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London Has Fallen रिव्यू: गोलियों के शोर से नींद टूट जाती है

अमेरिका के प्रेसिडेंट लगभग मार दिए जाते हैं. एक फ़ौलादी लौंडा बचा के ले आता है. कुछ भी नया नहीं है. नए पैकेट में बेंची हमको चीज पुरानी, फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी.

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4 मार्च 2016 (Updated: 12 मई 2016, 12:36 IST)
Updated: 12 मई 2016 12:36 IST
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London Has Fallen

ऐक्टर्स: जेरार्ड बटलर, मॉर्गन फ्रीमैन, आरोन एक्हार्ट (Aaron Eckhart)
डायरेक्टर:बबाक नजाफ़ी
रन टाइम: 100 minutes
रिव्यू: ये वाली भी टोरेंट पे देख लेना.


 
लंडन हैज़ फॉलेन की कीमत तुम क्या जानो पाठक बाबू? एक इंजीनियर लौंडे का ख्वाब है लंडन हैज़ फॉलेन. किसी गेमर का हेड शॉट है लंडन हैज़ फॉलेन.
https://www.youtube.com/watch?v=3AsOdX7NcJs
लंडन हैज़ फॉलेन यानी लंडन गिर चुका है. इसे लॉजिक हैज़ फॉलेन कह देते तो बहुत अच्छा होता. फिल्म के साथ न्याय होता.
फ़िल्म एक लस्सी है. अमरीकी लस्सी. इस लस्सी में फिल्में, सीरियल्स, कंप्यूटर गेम्स का मिलन हुआ है. खिचड़ी इसलिए नहीं कहा क्यूंकि खिचड़ी पकी होती है. ये तो बस फेंटी गयी है.
एक लिस्ट दे रहा हूँ -
मैक्स पेन कॉल ऑफ़ ड्यूटी: मॉडर्न वारफेयर स्नाइपर घोस्ट वॉरियर फ्रीडम फाइटर्स काउंटर स्ट्राइक
The exact copy of these planks are present in the film
The exact copy of these planks are present in the film

ये वो गेम्स हैं जो मैंने खेल रक्खे हैं और जो साफ़-साफ़ इस फिल्म में दिखाई दे रहे थे. सिर्फ सीन ही नहीं, हालात भी वैसे ही बनाये गए थे. हीरो प्रेसिडेंट को वैसे ही बचाता है जैसे COD:MW2 में प्राइवेट जेम्स रैमिरेज़ अपने रेस्क्यू मिशन पर जाता है और वहां से बंधकों को बचा के लाता है.
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जिस बिल्डिंग में हीरो घुसता है वहां घुसते ही IED प्लांट करना, बाहर खड़े उसके साथी के हाथ में उन बमों का रिमोट होना, बिल्डिंग में घुसने से पहले ही बिल्डिंग की लाइट काट देना और बीच ही में लाइट का वापस आ जाना क्यूंकि विलेन भी कम काइयां नहीं है. ये सब पुराना माल है. इसे देखते हुए ही एक बहुत बड़ी खेप बड़ी हुई है. ग्राफ़िक्स में वही बिल्डिंगों का बम से उड़ना, और फिर धुएं का उसको ढक लेना. जब तक धुआं छंटता है, एडिटर अगला शॉट चिपका देता है. यही तो कमाल है भइय्ये! लेकिन भाई ये तो हम कबसे देखते आ रहे हैं. स्पीलबर्ग की इंडिपेंडेंस डे में भी यही सब तो देखा था. ऐक्शन भरपूर मिलता है बोर्न सीरीज़ में लेकिन उसको देखते हुए कभी मन ये नहीं कहता कि "अब बस भी करो, कितना काटोगे? बेवकूफ़ समझा है क्या?"
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इस फिल्म में काफी कुछ है लेकिन सब कुछ नहीं है. मतलब ऐसा समझ लीजिये कि दीवार पर चूने की पुताई करते वक़्त पेंटर उसमें फेविकोल मिलाना भूल गया. अब महीने भर बाद ही चूना झड़ने लगा है. ऐसे ही इस फिल्म में फेविकोल न होने की वजह से सब कुछ छितरा हुआ मिलता है.
जेरार्ड बटलर वही घिसा हुआ कांसेप्ट पकड़े हुए हैं. प्रेसिडेंट का बॉडीगार्ड जिसकी बीवी बस बच्चा पैदा ही करने वाली होती है. प्रेसिडेंट के साथ जाता है, और वहां बवाल हो जाता है. है न घिसा हुआ? आरोन एक्हार्ट की किस्मत में ऐसे ही रोल हैं कि जहाँ वो एक ताकतवर शख्सियत बनेंगे और दिक्कत में फंस जायेंगे. डार्क नाइट में भी किडनैप हुए थे, यहाँ भी. वहां भी मरने ही वाले थे, यहाँ भी.
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मॉर्गन फ्रीमैन इस फिल्म में उतनी ही देर के लिए रहते हैं जितनी देर किसी च्युइंग गम में मिठास रहती है. राधा मिशेल इस फ़िल्म में सिर्फ इसलिए हैं क्यूंकि उन्हें Butler साहब का बच्चा जनना था. अगर इंसान अंडे देता होता तो इस फिल्म में उनकी कोई भी जगह नहीं होती.
ऐसी फिल्मों में डायलॉग्स को ऐक्शन पनपने नहीं देता. वही यहाँ भी हुआ है. कुछ एक डायलॉग्स हैं जो ऐक्टर्स को कूल दिखाते हैं. बस!
डायरेक्शन ऐसा है कि जैसे बाबाक नजाफी (Babak Najafi) साहब इलाहाबाद के किसी खालिस देसी इंजीनियरिंग कॉलेज के बॉयज़ हॉस्टल में अपने कमरे में 8 लौडों के साथ बंद लैन पर काउंटर स्ट्राइक खेल रहे हों. कभी मन किया तो कॉल ऑफ़ ड्यूटी खेल लिया. और इन्हीं गेम्स को उठाकर उनका कम्पाइलेशन करके एक पिच्चर बना दी.
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पिच्चर का एक्कै मकसद है - बरबादी. बरबादी टाइम की, रील की, प्रोजेक्टर की, रुपिये की, गाड़ियों की, गोलियों की, दिमाग की.
एक चीज जो देख के अन्दर के कंप्यूटर के कीड़े को अच्छा लगा वो ये कि हैकर्स को प्रोग्रामिंग करते हुए दिखाया गया, जादू करते हुए नहीं और स्क्रीन पर वाकई Python के कोड दिखाई पड़ते हैं.
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एक सेंटेंस में, चूंकि फ़िल्म अंग्रेजी है - The film is nothing short of someone masturbating to a walkthrough of a first person shooting game available on Youtube.

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