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'जवान' के विलन विजय सेतुपति की पूरी कहानी, जो उधार चुकाने के लिए एक्टर बने थे

विजय सेतुपति की पूरी कहानी: अकाउंटेंट से एक्टर कैसे बने, चावल पकाते मजदूरों की वजह से उन्हें 'मक्कल सेलवन' की उपाधि कैसे मिली, शाहरुख की फिल्म के विलन कैसे बने, सब जान लीजिए.

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विजय सेतुपति साल 2023 में चार हिंदी प्रोजेक्ट्स में नज़र आएंगे.
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यमन
22 सितंबर 2023 (Published: 06:50 PM IST)
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तारीख 09 जून 2022. नयनतारा और विगनेश सिवन की शादी थी. रजनीकांत, शाहरुख खान और एटली जैसे लोगों का नाम मेहमानों में शामिल था. उसी फंक्शन में विजय सेतुपति भी शरीक हुए थे. वो शाहरुख के पास पहुंचे और कहा कि सर, मैं आपका विलन बनना चाहता हूं. शाहरुख और एटली उन दिनों एक फिल्म पर काम कर ही रहे थे. उन्हें बस अपना विलन नहीं मिला था. शाहरुख बताते हैं कि वो खुद विजय सेतुपति को विलन के तौर पर सोच रहे थे लेकिन यहां विजय ने खुद उन्हें अप्रोच कर लिया. विजय उनकी फिल्म के विलन बने. ये फिल्म थी ‘जवान’, जो बीती 07 सितंबर को रिलीज़ हुई. 

विजय सेतुपति ने फिल्म में काली गायकवाड नाम का किरदार किया. वही काली जो एंड में आज़ाद और विक्रम राठौड़ को गाना गाने नहीं देता. खैर विजय के लिए ये रोल मिलना जितना आसान था, उससे पहले तक की ज़िंदगी उतनी ही मुश्किल थी. विजय सेतुपति की लाइफ को थोड़ा और करीब से देखने की कोशिश करते हैं.         

छोटी उम्र ने कमल हासन की फिल्म से निकलवा दिया 

साल 1994 में कमल हासन की फिल्म ‘नम्मावार’ आई. ये वाकया फिल्म की शूटिंग के दिनों का है. विजय सेतुपति उस दौरान 11वीं कक्षा में पढ़ते थे. एक दिन पता चला कि उनके पसंदीदा कमल हासन की फिल्म की शूटिंग उन्हीं के शहर में होने वाली है. वो पहले फिल्म की शूटिंग देखने जाना चाहते थे. फिर किसी ने बताया कि फिल्म वालों को कुछ लोकल लड़कों की ज़रूरत है. उन्हें कॉलेज स्टूडेंट्स के रोल में दिखाया जाएगा. विजय का कद और शक्ल पर दिखाई देने वाली ना के बराबर मूंछें इस बात की साक्षी थीं कि वो कॉलेज स्टूडेंट तो नहीं दिखते. फिर भी उन्होंने अपना नाम दे दिया. 

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‘नम्मावार’ में कमल हासन. 

विजय को रोल नहीं मिला. मेकर्स का कहना था कि वो किरदार के लिहाज़ से कुछ ज़्यादा ही छोटे हैं. विजय को भीड़ में खड़े होकर अपने हीरो को हरी बुलेट मोटरसाइकिल चलाते देख ही संतोष करना पड़ा. आगे एक्टर बन जाने के बाद वो ‘विक्रम’ में कमल हासन के विलन बने.      

