब 'वंदे मातरम' की चर्चा हो रही है, तब कुछ सदस्यों ने लोकसभा में प्रश्न उठाया था कि 'वंदे मातरम' की चर्चा की जरूरत क्या है? 'वंदे मातरम' पर चर्चा की जरूरत और 'वंदे मातरम' के प्रति समर्पण की जरूरत 'वंदे मातरम' बना तब भी थी, आजादी के आंदोलन के वक्त भी थी, आज भी है और जब 2047 महान भारत की रचना होगी, तब भी रहेगी. क्योंकि यह अमर कृति मां भारती के प्रति समर्पण भक्ति और कर्तव्य के भाव जागृत करने वाली कृति है. जिनको आज 'वंदे मातरम' की चर्चा क्यों हो रही है वो समझ में नहीं आ रहा है, मुझे लगता है कि उन्हें नए सिरे से अपनी समझ पर ही सोचने की जरूरत है. 

2. बंगाल चुनाव से कनेक्शन?

कुछ लोगों को लगता है कि बंगाल में चुनाव आने वाला है, इसलिए 'वंदे मातरम' की चर्चा हो रही है. वो बंगाल चुनाव के साथ इस चर्चा को जोड़कर 'वंदे मातरम' की महिमा को कम करना चाहते हैं. ये सही है कि 'वंदे मातरम' के रचनाकार बंकिम बाबू बंगाल में पैदा हुए. बंगाल में गीत की रचना हुई और आनंदमठ जिसमें बाद में 'वंदे मातरम' समाहित हुआ, उसकी पृष्ठभूमि भी बंगाल थी. लेकिन जब 'वंदे मातरम' का प्रगटीकरण हुआ, वह बंगाल तक सीमित नहीं रहा था. देश तक भी सीमित नहीं रहा था. दुनिया भर में जहां भी आजादी के दीवाने थे, वह गुप्त बैठक भी करते थे तो पहले 'वंदे मातरम' का गान करते थे. आज भी सरहद पर हमारा जवान जब अपना सर्वोच्च बलिदान देता है या आंतरिक सुरक्षा के लिए देश के पुलिस का जवान सर्वोच्च बलिदान देता है तो जब वह अपने प्राण त्यागता है तो इसके मुंह पर एक ही मंत्र मंत्र होता है- 'वंदे मातरम'. 

a
अरविंद घोष ने वंदे मातरम को भारत के पुनर्जन्म का मंत्र बताया
3. 'भारत के पुनर्जन्म का मंत्र'

'वंदे मातरम' ने एक ऐसे राष्ट्र को जागरूक किया जो अपनी दिव्यशक्ति को भुला चुका था. राष्ट्र की आत्मा को जागरूक करने का काम 'वंदे मातरम' ने किया. महर्षि अरविंद ने कहा था कि 'वंदे मातरम' भारत के पुनर्जन्म का मंत्र है. श्री अरविंद का ये वाक्य 'वंदे मातरम' की महत्ता को बताता है. अरविंद घोष ने यह भी कहा कि देश को एक ऐसे मंत्र की आवश्यकता थी और ईश्वर ने उसे साकार करने के लिए ही बंकिम बाबू को इस भूमि पर भेजा था. श्री अरविंद का 'वंदे मातरम' के लिए भाव बच्चे-बच्चे के लिए एक प्रेरणास्रोत बन गया और यह हमारे आजादी का नारा बन गया.

4. संस्कृति ने तय की भारत की सीमा

हमारे देश को जो लोग समझते हैं, वो जानते हैं कि हमारा देश पूरी दुनिया में एक प्रकार से अनूठा देश है. दुनिया के कई देशों की रचना अधिनियमों से हुई. कहीं युद्धों के कारण हुई. कहीं युद्ध के बाद संधि के कारण हुई. भारत एकमात्र ऐसा देश है जिसकी सीमाएं कोई अधिनियम से तय नहीं की हैं. हमारे देश की सीमाएं हमारी संस्कृति ने तय की है और संस्कृति ने इस भारत को जोड़कर रखा है. इसीलिए सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का जो कंसेप्ट था, जो विचार था, उसे सबसे पहले गुलामी के कालखंड में जागरूक करने का काम बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय जी ने किया था.

