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वेब सीरीज़ रिव्यू: अनदेखी सीज़न 2

इस सीज़न के किरदारों से भले ही आप जुड़ नहीं पाते, लेकिन उनकी कहानी में इन्वॉल्व ज़रूर होते हैं.

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रिंकू और डीएसपी घोष, जिनके सीन्स दोनों ही सीज़न में देखने लायक हैं.
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यमन
4 मार्च 2022 (Updated: 4 मार्च 2022, 05:13 PM IST) कॉमेंट्स
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2020 में एक वेब सीरीज़ आई थी, ‘अनदेखी’. जिसके रिव्यू
की शुरुआत में हमारे साथी श्वेतांक ने लिखा था कि कोई चीज़ फिक्शन तभी तक होती है, जब तक वो आपके सामने या आपके साथ न घटी हो. अब ‘अनदेखी’ का दूसरा सीज़न आया है. जहां कहानी पहले सीज़न के एंड से ही शुरू होती है. ऋषि मर चुका है, और अब रिंकू किसी भी कीमत पर कोयल और ऋषि के दोस्तों को ढूंढना चाहता है. दमन की क्रिमिनल फैमिली के कांड जानने के बाद वक वक्त पर शादी तोड़ने वाली तेजी अब उसी बिज़नेस में इन्वॉल्व होने लगती है. ताकि अटवाल परिवार के मुखिया पापाजी की जड़ काट सके.
उधर कोयल का पता न लग पाने पर डीएसपी घोष को वापस बंगाल बुला लिया जाता है. लेकिन कोयल अभी भी रिंकू और पापाजी से बदला लेना चाहती है. आगे उन तक कैसे पहुंचती है, ये कहानी का छोटा-सा हिस्सा है, क्योंकि इस बीच अटवाल परिवार के अंदर और बाहर बहुत कुछ घटता है. ‘अनदेखी’ का ये सीज़न पहले वाले के मुकाबले ज़्यादा डार्क है. पहले किरदार अपने सामने मर्डर होते देखते तो चौंक जाते, उनके लिए ये सब फिल्मी बातें थीं. पर अब वो इस दुनिया का हिस्सा बन चुके हैं, और इस बात से भागने की बजाय उसे अपनाने लगते हैं. शायद ऋषि का किरदार ही अकेला था जो खुद से ऊपर सोचता था. बाकी जितने भी किरदारों से मिलेंगे सबके मकसद में एक ‘मैं’ मिलेगा, चाहे आप हों किसी की भी तरफ.
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ऋषि, वो किरदार जिसके मरने के साथ शो की बची हुई इंसानियत भी खत्म हो गई.

यही रियलिज़्म इस शो की आत्मा है. जहां हैप्पी एंडिंग नहीं होती. लाइफ में जो शिद्दत से चाहते हैं, वो हाथ आते-आते फिसल जाता है. किरदार ब्लैक या व्हाइट नहीं. थोड़ी देर में समझ आने लगता है कि जिस किरदार को सपोर्ट कर रहे हैं, उसका भी निहित स्वार्थ है. इससे जुड़ा एक डायलॉग भी सुनने को मिलता है. जहां एक किरदार कहती है,
क्या हम अच्छे लोग हैं या बुरे?
फिर दूसरा जवाब देता है कि हमारी चॉइस बुरी होती है, पर हम तो हमेशा अच्छा करना चाहते हैं. इस सीज़न के किरदारों से भले ही आप जुड़ नहीं पाते, लेकिन उनकी कहानी में इन्वॉल्व ज़रूर होते हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह है शो की पेस. कोई भी लंबा सीन नहीं है. साथ ही सब कुछ कट-टू-कट चलता है. लेकिन यही पेस अखरती भी है, क्योंकि जल्दी-जल्दी नेरेटिव भगाने के चक्कर में काफी पॉइंट्स पर राइटिंग की जगह इत्तेफाक की मदद ली गई है. जैसे एक किरदार करोड़ों के इल्लीगल ड्रग्स बनाने वाली कंपनी के वेयरहाउस में घुस जाता है, बिना किसी को खबर लगे. फिर वहां एक ऑफिस के अंदर भी पहुंच जाता है. सिर्फ इतना ही नहीं, वहां एक लैपटॉप खुला होता है. बिना किसी पासवर्ड के. उसे चलाता है, और अपने फोन से एक फाइल भी ट्रांसफर कर देता है. मतलब हमारे ऑफिस में कोई लैपटॉप खुला छोड़ जाए, तो खुराफ़ात सिर्फ ट्विटर तक ही सीमित रहती है.
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शो का रियलिज़्म ही उसकी आत्मा है.

शो में ढेर सारे इत्तेफाक ही नहीं खटकते. यहां एक और चीज़ मौजूद है, जिसे हम असंख्य हिंदी फिल्मों में देख चुके हैं. किरदारों का फिल्मी ढंग से अचानक से प्रकट हो जाना. मेन कैरेक्टर खुले में दस बंदूकधारियों पर गोली चलाएगा, और उसे कुछ नहीं होगा. लेकिन गुंडे बेचारे एक बार भी हिट नहीं कर पाएंगे. ऐसी चीज़ें देखकर लगता है कि आपके साथ चीटिंग हुई हो. इन बातों से पार पा सकें तो शो को इंजॉय कर पाएंगे. मतलब 10 एपिसोड के दौरान चंद मौकों पर ही मेरा ध्यान अपने फोन पर गया. उनके अलावा मैं कहानी को खुलते हुए देख रहा था. शो में कई ट्रैक एक साथ चलते हैं. इस बीच सभी को बैलेंस में रखा गया है. ऐसा नहीं लगता कि कुछ बिखर रहा हो. नए किरदार भी जुड़े हैं. लेकिन उनका अपना कोई वजूद नहीं. वो बस मेन कैरेक्टर्स के ट्रैक को आगे ले जाने का काम करते हैं. उनकी बैकस्टोरी के बारे में हमें थोड़ा बहुत पता चलता है, लेकिन इतना नहीं कि उनकी इंडिविजुअल आइडेंटिटी बन सके. शो का पहला सीज़न अपने थ्रिल और ह्यूमर वाले हिस्से की वजह से यादगार बना. उस मामले में ये सीज़न थोड़ा फीका पड़ जाता है. ऐसा नहीं होता कि हर एपिसोड एक मज़बूत क्लिफहैंगर पर खत्म हुआ हो.
कहानी का सबसे अहम किरदार रिंकू है, फिर चाहे ऑडियंस को वो कैसा भी लगे. इससे भी शो और उसकी फिलॉसफी का अंदाज़ा लग जाता है. बाकी ये सीज़न जिस पॉइंट पर खत्म होता है, उसके बाद कुछ सवाल रह जाते हैं. तीसरे सीज़न में उन सवालों के जवाब जानने के लिए आप एक्साइटेड होंगे या नहीं, वो शो देखकर डिसाइड कीजिए. ‘अनदेखी’ के दोनों सीज़न सोनी लिव पर स्ट्रीम हो रहे हैं.

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