भारी लोन उतारना है, एक्टर बन जाते हैं 

स्कूली पढ़ाई पूरी हो जाने के बाद विजय ने कॉलेज में बी.कॉम में एडमिशन लिया. लेकिन उन्होंने सिर्फ कॉलेज की पढ़ाई नहीं की. बल्कि उसके साथ कई सारी नौकरियां भी की. कपड़ों के शोरूम में ग्राहकों को रंग-बिरंगे कपड़े दिखाते, टेलीफोन बूथ में काम करते, अकाउंटेंट के ऑफिस में कागज़ी काम करते. परिवार पर 10 लाख रुपए का भारी लोन था. वही विजय से इतनी मेहनत करवा रहा था. इतनी नौकरियां एक साथ करने के बावजूद परिवार की कोई खास मदद नहीं हो पा रही थी. इस पॉइंट पर उन्होंने बेहतर भविष्य के लिए दुबई जाने का फैसला लिया. अच्छी सैलरी और अच्छी लाइफस्टाइल की तलाश उन्हे दुबई ले गई. 

vijay sethupathi
विजय ने हमेशा से कंटेंट ड्रिवन सिनेमा पर ध्यान दिया है.  

विजय सेतुपति दुबई में बतौर अकाउंटेंट काम करने लगे. कुछ समय तक सब अच्छा था. शादी भी हो गई. लेकिन धीरे-धीरे ज़िंदगी थकाने और पकाने लगी. सब नीरस सा लगने लगा. उन्हें पहली संतान होने वाली थी. तभी मन में एक ख्याल आया कि अगर कुछ करना है तो यही सबसे सही समय है. उन्होंने खुद को सिर्फ पांच साल की डेडलाइन दी. वो फिल्मों में आने का मन बना चुके थे. 

उनका मानना था कि फिल्मों में काफी पैसा है. अगर कोशिश की जाए तो लोन भी उतर सकता है. किसी ने बता दिया कि तुम्हारा चेहरा तो बड़ा फोटोजेनिक है, फिल्मों में ट्राय क्यों नहीं करते. विजय अब तक परिवार समेत इंडिया वापस आ चुके थे. एक्टर बनने का सफर उन्हें सबसे पहले ले गया कूदु-पी-पट्टारी के दरवाज़े पर. ये एक थिएटर ग्रुप था, जो एक्टिंग की वर्कशॉप भी रखते थे. विजय को यहां पहुंचने में देरी हो गई. ये लोग अपने एक्टिंग कोर्स बंद कर चुके थे. इधर-उधर फ़रियाद की तो पता चला कि एक अकाउंटेंट की पोस्ट खाली है. विजय ने मन में दूसरे विचार को आने ही नहीं दिया. उन्होंने ये नौकरी लपक ली. 

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यही नौकरी उनकी पहली एक्टिंग क्लास भी बनी. विजय अपना काम करते हुए वहां आने वाले एक्टर्स को देखते. उनके हाव-भाव को बारीकी से समझने की कोशिश करते. एक्टर्स को दी जाने वाली सलाह को कान लगाकर सुनते. वो मानते हैं कि यहीं से उन्होंने एक्टिंग के शुरुआती टिप्स सीखे थे.            

एक ‘पिज़्ज़ा’ जिसने पूरी भूख मिटा दी 

विजय सेतुपति ने हमेशा भीड़ से अलग साख बनाई. बाकी ऐक्टर्स हीरो सेंट्रिक फिल्में कर रहे थे, सेतुपति का ध्यान तब सिर्फ कंटेंट ड्रिवन सिनेमा पर था. उनका फोकस साफ था. ऐसी फिल्में करनी हैं जिनकी कहानी दमदार हो, किरदार की आवाज़ में वजन हो चाहे फिर उसका रोल भले ही छोटा पड़ जाए. इसी फलसफे को मानते हुए उन्होंने 'पुदुपेट्टई', 'नान महान अल्ला' और ऐसी अनेकों फिल्मों में माइनर रोल्स किए. इसके बाद आई Thenmerku Paruvakaatru. ये विजय सेतुपति की पहली मेजर फिल्म थी. लेकिन उन्हें सफल ब्रेकथ्रू दिलवाया उनकी अगली फिल्म ‘पिज़्ज़ा’ ने. ‘पिज़्ज़ा’ के डायरेक्टर कार्तिक सुब्बाराज और सेतुपति ने इससे पहले 'थुरु' नाम की एक शॉर्ट फिल्म पर भी साथ काम किया था. ये वही कार्तिक सुब्बाराज हैं, जिन्होंने आगे चलकर ‘पेट्टा’, ‘जिगरठंडा’ और ‘जगमे थंडीरम’ जैसी फिल्में बनाई.

