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अखलाक हत्याकांड: आरोपियों ने जमानत के लिए जो तर्क दिए, सरकार ने भी कोर्ट में वही कहा

Akhlaq lynching and Murder case: योगी सरकार ने इस साल अक्टूबर में CrPC की धारा 321 के तहत आरोपियों का केस वापस लेने की मांग की थी. इसे लेकर सरकार ने ट्रायल कोर्ट में आवेदन किया था. राज्य सरकार ने अपने आवेदन में लगभग उन्हीं तर्कों को आधार बनाया है, जो आरोपियों ने दिया था.

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akhlaq lynching case up government withdrawal arguments same as convicts bail plea
यूपी सरकार ने अखलाक हत्याकांड के आरोपियों का केस वापस लेने की मांग की है. (Photo: ITG/File)
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सचिन कुमार पांडे
23 दिसंबर 2025 (Published: 01:41 PM IST)
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उत्तर प्रदेश सरकार ने अखलाक हत्याकांड के आरोपियों के केस वापस लेने के लिए वही तर्क दिए हैं, जो आरोपियों ने 8 साल पहले अपनी जमानत अर्जी में दिए थे. यूपी के चर्चित मॉब लिंचिंग केस के दो आरोपी पुनीत और अरुण को अप्रैल 2017 में जमानत दी गई थी. तब इलाहाबाद हाई कोर्ट ने पाया था कि गवाहों के बयान आपस में मेल नहीं खाते और उनमें विरोधाभास था.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक यूपी सरकार ने कोर्ट में आरोपियों का केस वापस लेने का जो आवेदन किया था, उसमें भी इन्हीं बातों को आधार बनाया गया है. रिपोर्ट में कोर्ट के रिकॉर्ड्स का हवाला दिया गया है. हालांकि, सरकार ने 8 साल पहले इन्हीं तर्कों को खारिज करते हुए आरोपियों की जमानत का विरोध किया था.

सरकार ने की थी केस वापस लेने की मांग 

मालूम हो कि यूपी की योगी सरकार ने इस साल अक्टूबर में CrPC की धारा 321 के तहत आरोपियों का केस वापस लेने की मांग की थी. इसे लेकर सरकार ने ट्रायल कोर्ट में आवेदन किया था. यह धारा सरकारी वकील को कोर्ट की सहमति से मुकदमे से पीछे हटने की अनुमति देती है. रिपोर्ट के मुताबिक राज्य सरकार ने अपने आवेदन में लगभग उन्हीं तर्कों को आधार बनाया है, जो आरोपियों ने कहा था. सरकार का भी कहना था कि मुख्य गवाहों के बयान में असामनता और विरोधाभास था.

रिपोर्ट के मुताबिक सरकार का कहना था कि मामले में चश्मदीदों के लिखित बयान में आरोपियों की संख्या दस बताई गई थी. जांच के दौरान गवाहों ने किसी भी आरोपी का नाम नहीं लिया. बाद में जब चश्मदीद शैस्ता का बयान सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज किया गया, तो उसने दस आरोपियों के अलावा छह और लोगों का नाम लिया था. इसमें अरुण, पुनीत, भीम, हरि ओम, सोनू और रवीण शामिल थे.

सरकार ने यह तर्क देते हुए कहा कि चश्मदीदों असकरी (अखलाक की मां), इकरमान (पत्नी), शैस्ता (बेटी) और दानिश के बयानों में आरोपियों की संख्या में बदलाव किया गया है. इसके अलावा गवाह और आरोपी दोनों एक ही गांव, बिसाड़ा के रहने वाले हैं. इसके बावजूद, शिकायतकर्ता और अन्य गवाहों ने अपने बयानों में आरोपियों की संख्या में बदलाव किया है.

बचाव में भी दिए गए थे यही तर्क

इससे पहले आरोपियों के वकील ने भी कोर्ट में बचाव का तर्क देते हुए अखलाक की पत्नी इकरमन और बेटी शैस्ता के बयानों का हवाला दिया था. वकील ने कहा था कि इकरमन ने आरोपियों का नाम हमलावर के रूप में नहीं बताया था. वहीं अखलाक की बेटी शैस्ता का बयान का भी हवाला देते हुए कहा था कि 13 अक्टूबर 2015 को दिए अपने पहले बयान में उसने पुनीत या अरुण का नाम नहीं लिया था. बाद में धारा 164 के तहत दिए अपने बयान में नाम बताया था. इसके बाद कोर्ट ने 6 अप्रैल 2017 को दो अलग-अलग आदेश पारित कर आरोपियों को जमानत दे दी थी. इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक इसी आधार पर बाद में कई अन्य आरोपियों ने भी हाई कोर्ट का रुख किया था और उन्हें जमानत मिल गई थी.

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मालूम हो कि अखलाक को 28 सितंबर, 2015 को गौतम बुद्ध नगर के दादरी के बिसाड़ा गांव में उसके घर से घसीटकर बाहर निकाला गया था. उसे इस शक में पीट-पीटकर मार डाला गया कि उसने गोहत्या की थी. इस मामले पर देश भर में बवाल हुआ था. मॉब लिचिंग के लिए देश में बढ़ती असहिष्णुता को जिम्मेदार ठहराया गया था. गौतम बुद्ध नगर पुलिस ने इस मामले में कई गिरफ्तारियां कीं थीं. ट्रायल कोर्ट में दायर अपनी चार्जशीट में, पुलिस ने 19 आरोपियों के नाम बताए थे. सभी आरोपियों पर भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) के तहत हत्या, दंगा और आपराधिक धमकी सहित कई आरोप हैं.

वीडियो: अखलाक हत्याकांड के आरोपियों पर योगी सरकार ने लिया बड़ा फैसला

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