The Lallantop
Advertisement
  • Home
  • Entertainment
  • Pushpa 2 Movie Review in Hindi starring Allu Arjun and Rashmika Mandanna

फिल्म रिव्यू- पुष्पा 2: द रूल

Allu Arjun की नई फिल्म Pushpa 2- The Rule कैसी है, जानिए ये रिव्यू पढ़कर.

Advertisement
allu arjun, pushpa 2,
'पुष्पा 2' तेलुगु सिनेमा इतिहास की सबसे लंबी फिल्म है.
pic
श्वेतांक
5 दिसंबर 2024 (Updated: 5 दिसंबर 2024, 06:50 PM IST) कॉमेंट्स
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

फिल्म- पुष्पा 2- द रूल
राइटर- डायरेक्टर- सुकुमार 
एक्टर्स- अल्लू अर्जुन, रश्मिका मंदन्ना, फहाद फासिल, सुनील, जगपति बाबू 
रेटिंग- 2.5 स्टार

***

अल्लू अर्जुन की 'पुष्पा 2' बड़े इंतज़ार के बाद फाइनली सिनेमाघरों में उतर चुकी है. फिल्म का पहला सीन खुलता है जापान में. पुष्पा राज करोड़ों की चंदन की लकड़ी लेकर जापान पहुंच गया है. वहां के लोगों से लड़ाई कर रहा है. जैपनीज़ लैंग्वेज में बात कर रहा है. वो वहां क्यों गया, कैसे गया, जैसे सवाल दर्शकों के जेहन में उभरते हैं. मगर पूरी पिक्चर खत्म हो जाती है, न उस सीन का कहीं दोबारा ज़िक्र आता है, न ही उसका कोई जस्टिफिकेशन दिया जाता है. बस इतना बताया जाता है कि पुष्पा सपना देख रहा था. मगर इसका कोई जवाब नहीं है कि पुष्पा इतने रैंडम सपने क्यों देख रहा था. उसके सपने का फिल्म के कथानक से भी कोई कनेक्शन नहीं है. ऐसे में दर्शक खुद ही इस नतीजे पर पहुंचते हैं कि वो सीन फिल्म में सिर्फ इसलिए था, ताकि अल्लू अर्जुन के लिए एक धांसू इंट्रोडक्ट्री सीन बनाया जा सके. इससे आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि फिल्म की लिखाई कितनी विसंगति से भरी हुई है. 'पुष्पा 2' को लिखा और डायरेक्ट किया है सुकुमार ने. सुकुमार क्रेडिट प्लेट पर खुद का नाम Sukumar Writings लिखते हैं.      शायद इसे ही शास्त्रों में विरोधाभास कहा गया है.

'पुष्पा 2' की कहानी ठीक वहीं से शुरू होती है, जहां पहला पार्ट खत्म हुआ था. पुष्पा अब बड़े लेवल का चंदन की लकड़ी का स्मग्लर बन चुका है. पूरे शहर में उसके नाम की तूती बोलती है. एक पुलिस वाला है शेखावत, जो पूरी शिद्दत से उसे पकड़ने और बर्बाद करने में लगा हुआ है. एक पत्नी है श्रीवल्ली, जिसके मुंह खोलते ही पुष्पा वो चीज़ उसके सामने हाज़िर कर देता है. पुष्पा के भीतर एक कॉम्प्लेक्स है कि उसे कभी उसके पिता का नाम नहीं मिल सका. उसे नाजायज़ बच्चे की तरह ट्रीट किया गया. ये फिल्म उसकी इसी कुंठा का निदान ढूंढती है. बस यही इस पूरी फिल्म का मक़सद है. जहां फिल्म कई अनसुलझे सब-प्लॉट्स से गुज़रते हुए पहुंचती है.

'पुष्पा 2' को देखते हुए ऐसा लगता है कि मेकर्स ने कई सारे सीन्स को एक साथ लाकर गूंथ दिया है. इस बात को नज़रअंदाज़ करते हुए कि वो सीन्स एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं या नहीं. बावजूद इसके वो एक मनोरंजक फिल्म साबित होती है. हालांकि उसकी कुछ शर्तें हैं. मसलन, अगर आप फिल्मों में तर्क नहीं ढूंढते, इन-कंसिस्टेंट राइटिंग से इरिटेट नहीं होते, हीरो वर्शिपिंग में यकीन करते हैं, 80-90 के दशक की फिल्मों वाले क्लाइमैक्स से पके नहीं हैं, स्टाइलिश एक्शन सीन्स में एड्रेनलिन रश पाते हैं, आपने पार्ट 1 देखा था, इसलिए पार्ट 2 का इंतज़ार कर रहे थे, या फिर अल्लू अर्जुन के कर्रे फैन हैं.

