कहानी है मुंबई में घूम रहे एक सीरियल किलर की. जो फिल्म क्रिटिक्स को ढूंढ़-ढूंढ़करमार रहा है. और उनके माथे पर गोद रहा है सितारे. ऐन उतने ही जितने उन्होंने अपनेलास्ट मूवी रिव्यू में दिए थे. और उसी स्टाइल में, जिस स्टाइल की शब्दावली उन्होंनेअपने रिव्यू में इस्तेमाल की थी. जैसे एक आलोचक ने लिख दिया कि फिल्म का फर्स्ट हाफसही ट्रैक पर है लेकिन सेकंड हाफ बिखरा हुआ है. तो उसके शरीर का आधा हिस्सा रेलवेट्रैक पर और बाक़ी आधा हिस्सा छत्तीस टुकड़ों में बिखरा हुआ मिलेगा. क़ातिल है या कवि!खैर. आलोचक बिरादरी में पैनिक है. इतना कि रिव्यूज़ का कारोबार ही ठप्प पड़ गया है.देखिए वीडियो.