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सरकार की रेबीज वैक्सीन 'अभयरैब' की बड़ी खेप में झोल, लोगों को बताया तक नहीं गया

ऑस्ट्रेलिया में दवाओं पर निगरानी रखने वाली संस्था ने अभयरैब वैक्सीन पर सवाल उठाया है. कहा गया है कि 2023 के अंत तक अभयरैब के फेक वैक्सीन बाजार में घूम रहे थे.

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अभयरैब वैक्सीन पर ऑस्ट्रेलिया की संस्था ने सवाल उठाए हैं. (सांकेतिक तस्वीरें- पीटीआई)
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राघवेंद्र शुक्ला
29 दिसंबर 2025 (Updated: 29 दिसंबर 2025, 07:48 PM IST)
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ऑस्ट्रेलिया में दवाओं की निगरानी करने वाली एक संस्था ने भारत में बनी रेबीज के वैक्सीन ‘अभयरैब’ की क्वालिटी पर सवाल उठाए हैं. संस्था ने कहा कि दो साल पहले भारत में बनी रेबीज वैक्सीन की एक खेप में टीके के नकली वर्जन सामने आए थे. साल 2023 के अंत तक ये ‘नकली’ वैक्सीन मार्केट में सर्कुलेट हो रही थीं. जिन लोगों ने ये वाली वैक्सीन लगवाई होगी, उन्हें सतर्क करते हुए संस्था ने कहा कि वो दोबारा से टीका लगवाएं क्योंकि अगर उन्हें नकली वैक्सीन लगी होगी तो वो रेबीज के खतरे से बाहर नहीं आ पाए होंगे.

ऑस्ट्रेलिया की जिस संस्था ने लोगों को ये सलाह दी है, उसका नाम Australian Technical Advisory Group on Immunisation (ATGI) है. जिस रेबीज वैक्सीन की बात उसने की, वह भारत सरकार की कंपनी इंडियन इम्यूनोलॉजिकल्स लिमिटेड (IIL) की बनाई ‘अभयरैब’ (Abhayrab) है. IIL ने ऑस्ट्रेलिया की संस्था की सलाह पर जवाब देते हुए उसकी जानकारी को ‘भ्रामक’ बताया. उसने कहा कि यह तो ‘अति सतर्कता’ है और जो दावे किए गए हैं वो ‘भ्रामक’ हैं.

IIL ने ये भी कहा कि ये मामला सिर्फ एक नकली बैच KA24014 के बारे में है. इसे मार्च 2024 में बनाया गया था और अब तो यह मार्केट से भी बाहर हो गया है. भारतीय बाजार में रेबीज की जितनी वैक्सीन हैं, उनमें 40 फीसदी हिस्सा अभयरैब का है. IIL का कहना है कि कंपनी के 24 साल के इतिहास में पहली बार ऐसा मामला सामने आया है. 

हालंकि IIL की सफाई के बाद भी ये सवाल उठ रहे हैं कि वैक्सीन का ये नकली बैच बाजार में जब घूम रहा था, तब भारत की निगरानी संस्थाएं क्या कर रही थीं? जिन मरीजों ने ये वैक्सीन लगाई होगी, क्या उन्हें समय पर ये जानकारी दी गई ताकि वो दोबारा वैक्सीनेशन करवा सकें? कुछ लोग ये सवाल भी उठा रहे हैं कि इस मामले का खुलासा भी हुआ तो भारत की किसी निगरानी संस्था के जरिए नहीं हुआ बल्कि एक विदेशी संस्था ने ये बात उठाई.

The Truth Pill: The Myth of Drug Regulation in India किताब लिखने में सहयोग करने वाले वकील प्रशांत रेड्डी ने इंडिया टुडे से कहा,

अगर किसी दवा का कोई बैच नकली पाया जाता है तो सरकार के पास ऐसा सिस्टम होना चाहिए जिससे इसकी जानकारी सीधे जनता तक पहुंचे. हमें यह खबर किसी विदेशी सरकार से नहीं सुननी चाहिए.

वहीं, हैदराबाद की बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. सिवरंजिनी संतोष एक्स पर अपनी पोस्ट में लिखती हैं, ‘जानवरों की देखभाल करने वाले और कुत्ते-बिल्ली के काटे गए लोगों ने ये नकली वैक्सीन लगवाई हो सकती है. उन्हें सार्वजनिक चेतावनी के जरिए बताया जाना चाहिए था ताकि वो सही और असरदार वैक्सीन लगवा सकें.’  