अगर आप 'पुष्पा 2' के सीन्स को फिल्म से अलग करके देखें, तो वो मज़ेदार लगते हैं. मगर वो साथ आकर 'पुष्पा 2' को एक बेहतर फिल्म नहीं बना पाते. इसमें सबसे बड़ी दिकक्त ये आती है कि मेकर्स ने पहले पार्ट में जो वादा किया था, उसे दूसरी किश्त में पूरा नहीं किया जाता. पहला हिस्सा इस वादे के साथ खत्म हुआ था कि हमें पुष्पा और शेखावत के बीच भयंकर भिड़ंत देखने को मिलेगी. मगर इस फिल्म में शेखावत के किरदार का मज़ाक बनाकर रख दिया गया है. क्योंकि मेकर्स सारी चीज़ें अपने हीरो को पूजने में खर्च करना चाहते थे. मगर इस बुरी तरह से बिखरी हुई फिल्म को वही चीज़ जोड़कर रख पाती है. 

हालांकि कुछ एक मौके ऐसे भी हैं, जब आपको लगता है कि मेकर्स ने कुछ नया करने की कोशिश की है. खासकर महिलाओं के चित्रण विभाग में. फिल्म में श्रीवल्ली के किरदार का स्क्रीनस्पेस कम है. मगर वो नैरेटिव का अहम हिस्सा है. अगर श्रीवल्ली के किरदार को हटा दें, तो फिल्म में आधी से ज़्यादा चीज़ें नहीं घटेंगी. तो मेकर्स ने टोकनिज़्म के लिए रश्मिका को चार एक्सट्रा सीन्स नहीं दिए. मगर वो किरदार फिल्म का कोर है. अगर श्रीवल्ली नहीं होती, तो शायद 'पुष्पा 2' भी नहीं होती. या शायद और कमज़ोर फिल्म होती.

सिर्फ यही नहीं, अल्लू अर्जुन फिल्म के दो बेहद अहम और यादगार सीन्स में साड़ी पहने नज़र आते हैं. मेकर्स अपने लीडिंग मैन के फेमिनीन साइड को एक्सप्लोर करने की कोशिश करते हैं. मगर वो चीज़ उस तरह से उभरकर नहीं आ पाती. या वो कमज़ोर या सतही कोशिश थी. मगर इस कोशिश के लिए मेकर्स को कुछ अंक मिलने चाहिए. 'पुष्पा 2' अगर प्रोग्रेसिव फिल्म नहीं है, तो वो खुद को प्रॉब्लमैटिक फिल्म होने से बचा लेती है. फिल्म के एक्शन सीक्वेंस बहुत स्लीक और स्टाइलिश हैं. अल्लू अर्जुन उन्हें पूरे स्वैग के साथ अंजाम देते हैं. मगर स्टाइल से सबकुछ नहीं हो सकता. दर्शक के तौर पर हमें कुछ सब्सटांस भी चाहिए. यहां 'पुष्पा 2' मार खा जाती है. अगर फहाद फासिल के किरदार को आगे बढ़ाया जाता, तो शायद फिल्म में वो डेप्थ आ पाती. मेकर्स दर्शकों को भरोसा जीत पाते. मगर ऐसा नहीं होता है.  

'पुष्पा 2' एक फन फिल्म है. आपको एंटरटेन करती है. एज्यूकेट नहीं करती है, तो कुछ ऐसा सिखाकर नहीं जाती, जो आपके लिए नुकसानदेह साबित हो. खालिस मसाला फिल्म, जो अपने होने का मक़सद पूरा करती है. एक बिखरी हुई फिल्म, जिसे समय रहते समेट लिया जाता, तो वो कुछ और बन सकती थी. समय इसमें बड़ी भूमिका अदा करता है. क्योंकि 26 नवंबर को फिल्म का शूट पूरा हुआ और 5 दिसंबर को फिल्म रिलीज़ हो गई. ऐसे में ज़ाहिर तौर पर मेकर्स के पास गुणन-मनन का समय नहीं बचा होगा. मगर इस गलती की ज़िम्मेदारी मेकर्स को लेनी होगी. फिल्मों को प्रोजेक्ट या कॉन्टेंट की तरह देखना बंद करना पड़ेगा. सिनेमा एक क्रिएटिव आर्ट फॉर्म है, जिसकी पवित्रता बची रहनी चाहिए. 

वीडियो: मूवी रिव्यू: जानिए कैसी है भूल भुलैया 3?

Advertisement