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मूवी रिव्यू: अनपॉज्ड - कोविड काल की कमाल कहानियां, जो आपका दिल खुश कर देंगी

पांच शानदार डायरेक्टर्स की फिल्मों का गुलदस्ता.

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जो 2020 में हम भुगत रहे हैं, उन्हीं त्रासदियों के इर्द-गिर्द बनी फिल्म है ये.
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मुबारक
18 दिसंबर 2020 (Updated: 18 दिसंबर 2020, 12:34 PM IST) कॉमेंट्स
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अमेज़न प्राइम पर रिलीज़ हुई है 'अनपॉज्ड'. ये एक एंथोलॉजी फिल्म है. छोटी-छोटी पांच कहानियों का गुलदस्ता. छोटी सी, स्वीट सी फिल्म. पांच डायरेक्टर्स और कुछ कमाल के एक्टर्स के साथ बनाई गई. एक्टर्स भी ऐसे कि नाम सुनने भर से फिल्म देखने का मन कर जाए. तो इन्हीं सब बातों से प्रेरित होकर हमने देख डाली फिल्म. कैसी लगी, क्या है फिल्म में, आइए बताते हैं.
इस फिल्म की सबसे ख़ास बात ये है कि इसकी तमाम कहानियां कोविड-19 और उससे उपजे असाधारण हालात के इर्द-गिर्द हैं. पिछले 9 महीनों में दुनिया ने बहुत कुछ नया देखा. नए तौर-तरीके सीखे, नई शब्दावलियों से परिचित हुए. लॉकडाउन, क्वारंटीन, सोशल डिस्टेंसिंग जैसी चीज़ें पहली बार अनुभव की. इन सबका समाज के हर तबके पर अलग-अलग तरह से असर हुआ. इसी असर को अलग-अलग परिवेश के व्यक्तियों के नज़रिए से दिखाती है ये फिल्म. आइए जानते हैं कि हर कहानी में आपको क्या मिलेगा.
1. ग्लिच डायरेक्टर: राज एंड डीके कास्ट: सैयामी खेर, गुलशन देवैया
प्रेम की कहानी. भविष्य की कहानी. कहानी के अनुसार कोविड-19 इतिहास की बात है. अब कोविड-30 चल रहा है. दुनियाभर में इस वायरस से 60 लाख लोग मर चुके हैं. वर्क फ्रॉम होम का WFH, EFH में बदल चुका है. एवरीथिंग फ्रॉम होम. ऐसे में डेटिंग का मात्र एक ऑप्शन है. वर्चुअल डेटिंग. ऐसी ही एक डेट पर हमारा हीरो अहान मिलता है आयशा हुसैन से. जो अहान को पहली निगाह में पसंद आ जाती है. लेकिन उसे ये नहीं पता कि आयशा वैक्सीन की खोज में लगी एक वायरस वॉरियर है. और अहान है एक रजिस्टर्ड हाइपो. जैसे ही इस बात का खुलासा होता है, अहान भाग खड़ा होता है. आगे जो होता है वो इंटरेस्टिंग है. इन्फेक्शन की दहशत भी है और आयशा के प्रति प्रेम भी. अहान क्या करता है, फिल्म देखकर जान लीजिएगा.
Virtual Date
सैयामी खेर और गुलशन देवैया की केमिस्ट्री अच्छी है.

सैयामी और गुलशन दोनों ही बहुत स्वीट लगे हैं फिल्म में. दोनों की केमिस्ट्री उम्दा है. संवाद प्रासंगिक टिप्पणियों से भरपूर हैं. वैलेंटाइन्स डे बैन होने, थाली-ताली बजाने जैसे इवेंट्स पर चुटकियाँ हैं, जो यकीकन हंसाती हैं. गो कोरोना गो वाली महिला की आवाज़ आप झट से पहचान लेंगे. जो गाना बजता है उसके बोल भी बड़े दिलचस्प हैं. जैसे 'जीपीएस न ढूँढ पाए इतना तुझमें खोए' या फिर 'गिटार तूने था बजाया मैं रहा था सुन, कितनी स्वीट थी वो तेरी चोरी की धुन'.
2. अपार्टमेंट डायरेक्टर: निखिल अडवाणी कास्ट: ऋचा चड्ढा, सुमित व्यास, इश्वाक सिंह
उम्मीद की कहानी. देविका एक मशहूर मैगज़ीन ट्रू पेज की मालकिन है. मैगज़ीन का एडिटर उसका पति साहिल है. देश में प्रधानमंत्री का सुझाया जनता कर्फ्यू लागू किया जा रहा है और दूसरी तरफ देविका किसी वजह से लगातार सुसाइड की कोशिश कर रही है. किस वजह से? क्या उस वजह का साहिल से कोई लेना-देना है? इस सबमें देविका के परोसी चिराग का क्या रोल है? ये सब फिल्म देखकर जान लीजिएगा. हम स्पॉइलर नहीं देंगे. बस इतना बता देते हैं कि तीनों एक्टर्स टॉप क्लास परफॉरमेंस देते हैं. देविका के रोल में ऋचा चड्ढा और साहिल निभाते सुमित व्यास कमाल हैं ही, 'पाताललोक' से फेम हासिल कर चुके इश्वाक सिंह यहां भी चमकते हैं.
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ऋचा चड्ढा का निभाया मैगज़ीन ओनर का किरदार कन्विंसिंग लगता है.

