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मूवी रिव्यू: तड़प

अहान शेट्टी का डेब्यू प्रॉमिसिंग था या नहीं?

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'तड़प' की लव स्टोरी टॉक्सिक और प्राब्लमैटिक किस्म की है, लेकिन क्या उसे ग्लोरिफाई किया गया है?
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यमन
3 दिसंबर 2021 (Updated: 3 दिसंबर 2021, 01:20 PM IST) कॉमेंट्स
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हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में रीमेक्स का कल्चर बिल्कुल बॉम्बे की बारिश जैसा है. हमेशा चलता ही रहता है. कुछ समय पहले ‘अंतिम’ और छोरी’ आईं, जो ‘मुलशी पैटर्न’ और ‘लपाछपी’ का रीमेक थीं. अब इसी मोमेंटम को जारी रखते हुए आई है ‘तड़प’, जो 2018 में आई तेलुगु फिल्म ‘RX 100’ का हिंदी रीमेक है. फिल्म से सुनील शेट्टी के बेटे अहान शेट्टी अपना फिल्मी डेब्यू करने जा रहे हैं. ‘तड़प’ को देखने का मेरा अनुभव ऐसा था कि थिएटर में सिर्फ मैं अकेला शख्स था, बाकी सभी कपल्स. फिल्म कैसी थी, अब उस पर बात करेंगे.
बॉय मीट्स गर्ल. गर्ल लीव्स. बॉय गेट्स सैड, एंग्री. फुल तबाही टाइप माहौल. ईशाना मसूरी में रहता है, डैडी के साथ. जो उसका असली पिता नहीं, लेकिन अपने बच्चे की तरह पालता है ईशाना को. ईशाना बेसिकली दामोदर के लिए काम करता है, जो वहां का MLA है. एक बार दामोदर की बेटी रमीसा मसूरी आती है. ईशाना और रमीसा मिलते हैं, प्यार हो जाता है. फिर वो होता है जिसकी कल्पना कोई आशिक नहीं करना चाहता, उसकी गर्लफ्रेंड की शादी. रमीसा की शादी के बाद ईशाना पागल हो जाता है. तड़प मचती है किसी भी तरह रमीसा तक पहुंचने की. इस बीच कितनों से दुश्मनी करता है, और अपने गुस्से को कहां चैनलाइज़ करता है, यही आगे की कहानी है.
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फिल्म के मारधाड़ वाले सीन्स पैसा वसूल हैं.

अगर आपने ‘RX 100’ देखी है तो जानते होंगे कि सेकंड हाफ में वक्त, जज़्बात कैसे बदलते हैं. उस मामले में रीमेक भी ओरिजिनल वाला प्लॉट बरकरार रखता है. प्यार एक ऐसा शब्द है, ऐसी फीलिंग है जिसे सबने अपने-अपने तरीके से डिफाइन करने की कोशिश की है, क्योंकि इसका एक अर्थ तो हो ही नहीं सकता. फिल्म ने भी अपने तरीके से इसका मतलब खोजा. यहां प्यार जुनून के रास्ते चलता है. ऐसा जुनून जिसे पागलपन में तब्दील होते वक्त नहीं लगता. ऐसा जुनून जो स्वार्थी है, अपनी ज़रूरत पूरी करने से ऊपर कुछ ज़रूरी नहीं समझता. भूल जाता है कि जिसके लिए लड़ रहा है, कब जाकर उससे ही लड़ने लगता है, उसे ही नुकसान पहुंचाने लगता है. यहां ईशाना के साथ भी कुछ ऐसा ही है. रमीसा के नाम की रट लगाकर तबाही मचाने लगता है. उसका गुस्सा ये तक भूल जाता है कि सामने कौन है.
आशिकों के पैशन, उनके गुस्से को हमने लंबे समय से रोमांटिसाइज़ किया है. दिल टूटने पर खुद को धुआं करता लड़का मार्केट में सुपरहिट फॉर्मूला है. ‘कबीर सिंह’ भी कुछ हद तक ऐसा ही था. ईशाना भी उसी यूनिवर्स में एग्ज़िस्ट करता है. यहां प्यार की परिभाषा फिज़िकल इंटिमेसी में ढूंढी गई है. लड़का कंट्रोलिंग है, लड़की पर अपना हक समझता है और बार-बार ये जताता भी है. सिनेमा में ऐसे किरदार दिखाने से कोई ऐतराज़ नहीं. मनोज बाजपेयी ने अपने एक इंटरव्यू में ‘कबीर सिंह’ पर कहा था कि ऐसे किरदार भी हमारी सोसाइटी का ही हिस्सा हैं. बिल्कुल सही बात है, क्योंकि ये कहानी शिवा नाम के एक वास्तविक आदमी पर आधारित है. ऐसे लोग हमारे बीच हैं, हम खुद भी किसी हद तक शायद. लेकिन ऐसे लोगों को ग्लोरिफाई किया जाना कितना सही है, इसका जवाब आप खुद ढूंढिए.
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अपनी डेब्यू फिल्म के हिसाब से अहान निराश नहीं करते, हालांकि उनका काम महान भी नहीं.