5. 'बंकिम बाबू के शब्द सच हुए'

जब अंग्रेजों ने 'वंदे मातरम' पर कई सारे प्रतिबंध लगाए, तब बंकिम बाबू ने एक पत्र में लिखा था, मुझे कोई आपत्ति नहीं है. मेरे सभी साहित्य को गंगा जी में बहा दिया जाए लेकिन यह मंत्र 'वंदे मातरम' अनंत काल तक जीवित रहेगा. ये यह एक महान गान होगा और लोगों के हृदय को जीत लेगा. भारत के पुनर्निर्माण का यह मंत्र, आज हम देख रहे हैं कि बंकिम बाबू के वो शब्द सच हुए हैं. भले देर से ही सही पर ये पूरा राष्ट्र आज सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की परिकल्पना को स्वीकार कर आगे बढ़ रहा है. हम सब जो भारत माता की संताने हैं, वह मानते हैं कि यह देश कोई जमीन का टुकड़ा नहीं है. उसको हम मां के रूप में देखते हैं और उसका भक्तिगान भी करते हैं और वो भक्तिगान की अभिव्यक्ति ही 'वंदे मातरम' है. 

6. कांग्रेस ने किया महिमामंडन

कांग्रेस के अधिवेशनों ने भी 'वंदे मातरम' का गान किया. 1896 में गुरुवर टैगोर ने कांग्रेस अधिवेशन में इसको पहली बार सार्वजनिक रूप से गाया. 1905 में कांग्रेस के वाराणसी अधिवेशन में महान कवियत्री गायिका सरला देवी चौधरानी ने पूर्ण 'वंदे मातरम' का गायन किया और 15 अगस्त 1947 को जब देश आजाद हुआ. सुबह 6:30 बजे सरदार पटेल के आग्रह पर पंडित ओमकारनाथ ठाकुर ने आकाशवाणी से अपने मधुर स्वर में 'वंदे मातरम' का गान कर देश को भावुक कर दिया. इस भावना को देखते हुए संविधान सभा की अंतिम बैठक में 24 जनवरी 1950 को राष्ट्रगान के बराबर सम्मान देते हुए 'वंदे मातरम' को राष्ट्रगीत घोषित करने का काम किया गया.

b
गुरुदेव टैगोर (दायें) ने कांग्रेस अधिवेशन में गाया वंदे मातरम
7. 'मुद्दों पर चर्चा से नहीं डरते'

मैं कल (सोमवार, 8 दिसंबर) देख रहा था कि कांग्रेस के कई सदस्य सवाल कर रहे थे कि 'वंदे मातरम' की चर्चा क्यों जरूरी है'. वो इसको एक 'राजनीतिक हथकंडा' या 'मुद्दों पर से ध्यान भटकाने का एक हथियार' मानते थे. मुद्दों पर चर्चा करने से कोई नहीं डरता है. संसद का बहिष्कार हम नहीं करते हैं. (विपक्षी दल) संसद का बहिष्कार न करें. संसद चलने दें तो सब मुद्दों पर चर्चा होगी. हमारे पास डरने और छिपाने जैसा कुछ नहीं है. कोई भी मुद्दा हो, हम चर्चा करने के लिए तैयार हैं. 

8. ‘वंदे मातरम के विभाजन से देश बंटा’

'वंदे मातरम' का ये 150वां साल है. अब हम थोड़ा पीछे मुड़कर देखते हैं. जब 'वंदे मातरम' के 50 साल हुए तब क्या हुआ था? तब देश आजाद नहीं था और 'वंदे मातरम' की स्वर्ण जयंती हुई 1937 में. तब जवाहरलाल नेहरू जी ने 'वंदे मातरम' के दो टुकड़े कर उसको दो अंतरों तक सीमित करने का काम किया. 50वें पड़ाव पर 'वंदे मातरम' को सीमित कर दिया गया. वहीं से तुष्टीकरण की शुरुआत हुई और वो तुष्टीकरण बाद में देश के विभाजन का कारण बनी. मेरे जैसे कई लोगों का मानना है, कांग्रेस पार्टी को पसंद आए न आए, लेकिन अगर 'वंदे मातरम' के दो टुकड़े न करते तो देश का बंटवारा नहीं होता और देश पूरा होता.

