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गैंगस्टर अरुण गवली के रोल में अर्जुन रामपाल: लेकिन ये रोल नवाजुद्दीन से बेस्ट कोई नहीं कर सकता

बताते हैं क्यों? असली लोगों और उनके फिल्मी चित्रण वाले उदाहरणों पर भी बात करेंगे.

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फिल्म डैडी में अर्जुन रामपाल अरुण गवली के रोल में.
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गजेंद्र
29 नवंबर 2016 (Updated: 29 नवंबर 2016, 08:36 PM IST)
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अर्जुन रामपाल फिल्म डैडी प्रोड्यूस कर रहे हैं. इसमें वे गैंगस्टर से राजनेता बने मुंबई के डॉन अरुण गवली की भूमिका भी कर रहे हैं. इसमें वे ऐसे दिख रहे हैं. [facebook_embedded_post href=" https://www.facebook.com/RampalArjun/videos/1117567155031037"]   पहले मकरंद देशपांडे जैसे ठोस रंगकर्मी ने भी अरुण गवली का रोल किया. मराठी फिल्म 'दगड़ी चॉल' में. md लेकिन गवली के किरदार से मकरंद न्याय नहीं कर पाए. उन्होंने गवली का मकरंद देशपांडे नुमा interpretation किया जो संबंधित किरदार से बहुत अलग और नाटकीय था. अर्जुन रामपाल ने गवली जैसी मूछें, टोपी, सफेद कपड़े पहन लिए. लुक में वैसे लग भी रहे हैं. लेकिन इतने से आगे क्या? उनकी शैली का अभिनय, उनका स्वर विन्यास, किरदार की समझ ऐसी नहीं है कि वे ढर्रे से अलग या कुछ उल्लेखनीय कर पाएंगे. गवली अर्जुन से बहुत नाटे हैं, दोनों का रंग बहुत अलग है, गवली वाली इंटेंस और अस्थिर आंखें अर्जुन की नहीं हैं. उनका लहजा तो बिलकुल नहीं है. हालांकि अर्जुन ने हाल ही में कहा कि वे सुपरस्टार जन्मे थे लेकिन अब एक वर्सेटाइल एक्टर बनना चाहते हैं. 2001 में फिल्म 'प्यार इश्क और मोहब्बत' से उन्होंने लव हीरो के रूप में एंट्री ली थी. वे एक्टिंग को लेकर समर्पित भी होते जा रहे हैं लेकिन उनके लिए बहुत मुश्किल है बायोपिक में किसी इंसान की जिंदगी को interpret कर पाना. पहले भी मॉडलिंग या स्टारडम वाले बैकग्राउंड से आए एक्टर्स ने असल जिंदगी के किरदार जब जब किए हैं, उन्हें ख़राब ही किया है. जैसे जॉन अब्राहम ने 'शूटआउट एट वडाला' में मन्या सुरवे का रोल किया. https://youtu.be/FRwzT-oOoig?t=8 असली सुरवे ऐसा दिखता था. man चेहरे में भले ही वे सुरवे से बहुत अलग नहीं हैं लेकिन फिल्म में जॉन अब्राहम ही नजर आता रहा, सुरवे कहीं नहीं दिखा. उनके सारे संवाद बॉलीवुड की छाप वाले थे. उनका शरीर चीख़-चीख़ कर कह रहा था कि वे मॉडल हैं, उनके सिक्स या ऐट पैक ऐब्स हैं. उनका चेहरा कह रहा था कि वे straight face बनाने से ज्यादा इस किरदार को कुछ नहीं दे सकते. भाषा के स्तर पर भी वे कहीं भी हैदराबादी मूल के मराठी बोलने वाले सुरवे का अंश अपने में नहीं ला पाए. पूरी फिल्म मृत थी. अब शाहरुख खान अगले साल आ रही फिल्म 'रईस' में गैंगस्टर और शराब का अवैध धंधा करने वाले अब्दुल लतीफ का रोल कर रहे हैं. https://youtu.be/8iv3ksZs0hk असली अब्दुल लतीफ ऐसे दिखता था. ak जाहिर है दोनों का लुक बिलकुल अलग है, मिलने की बात तो बहुत दूर की है. लतीफ का किरदार शाहरुख थोड़ा सा भी जिंदा कर पाएंगे ऐसा लगता नहीं. क्योंकि ट्रेलर में एक बहुत ही stylized वर्जन वाला गैंगस्टर नजर आता है. अरुण गवली को बेस्ट तरीके से कैसे निभाया जा सकता है इस पर बात करने से पहले देख लें कि वो आदमी बोलता, चलता, सोचता कैसे था. ये वॉक द टॉक कार्यक्रम में गवली का इंटरव्यू है. https://www.youtube.com/watch?v=0jnhWP778qI गवली के शारीरिक ढांचे, व्यवहार, अंदाज और ठोसपन को देखें तो लगता है कि नवाजुद्दीन सिद्दीकी इसे सबसे बेस्ट तरीके से कर सकते हैं. पहले नवाज के दो अन्य किरदारों के interpretation को देखते हैं. पहला 'रमन राघव 2.0' में साइको किलर रमन्ना / सिंधी दलवई का किरदार. https://youtu.be/CGMqVJc7vec दूसरा, 'तलाश' में तैमूर का रोल. https://youtu.be/8-KzTcPVsPk दोनों में नवाज ने दो