ईशाना और रमीसा की लव स्टोरी शुरुआत से ही ट्विस्टेड और प्रॉब्लमैटिक होती है. जैसे जब रमीसा पहली बार उसे डांस करते देखती है, वो उसकी बॉडी को चेकआउट करती है. इस पॉइंट पर कैमरा ईशाना की पूरी बॉडी पर टिल्ट डाउन करता है, यानी ऊपर से नीचे जाता है. ये शायद दशकों से सिनेमा में चल रहे महिलाओं के ऑब्जेक्टिफिकेशन को रिवर्स करने की निंजा टेक्निक थी. ईशाना के कैरेक्टर के हिस्से चीखने, चिल्लाने और ज़ोर-ज़ोर से गुस्सा करने वाले सीन्स खूब आएं, और ऐसे में अहान शेट्टी डिलिवर कर देते हैं. उनका काम यहां टॉप नॉच किस्म का तो नहीं है, लेकिन वो निराश भी नहीं करते. बाकी रमीसा बनी तारा सुतारिया के इमोशनल सीन्स थोड़े बेहतर हो सकते थे.
अहान के अलावा फिल्म का अगला बड़ा सैलिंग पॉइंट था उसका टेस्टोस्टेरॉन लेवल अल्ट्रा प्रो मैक्स होना. फुल मारधाड़, खून-खराबे वाला एक्शन. जिसे तरीके से फिल्माया भी गया है. थिएटर में ये एक्शन सीन्स देखने पर पूरी फ़ील आती है. रात का समय, नीली लाइटिंग और बारिश! इन सब के बीच एक बंदा कईयों से लड़े जा रहा है. इस पॉइंट के लिए फिल्म के डायरेक्टर मिलन लुथरिया की तारीफ होनी चाहिए. उनके साथ-साथ बात करनी ज़रूरी है रजत अरोरा की, जिन्होंने ‘तड़प’ लिखी है. रजत ‘Once Upon A Time in Mumbai’ और ‘दी डर्टी पिक्चर’ में अपने ओवर द टॉप डायलॉग्स के लिए पहले ही फेमस हैं. ‘तड़प’ में उनका टिपिकल सेल्फ देखने को मिला.
‘बेटा काबू में नहीं, काबिल होना चाहिए’ और ‘नमक का दाना मुंह में रखेगा, तो हर चीज़ खारी लगेगी’ जैसे डायलॉग्स इस बात का प्रूफ हैं. अगर सिनेमा को सिर्फ ‘तेरे नाम’ देखकर सलमान जैसे बाल बनाने तक ही रखेंगे तो सही है, ‘तड़प’ देख सकते हैं. उसके आगे आप एक कमर्शियल फिल्म से क्या एब्ज़ॉर्ब करते हैं, वो आपकी मर्जी.

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