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Zwigato : मूवी रिव्यू

कपिल शर्मा की फिल्म में शहाना गोस्वामी स्टार बनकर उभरी हैं.

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zwigato movie review Kapil sharma shahana goswami
कपिल शर्मा और शहाना गोस्वामी
17 मार्च 2023 (Updated: 17 मार्च 2023, 11:34 IST)
Updated: 17 मार्च 2023 11:34 IST
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भारत में दो प्रमुख फ़ूड डिलीवरी कम्पनीज़ हैं. Zomato और Swiggy. इन दोनों को एक साथ मिलाएंगे, तो एक शब्द बनेगा  Zwigato. इसी नाम से 'फ़िराक़' और 'मंटो' बनाने वाली नंदिता दास ने एक फिल्म बनाई है. इसे अप्लॉज एंटरटेनमेंट ने प्रोड्यूस किया है. इसमें Kapil Sharma फूड डिलीवरी बॉय बने हैं. पिक्चर टोरंटो इंटरनेशन फिल्म फेस्टिवल (TIFF) में दिखाई जा चुकी है. इसकी चारों ओर तारीफ़ भी हुई. अब ये थिएटर में रिलीज हो गई है. देखते हैं तारीफ़ के लायक है या नहीं?

कहानी क्या है?

झारखंड का रहने वाला मानस सिंह महतो. ओडिशा के भुवनेश्वर में रहता है. पहले घड़ी की फैक्ट्री में मैनेजर था. पैंडमिक ने नौकरी छीन ली. अब Zwigato नाम की फूड डिलीवरी कंपनी में काम करता है. गगनचुम्बी इमारतों और बसों से लेकर मंदिर तक में फूड डिलीवर करता है. ऐसी जगहों पर भी जाता है, जहां लिफ्ट में चढ़ना डिलीवरी वालों को अलाउड नहीं है. एक ओर उसके फूड डिलीवरी का और दूसरी ओर जीवन का संघर्ष. परिवार में उसकी पत्नी प्रतिमा है. दो बच्चे हैं और एक बूढ़ी मां. पैसों की किल्लत है. प्रतिमा काम करना चाहती है. पर मानस का मेल ईगो इसकी इजाज़त नहीं देता. ये तो रही कहानी. अब ज़रा पिक्चर की कुछ अच्छी और कम अच्छी बातें जान लेते हैं. पर उससे पहले ये कि, इस फिल्म में स्पॉइलर जैसा कुछ है नहीं. इसलिए बिल्कुल चिंता न करें कि सबकुछ मैंने ही बता दिया. इतना सब ट्रेलर में ही दिखा दिया है. अब मुद्दे पर आते हैं.

# कहते हैं सिनेमा वो अच्छा जिसका सबटेक्स्ट तगड़ा हो. सबटेक्स्ट माने जो दिखाया जा रहा है, उसके भीतर आप और क्या देख सकते हैं? 'ज़्विगाटो' के भीतर आप बहुत कुछ देख सकते हैं. जो सामने दिख रहा है, उसके पीछे कुछ और भी प्लस है. रीड बिटवीन द लाइन्स वाला मामला है. फिल्म में डायलॉग कम, दृश्य ज़्यादा बोलते है.

# फिल्म अपर-लोअर क्लास के विभेद को दिखाती है. इसमें सोशल जस्टापोजीशन बहुत अच्छा है. जैसे एक जगह प्रतिमा अपने बच्चों को स्कूल के लिए टिफिन बांधकर देती है. दूसरी ओर जिस स्कूल में बच्चे पढ़ते हैं, उसके प्रिंसिपल के घर मानस डिलीवरी करने गया है. वो खाना प्रिंसिपल के बेटे को देता है और वो टिफिन के तौर पर वो खाना अपने स्कूल बैग में रख लेता है. बीच-बीच में मजदूर मंडी दिखती है. आग में झुलसे आदमी पर वीडियो बनाने को आतुर कुछ असंवेदनशील लोग दिखते हैं. और ऐसे ही तमाम सीक्वेंस, जिनका कहानी से कोई सरोकार नहीं है. पर समाज से ज़रूर है.

फिल्म में कपिल शर्मा

# कई मौकों पर सोशल कमेंट्री जबरन घुसेड़ी गई मालूम होती है. एक आदमी, जो मानस से दौड़कर पूछने आता है कि साइकिल से डिलीवरी हो सकती है. यहां थोड़ा चीज़ें बनावटी दिखती हैं. कपिल गाड़ी चलाए जा रहे हैं, वो आदमी पीछे दौड़े जा रहा है. ऐसे ही एक जगह असलम नाम के आदमी को मंदिर के अंदर जाकर डिलीवरी करने से डर लगता है. उसकी जगह मानस डिलीवरी करने जाता है. लौटकर असलम उससे कहता है, भाई आज तुमने बचा लिया. मानते हैं, डर है, पर ये वाला डर थोड़ा ज़बरदस्ती लगा.

