महिला एडमिट हुई, सब कागज भेजे फिर भी इंश्योरेंस कंपनी ने क्लेम नहीं दिया, सुनिए आपबीती
Health Insurance Claim Rejection: परिवार का आरोप है कि मदद की जगह उन्हें महीनों तक बार-बार दस्तावेज जमा करने, अलग-अलग बहाने सुनने और आखिर में एक फ्रॉड का आरोप झेलना पड़ा है. कैसे और क्या हुआ? परिवार ने सब बताया है. एक्सपर्ट्स ने भी बताया है कि जब ऐसी दिक्कतें किसी को आएं तो उनसे कैसे निपटना चाहिए.

महाराष्ट्र के अमरावती में रहने वाली 29 साल की पूर्वी गुप्ता को इस साल फरवरी में डीप वेन थ्रोम्बोसिस (DVT) का पता चला. परिवार को भरोसा था कि उनका स्टार हेल्थ इंश्योरेंस मुश्किल समय में मदद करेगा. लेकिन परिवार का आरोप है कि मदद की जगह उन्हें महीनों तक बार-बार दस्तावेज जमा करने, अलग-अलग बहाने सुनने और आखिर में एक फ्रॉड का आरोप झेलना पड़ा है. इंडिया टुडे ने इस मामले पर सभी हितधारकों से बात करते हुए एक रिपोर्ट छापी है.
कैसे शुरू हुआ विवाद?रिपोर्ट के मुताबिक, पूर्वी गुप्ता को 17 फरवरी 2024 की रात अस्पताल में भर्ती कराया गया था. उनके भाई निखिल गुप्ता ने अगले दिन तय समय सीमा में इंश्योरेंस कंपनी को भर्ती होने की जानकारी दे दी. कंपनी ने पुष्टि की और एक क्लेम नंबर भी जारी किया. पूर्वी का इंश्योरेंस 2021 से था और 5 लाख रुपये का कवर था. 52,000 रुपये का यह उनका पहला इंश्योरेंस क्लेम था.
बार-बार दस्तावेज, बार-बार वही सवालनिखिल ने इंडिया टुडे को बताया कि सारे दस्तावेज भेजने के बाद भी कंपनी बार-बार वही कागज फिर से मांगती थी. हर कॉल पर नया प्रतिनिधि जुड़ता जिसे पिछले अपडेट के बारे में कुछ नहीं पता होता था. मार्च में कंपनी ने उन्हें पहली बार बताया कि डॉक्यूमेंट्स अधूरे हैं. अगले महीनों में भी यही जवाब मिलता रहा. 5 महीने बाद यानी 18 जुलाई तक क्लेम पेंडिंग रहा. आखिरकार 18 सितंबर को यह कहते हुए क्लेम रिजेक्ट कर दिया गया कि डॉक्यूमेंट्स जमा नहीं किए गए.
“फ्रॉड क्लेम” का दावाइस बारे में इंडिया टुडे ने इंश्योरेंस कंपनी स्टार हेल्थ से संपर्क किया. कंपनी से क्लेम को लेकर पूछा गया तो उन्होंने दावा किया कि पूरा क्लेम “फ्रॉड” था. इसी वजह से उन्होंने इसे रिजेक्ट किया है. कंपनी ने बताया कि डिस्चार्ज समरी फर्जी थी. पेशेंट्स की डिटेल्स मेल नहीं खा रही थीं. आरोप लगाया कि तारीखें और एंट्रीज “छेड़ी गई” दिखती हैं.
यह भी दावा किया कि डॉक्यूमेंट्स अस्पताल के फॉर्मेट से मेल नहीं खा रहे थे. यही वजह है कि कंपनी की जांच टीम ने इसे हेरफेर माना और क्लेम रिजेक्ट कर दिया. बाद में जब पॉलिसी होल्डर के जवाबों के साथ दोबारा संपर्क किया गया तो स्टार हेल्थ ने कहा कि वह अब कोई और बयान जारी नहीं करेगी.
परिवार ने क्या कहा?वहीं, कंपनी के आरोपों पर जब पूर्वी गुप्ता के परिवार से फिर बात की गई तो उन्होंने कम्पनी द्वारा लगाए गए सभी आरोपों का खंडन किया. उनके भाई ने कहा कि हमने जो डिस्चार्ज समरी दी, उसमें अस्पताल की मोहर और डॉक्टर के सिग्नेचर थे. अगर डॉक्यूमेंट्स फर्जी थे तो उन्होंने पहले क्यों नहीं बताया. कंपनी सिर्फ कहती रही कि डॉक्यूमेंट्स अधूरे हैं. डिस्चार्ज समरी में उनकी बहन का नाम और उम्र साफ-साफ लिखी है.
हैंडराइटिंग पर उन्होंने कहा कि अस्पतालों में अक्सर एक ही स्टाफ अलग-अलग शिफ्ट में नोट्स लिखता है. यह नॉर्मल है. उन्होंने यह सवाल किया कि क्या इंश्योरेंस कंपनी यह कह रही है कि हॉस्पिटलाइजेशन हुआ ही नहीं. डॉपलर टेस्ट एक बाहरी रेडियोलॉजी लैब में किया गया था. वह रिपोर्ट असली है. सभी दस्तावेज डिजिटल और फिजिकल दोनों रूप में जमा किए गए थे. जमा करने की रसीदें भी उनके पास हैं. अब वे इंश्योरेंस ओम्बड्समैन के पास जाएंगे.
एक्सपर्ट्स क्या कहते हैं?इंश्योरेंस समाधान की सह-संस्थापक शिल्पा अरोड़ा कहती हैं कि ऐसी समस्याएं आजकल आम होती जा रही हैं. कई बार परिवारों को बार-बार डॉक्यूमेंट्स देने पड़ते हैं. कई दावे जान-बूझकर लटकाए जाते हैं और लोग मजबूर होकर ओम्बड्समैन तक जाते हैं.
उन्होंने सलाह दी कि हर दस्तावेज ईमेल से भेजें ताकि रिकॉर्ड रहे. अगर 30 दिन में समाधान न मिले तो कंपनी के ग्रीवेंस अधिकारी और बीमा भरोसा प्लेटफॉर्म पर शिकायत करें. 30 दिन और न बीतें तो ओम्बड्समैन के पास जरूर जाएं.
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