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विजय सेतुपति के करियर की दिशा-दशा बदलने वाली फिल्म.  

‘पिज़्ज़ा’ एक हॉरर फिल्म थी लेकिन टिपिकल किस्म की फिल्म नहीं. ‘पिज़्ज़ा’ से किसी को ऐसी उम्मीद नहीं थी कि ये कुछ छप्परफाड़ कमाल कर देगी. हल्की शुरुआत के बाद वर्ड ऑफ माउथ के चलते फिल्म रफ्तार पकड़ने लगी. फिल्म लोगों को पसंद आ रही थी. क्रिटिक्स के पास कहने को सिर्फ अच्छी ही बातें थीं. यही हाल जनता का भी था. डेढ़ करोड़ रुपए की लागत में बनी फिल्म ने अपने बजट से चार गुना कमाई कर डाली थी. हर बड़े स्टार की लाइफ में वो पॉइंट आता है, जिसके लिए कहते हैं कि उसके बाद उन्हें पीछे मुड़कर नहीं देखना पड़ा. विजय सेतुपति के लिए ये ऐसा ही पल था. अब उन्हें कहीं भी काम मांगने की ज़रूरत नहीं थी. 

विजय सेतुपति से ‘मक्कल सेलवन’ बनने की कहानी 

विजय के करियर की प्रमुख फिल्मों में से एक ‘धर्मादुराई’ रही है. उस फिल्म के गाने Aandipatti Kanava Kaathu की शूटिंग होनी थी. विजय बाकी लोगों से पहले सेट पर पहुंच गए. सभी का इंतज़ार करने लगे. तभी उन तक एक तीव्र महक पहुंची. पास के मंदिर में कुछ मजदूर इमली चावल बना रहे थे. उन्होंने अपने ड्राइवर को उनके पास भेजा कि क्या थोड़े चावल उन्हें भी मिल सकते हैं. मजदूरों ने एक प्लेट में चावल थमा दिए. थोड़ी देर बाद फिल्म के डायरेक्टर सीनू रामासामी भी वहां पहुंच गए. विजय ने उन्हें भी चावल खिलाए. उनकी ज़ुबान पर भी स्वाद चढ़ गया. थोड़े और चावल मांगने की गुज़ारिश की गई. मजदूरों को कोई आपत्ति नहीं थी. इसी घटना से प्रभावित होकर सीनू ने विजय सेतुपति को ‘मक्कल सेलवन की उपाधि दी. साथ ही खुश होकर अपनी तरफ से 500 रुपए भी दिए.   

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‘मैरी क्रिसमस’ के एक स्टिल में विजय सेतुपति और कटरीना कैफ. 

तमिल, तेलुगु, मलयालम और कन्नड़ा सिनेमा में काम करने के बाद विजय सेतुपति ने हिंदी सिनेमा में भी अपनी कलाई खोलनी शुरू कर दी है. साल 2023 की शुरुआत में आई सीरीज़ ‘फर्ज़ी’ हिंदी में रिलीज़ हुआ उनका पहला काम था. वहां ज़ाकिर हुसैन के साथ उनके सीन्स को खासा पसंद किया गया. उसके बाद जून में उनकी फिल्म ‘मुंबईकर’ रिलीज़ हुई. ‘जवान’ आ ही चुकी है. इसी साल दिसम्बर में ‘मैरी क्रिसमस’ भी आने वाली है. इसे तमिल और हिंदी में एक साथ बनाया गया है. श्रीराम राघवन फिल्म के डायरेक्टर हैं. विजय के साथ कटरीना कैफ ने यहां लीड रोल किया है. 

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