# Zwigato सिर्फ एक सोशल ड्रामा नहीं है. ये एक परिवार की भी कहानी है. एक परिवार कैसे कम संसाधनों में निबाह कर रहा है. ये लगभग 70 प्रतिशत भारतीय परिवारों की कहानी है. पुरुष और स्त्री के संबंधों का भी ये अच्छा रिप्रेजेंटेशन है. एक जगह प्रतिमा को ये पता है कि मानस क्यों परेशान है? पर वो मानस से इस बारे में नहीं पूछती. माने कई ट्रैजिक मुगालतों को भी फिल्म छूती है.

# आर्ट डिपार्टमेंट ने बहुत अच्छा काम किया है. चटाई, सिलाई मशीन और छोटे-छोटे बर्तन से लेकर सबकुछ अपनी सही जगह पर है. फ्रेम में सबकुछ रियल लगता है. कई बार ऐसी फिल्मों के साथ ये होता है कि धरातल की सच्चाई से प्रोडक्शन डिजाइन मेल नहीं खाता. यहां बिल्कुल ऐसा नहीं है. आपको एक भी चीज़ ऐसी नहीं मिलेगी, जिसके लिए आपको लगे ये थोड़ा ज़्यादा हो गया. बहुत अच्छा काम है.

# नंदिता दास के डायरेक्शन में एक बात है कि वो हर जगह वोकल नहीं हुई हैं. कुछ कहा है और बहुत ज़्यादा दर्शकों के लिए छोड़ दिया है. जैसे एक सीन है. जिसमें मानस और प्रतिमा ट्रेन से तेज़ बाइक दौड़ाने की कोशिश कर रहे हैं. कितना प्यारा सीन है! ज़मीन पर बैठा व्यक्ति आसमान छूने की चाहत रखता है. यही ट्रैजिक मुगालते हैं.

फिल्म की स्टार शहाना 

# कपिल शर्मा फिल्म में अपनी छवि के विपरीत हैं. हरदम हंसाने वाला आदमी यहां सीरियस है. कपिल ने मानस के रोल की आत्मा को ढंग से पकड़ा है. उन्होंने आम आदमी की दुविधाओं, संकोचों और दुख में डूबे ह्यूमर को अच्छा रिप्रेजेंट किया है. पर उनके बोलने का तरीका कई मौकों पर आर्टीफ़िशियल लगता है. खासकर पहले सीन में, जैसे वो अभी किरदार का सुर न पकड़ पाए हों. वो ऐक्टिंग बहुत उम्दा करते हैं. एक्स्प्रेशन भी ऐप्ट हैं. पर उनका झारखंडी लहजा थोड़ा बनावटी है. कपिल की पत्नी के रोल में हैं शहाना गोस्वामी. मैं तो उनका फैन हो गया. इतना कमाल काम. उनकी हंसी में भी एक मध्यवर्गीय स्त्री का संकोच है. जैसे मैंने बचपने में अपनी मां को देखा है. ठीक वैसी ही इसमें शहाना लगीं. अब इससे ज़्यादा तारीफ़ में क्या ही कह सकता हूं. एक सीन है जहां पड़ोसन रोटी मेकर के बारे में शहाना को बताती है. कैसे इसमें गोला रखो और एकदम परफेट गोल रोटी बनेगी. वहां शहाना जिस मासूमियत से पूछती हैं: "रोटी फूलेगा भी!" वो फिल्म में उनकी ऐक्टिंग का पीक पॉइंट है. ऐसे कई पीक पॉइंट आपको फिल्म में मिलेंगे.

# मजदूरों की जमात को भी फिल्म रिप्रेजेंट करती है. चूंकि फिल्म का किरदार मानस भी एक मजदूर है. उसकी कहानी के पैरलल फैक्ट्री मजदूरों की कहानी भी चलती है. कैसे कुछ मजदूर संघर्ष कर रहे हैं और दूसरों को उनसे मतलब नहीं है. उन्हें अपना घर परिवार पालना है. नंदिता दास के पास समय कम था, इसलिए मुझे लगा वो एक ही फिल्म में सबकुछ थोड़ा-थोड़ा दिखा देना चाहती हैं. जो इस फिल्म की सबसे कम अच्छी बात है.

नंदिता की तरह ही मेरे पास भी समय और शब्द दोनों कम हैं, इसलिए कम समय में सबकुछ कह देना चाहता था. थोड़ा कहा और बहुत कुछ बच भी गया. शुक्रिया.

वीडियो: मूवी रिव्यू: दमन

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