अलग-अलग व्याख्याएं अपने रोल को लेकर की हैं. दोनों में चलने, बोलने, सोचने, दिखने, दर्शक की समझ में उसके आने के ढंग अलग अलग हैं. उपरोक्त उदाहरणों में अर्जुन, जॉन, शाहरुख के साथ दिक्कत ये है कि इनकी अदायगी में इनके व्यक्तित्व प्राथमिक होते हैं और किरदार द्वितीय. वहीं नवाज के साथ ये है कि वे किरदार की जरूरत पहले देखते हैं और दूसरे नंबर पर अपने अस्तित्व को. गवली का रोल करने वाले को कम से कम कुछ व्याख्या तो लानी ही चाहिए. जैसे कि उपरोक्त इंटरव्यू में वो कैसे बात करते हुए लगता है और कुछ चीजें करता है. - सामने वाले की आंख में कुछेक पल ठोस तरीके से देखेगा ताकि अपनी हस्ती की सूचना दे दे, जिसे उसका दायरा दे दिया जाए, जिसके हिसाब से दूसरे को ढल जाना चाहिए. - बीच-बीच में नजरें हटा चुका होगा और जवाब देता रहेगा ताकि उसे प्रश्न पूछने वाला ज्यादा पढ़ न पाए, जज न कर पाए. - किसी बात का लंबा जवाब नहीं देगा. क्योंकि वो किसी के प्रति जवाबदेह नहीं है. वो खुदमुख़्तार है. उसे परवाह भी नहीं है. - शून्यों में ताकता रहेगा. बात करने वाले की तरफ लगातार देखने के बजाय वो आस-पास ऐसे बिंदुओं की तरफ देखता रहेगा जिनका कोई रेलेवेंस नहीं है. - उसकी भाषा ऐसी है कि एक विशेष वर्ग के लोगों से संवाद नहीं करती, एक वर्ग से करती है. उसमें कोई ग्रामर नहीं है. - उसका लहजा ऐसा है जैसा किसी का न होगा. कुछ जुमले भी हैं. जैसे एक जगह वो कहता है, "इमेज क्या. इमेज अपने काम से अपन बदल सकते. समझे क्या?" - बाहर से चेहरा उसका ठंडे लोहे जैसा है, लेकिन अंदर माथे की नस तनी हुई है और भीतर देखें तो आभास होता है कि वो गुस्से, द्वंद्व, हिंसा के भाव भी लिए हुए है. ऐसी कई बातें गवली में दिखती हैं. अब नवाज की अभिनय शैली देखें तो वो किरदारों की इन बारीक बातों को बहुत अच्छे से पढ़ते हैं. किरदारों के random और अस्थिर होने को भी वे अदायगी के अनुशासन में ले आते हैं. जैसे इस एक सीन के चंद पल देखें. https://youtu.be/xq1cEmhVa68?t=178 ऐसा नहीं है कि किसी किरदार को करते हुए आपको हूबहू उसके जैसा बनना अनिवार्य ही है, या हूबहू उसके व्यक्तित्व को कॉपी कर लेना है या उसे mimic करना है. प्राथमिक तौर पर ऐसा हो तो बहुत अच्छा, नहीं तो इस लीक से हटा भी जा सकता है. लेकिन ये अच्छा नहीं होगा कि वहां किरदार के स्थान पर आप ही दिखें. या फिर कि किरदार के किसी गंभीर इंटरप्रिटेशन में आपने कोई मौलिक सोच नहीं डाली है. जैसे वाग्नर मोरा को ले सकते हैं. उन्होंने नेटफ्लिक्स की सीरीज नारकोज़ में पाब्लो एस्कोबार का रोल किया. https://youtu.be/U7elNhHwgBU पाब्लो कोलोम्बिया का ड्रग किंग था. pe दुनिया में जितने ड्रग माफिया हुए उनमें एक समय में सबसे बड़ा. पाब्लो का रोल करने वाले वाग्नर रहने वाले हैं ब्राजील के. वे पोर्चुगीज़ भाषा जानते थे, जबकि नारकोज़ में उन्होंने पूरे समय स्पैनिश बोली है. रोल की तैयारी के लिए उन्होंने पूरी भाषा सीखी. उन्हें सुनते हुए लगता नहीं कि वे स्पैनिश मूल के नहीं हैं. तो नंबर 1, उन्होंने भाषा के प्रति समर्पण रखा. दूसरा उन्होंने अपना वजन 40 पाउंड बढ़ाया और उसे लंबे समय रखा. तीसरा, उन्होंने इस किरदार को अपना एक अलग इंटरप्रिटेशन दिया. अगर आप वाग्नर को मिलेंगे या देखेंगे तो पाएंगे कि वो पाब्लो के जैसे बिल्कुल नहीं हैं. लुक्स में भी और व्यवहार में भी. उनकी कमी ये निकाल सकते हैं कि उन्होंने पाब्लो को एक टिपिकल गॉडफादर-नुमा चित्रण दिया. जबकि पाब्लो पर बनी कई डॉक्यूमेंट्री देखें या उसके असली वीडियो देखें तो वो उसमें कई और व्यक्तित्व वाले आदमी भी मिलते हैं. कहने का मतलब ये है कि वाग्नर ने भी बहुत सी चीजें पाब्लो की पकड़ी और बहुत सी अपने मन की उस पात्र में भरी. ये तरीका तब तक सही है जब तक आप दर्शक को बहुत ही घिसा-पिटा रूपांतरण नहीं दे रहे हैं. कम से कम कुछ ठोस रूप से नई चीजें दे ही रहे हैं. https://youtu.be/eOr-Tpi8yFU

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