9. वंदे मातरम गाने वालों को इंदिरा जी ने जेल भेजा

'वंदे मातरम' जब 100 साल का हुआ, सबको लगता था कि इसके 100 साल मनाए जाएंगे. लेकिन 100 साल हुआ तब 'वंदे मातरम' का महिमामंडन का सवाल ही नहीं था क्योंकि 'वंदे मातरम' बोलने वाले सारे लोगों को इंदिरा जी ने जेल में बंद कर दिया था. इस देश में आपातकाल लगा दिया गया. विपक्ष के लाखों लोगों को, समाजसेवियों को स्वयंसेवी संगठन के लोगों को जेल में भर दिया गया. बिना कारण अखबारों पर ताले लगा दिए गए. यहां तक कि आकाशवाणी में किशोर कुमार की आवाज ही नहीं आती थी. डुएट गाने भी लता मंगेशकर जी की आवाज में आते थे. 

10. 'वंदे मातरम' का विरोध कांग्रेस के खून में

जब 'वंदे मातरम' 100 साल का हुआ तो पूरे देश को बंदी बनाकर रख दिया गया और अब जब 150वां साल है. 150वें साल में लोकसभा में चर्चा हुई तो साहब ये कांग्रेस पार्टी की स्थिति देखिए. जिस कांग्रेस पार्टी के अधिवेशनों की शुरुआत गुरुवर टैगोर जैसे लोग 'वंदे मातरम' गाकर कराते थे, 'वंदे मातरम' कांग्रेस पार्टी के आजादी के आंदोलन का एक मंत्र बना था, उस 'वंदे मातरम' के महिमामंडन के लिए जब लोकसभा में चर्चा हुई तो गांधी परिवार के दोनों सदस्य नदारद थे. 'वंदे मातरम' का विरोध आज भी जवाहरलाल नेहरू से लेकर आज के कांग्रेस के नेतृत्व तक कांग्रेस के खून के साथ है. 

a
राहुल-सोनिया (दायें) की गैरमौजूदगी पर शाह (बायें) ने उठाए सवाल (India today)
11. विपक्ष के नेता कहते हैं वंदे मातरम नहीं गाएंगे

जब हम 'वंदे मातरम' गान की शुरुआत कर रहे थे, उस वक्त भी, मैं नाम लेना नहीं चाहता वरना ये औचित्य का सवाल उठाएंगे, लेकिन इंडी एलायंस के ढेर सारे लोगों ने कहा था कि हम 'वंदे मातरम' नहीं गाएंगे. मेरे पास उनके नामों की सूची है. मैंने मेरी आंख से देखा है.सारे सदस्य 'वंदे मातरम' के गान के पहले संसद में बैठे होते हैं. जैसे ही 'वंदे मातरम' होता है, खड़े होकर बाहर चले जाते हैं. मैं विश्वास के साथ कह रहा हूं कि भारतीय जनता पार्टी का एक भी सदस्य 'वंदे मातरम' के गान के वक्त सम्मान के साथ खड़ा न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता.

12. 'वंदे मातरम कभी कालबाह्य नहीं होगा'

मैंने पहले भी कहा है कि 'वंदे मातरम' कभी 'कालबाह्य' नहीं होगा. उसकी रचना हुई तब उसकी जितनी जरूरत थी, उतनी आज भी है. उस जमाने में 'वंदे मातरम' देश को आजाद बनाने का कारण बना और अमृतकाल में देश को विकसित और महान बनने का नारा 'वंदे मातरम' बनेगा, इसका मुझे पूरा विश्वास है. मैं मानता हूं कि सदन में बैठे सभी सदस्यों की साझी जिम्मेदारी है कि हम बच्चे-बच्चे के मन में 'वंदे मातरम' के संस्कार पुनर्जागृत करें. हर युवा के मन में 'वंदे मातरम' के नारे को स्थापित करें और हर किशोर को 'वंदे मातरम' की व्याख्या के रास्ते पर अपना जीवन समर्पित करने के लिए प्रेरित करें. 'वंदे मातरम' का ये उद्घोष ही हमारे आजादी के सेनानियों की कल्पना के भारत की रचना का कारण बनेगा. मैं मानता हूं कि सदन की भावना हमारी युवा पीढ़ी तक पहुंचेगी.

वीडियो: अमित शाह ने कहा, 'नेहरू ने वंदे मातरम को टुकड़ों में बांटने का काम किया', राज्यसभा में बहस छिड़ गई

Advertisement

Advertisement

()