फेक दवाओं  के बारे में कौन बताएगा?

सवाल है कि क्या ऐसा कोई सिस्टम भारत में मौजूद है? जिसमें बाजार में घूम रही फेक दवाओं या वैक्सीन के बारे में जनता को बताने की जिम्मेदारी किसी पर हो या उन दवाओं को बाजार से हटाने की ही व्यवस्था हो? 

इंडिया टुडे से जुड़ीं सुमी सुकन्या दत्ता की रिपोर्ट के मुताबिक, ऐसी दवाओं या वैक्सीन को बाजार से रिकॉल करने यानी वापस लेने के लिए कोई ठोस व्यवस्था नहीं है जबकि इसके लिए ठोस कानून की लंबे समय से मांग की जा रही है.

सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन (CDSCO) भारत की प्रमुख दवा नियामक संस्था है. उसने साल 2024 की जुलाई में संशोधित ‘ड्रग रिकॉल नियम’ जारी किया था. इन नियमों के मुताबिक, फेक दवा या वैक्सीन को बाजार से वापस लेने की प्राथमिक जिम्मेदारी कंपनियों और मार्केटिंग एजेंसियों को ही दी गई है. ये नियम भी बाध्यकारी नहीं हैं. यानी सिर्फ दिशानिर्देश हैं, कानून नहीं. ये नियम दो तरह के रिकॉल के बारे में बताते हैं. 

- पहला है स्वैच्छिक रिकॉल. इसमें दवा या वैक्सीन की क्वालिटी में कमी देखकर कंपनियां खुद दवा वापस ले लेती हैं.

- दूसरा है वैधानिक रिकॉल. इसमें ड्रग कंट्रोल अधिकारी दवा वापस लेने का आदेश देते हैं. 

लेकिन इन दोनों नियमों में यह साफ नहीं है कि वैधानिक रिकॉल यानी सरकारी आदेश से दवा वापस लेने को कैसे लागू किया जाएगा और इसकी जानकारी आम लोगों तक कैसे पहुंचाई जाएगी. 

क्या अभयरैब की सूचना दी गई थी?

अभयरैब के मामले में सवाल है कि क्या वास्तव में किसी भारतीय निगरानी संस्था ने नकली वैक्सीन के बारे में कोई सार्वजनिक सूचना नहीं दी थी?  

इंडिया टुडे ने अपनी समीक्षा में पाया कि CDSCO या IIL की वेबसाइट पर नकली वैक्सीन को लेकर कोई भी सार्वजनिक चेतावनी नहीं दी गई थी. इस मामले में एकमात्र आधिकारिक सूचना दिल्ली ड्रग कंट्रोलर का लेटर था, जो ‘रिटेल डिस्ट्रीब्यूटर केमिस्ट्स अलायंस’ को भेजा गया था. इसमें CDSCO की ओर से राज्यों की संस्थाओं को भेजे गए एक ‘इंटरनल अलर्ट’ का हवाला दिया गया था. 

IIL के मैनेजिंग डायरेक्टर आनंद कुमार का कहना है कि अभयरैब के नकली बैच की पहचान जनवरी 2025 में IIL ने खुद की थी. संस्था ने अपने ‘आंतरिक सतर्कता और गुणवत्ता निगरानी सिस्टम’ के जरिए इस बैच को आइडेंटिफाई किया था. लेकिन अहम सवाल ये है कि इसके बाद कंपनी ने क्या किया? क्योंकि एक बैच में हजारों वैक्सीन होती हैं, जो हजारों लोगों को लगी हो सकती हैं. 

आनंद कुमार इस पर कहते हैं कि नकली बैच की पुष्टि होते ही कंपनी ने CDSCO समेत सभी नियामक एजेंसियों को इसकी जानकारी दी. ताकि मरीजों की सुरक्षा को खतरा न हो. जब उनसे ये पूछा गया कि जिन लोगों को यह वैक्सीन लगी हो सकती है उन्हें सार्वजनिक रूप से चेतावनी क्यों नहीं दी गई, तो कुमार ने कहा कि इस मामले को उचित नियामक और जांच चैनलों को बता दिया गया था. क्योंकि जरूरत के हिसाब से जनता को इसकी जानकारी देना उनका काम है.

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