3. रैट-अ-टैट डायरेक्टर: तनिष्ठा चटर्जी कास्ट: लिलेट दुबे, रिंकू राजगुरु
ख़ुशियों की कहानी. लॉकडाउन ने कई अजीब स्थितियां क्रिएट की हैं. ऐसी ही एक सिचुएशन में अर्चना जी और प्रियंका को साथ वक्त गुज़ारना पड़ रहा है. सोसायटी में रहने वाली अर्चना जी अपने सदा शिकायती नेचर की वजह से बदनाम हैं. प्रियंका, फिल्म इंडस्ट्री में प्रॉडक्शन डिज़ाइनर है और लॉकडाउन में काम न मिलने की वजह से आर्थिक तंगी से जूझ रही है. दोनों का कुछ समय का साथ क्या नया गुल खिलाता है, फिल्म में देखिए. शिकायती अर्चना जी के कैरेक्टर में लिलेट दुबे कमाल लगती हैं. बार-बार मास्क सही से लगाने की हिदायत देती अर्चना जी हमें अपने आसपास के किसी किरदार की याद दिलाती है. ग़लत शब्द बोलने वाली प्रियंका के रोल में सैराट फेम रिंकू राजगुरु बेहद कन्विंसिंग लगती है. ये वाली कहानी बहुत मीठी है. दोनों ही एक्ट्रेस आपको मुस्कुराने पर मजबूर कर देंगी.
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लिलेट दुबे और रिंकू राजगुरु, दोनों ही बेहद स्वीट लगी हैं.

4. विषाणु डायरेक्टर: अविनाश अरुण कास्ट: अभिषेक बनर्जी, गीतिका विद्या ओहल्यान
सपनों की कहानी. एक तरफ जहाँ कुछ लोगों के लिए लॉकडाउन ज़रा सी सहमत है, वहीँ कुछ लोगों के लिए अस्तिव बचाने का संघर्ष. ऐसी ही एक मज़दूर फैमिली है मनीष, सीमा और उनका बेटा मोनू. लॉकडाउन के बाद मुंबई में फंस गए हैं. मकान मालिक ने निकाल दिया तो एक सैम्पल फ्लैट में चोरी से रह रहे हैं. एक तरफ राशन ख़त्म हो रहा है तो दूसरी तरफ स्मगल करके गांव पहुंचाने वाले इतने पैसे मांग रहे हैं कि उनका जुगाड़ करना नामुमकिन है. समस्या का हल कैसे निकलेगा? निकलेगा भी या नहीं, फिल्म देखकर पता करिए.
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अभिषेक बैनर्जी और गीतिका ओहल्यान अब ट्रस्टेड एक्टर्स माने जाने लगे हैं.

पाताललोक के हथोडा त्यागी अभिषेक और सोनी सीरीज़ की सोनी, गीतिका ने बहुत उम्दा काम किया है. मज़दूरों की देहबोली को बड़ी सूक्ष्मता से पकड़ा है. एक सीन में जब सीमा को सड़क पर खाना बांटने वाले मिलते हैं, वो सीन बढ़िया बन पड़ा है. 'जो शहर रोटी दे, वो अच्छा है' जैसा डायलॉग गीतिका जिस बेचारगी से बोलती हैं, सीधे आपकी संवेदनाओं तक पहुंचता है. बढ़िया अदाकारी.
5. चाँद मुबारक डायरेक्टर: नित्या मेहरा कास्ट: रत्ना पाठक शाह. शार्दुल भारद्वाज.
दोस्ती की कहानी. इस फिल्म की शायद सबसे प्यारी कहानी. वो कहते हैं न, आपदा अनोखे दोस्त बनाती है. एक अकेली रहती सीनियर सिटीज़न महिला उमा लॉकडाउन में दवाइयां लेने चल पड़ी है. पुलिसवाले राह चलते एक ऑटोवाले को उनकी सेवा में कर देते हैं. ऑटोवाला रफीक यूपी के बिजनौर से है और लॉकडाउन की वजह से ईद तक पर अपने घर नहीं जा सकता. अपनी बेटियों से नहीं मिल सकता. शक और अविश्वास से शुरू हुआ उनका ये साथ, कैसे एक प्यारी सी दोस्ती में बदल जाता है ये देखने वाली चीज़ है. रत्ना पाठक शाह तो खैर एक्टिंग की दिग्गज हैं ही, शार्दुल भारद्वाज भी कमाल कर जाते हैं. हम उनका टैलेंट इससे पहले 'ईब आले उ' में देख ही चुके हैं. दोनों की बॉन्डिंग वाले सीन भले लगते हैं. कहानी और फिल्म जिस सीन पर ख़त्म होती है, वो आपके चेहरे पर एक चौड़ी मुस्कान छोड़ जाएगा इसकी गारंटी है.
Rafiq And Uma
'ईब आले ऊ' के बाद शार्दुल भारद्वाज का एक और बढ़िया काम, साथ में रत्ना पाठक शाह.

बोनस के तौर पर ये टिप भी लेते जाइए कि फिल्म ख़त्म होने के बाद एकदम से बंद मत करियेगा. एंड क्रेडिट्स में आने वाला गाना सुनियेगा. बहुत अच्छे बोल हैं. 'सब कुछ मुमकिन है, अगर तुझमें उम्मीद है'.
कुल मिलाकर इस कोरोना काल में, कोरोना काल पर बनी ये फिल्म खुश करने वाली कहानियों का मोहक बुके है. जो हमें प्यार, उम्मीद, खुशियाँ, सपने और दोस्ती के नए वर्जन से रूबरू कराता है. ये सीख देता है कि हालात चाहे कितने ही बदल जाएं, हमारे बेसिक जज़्बात हर सूरतेहाल में कमोबेश वैसे ही रहते हैं. अनपॉज्ड मतलब रुकी हुई ज़िंदगी को फिर से शुरू करना. हम सब भी तो यही कर रहे हैं न!

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