निशानची: अंतरात्मा बचाए रखने का कमिटमेंट (Nishaanchi Review)
अग्ली, रमन राघव 2.0, ब्लैक फ्राइडे और गैंग्स ऑफ वासेपुर वाले अनुराग कश्यप लाए हैं अपना नया शाहकार - निशानची. एक क्राइम ड्रामा. जिसमें खूब चटखारेदार संवाद हैं, गाने हैं, हास्य है, रिचनेस है और डायरेक्टर का मुक्तकंठ क्राफ्ट है. कैसी है ये फ़िल्म जाने इस रिव्यू में.

Rating - 3.5 Stars
कमाल की बात है कि ये फ़िल्म एक लिट्ररेरी पीस सी अंतरात्मा लिए हुए है. जो अपने स्टाइल में आपको एंटरटेन करती है. मुक्त भाव से आगे बढ़ती है. दर्शक की उम्मीदों का बोझ लिए नहीं बढ़ती.
ये भी ज़रूरी रहा कि इसे “गैंग्स ऑफ वासेपुर” से तुलना करते हुए न देखा जाए. क्योंकि फिर आप फिल्ममेकर को कुछ नया करने से रोक रहे होते हैं. परिणामस्वरूप ये फ़िल्म नई और इनोवेटिव लगी. फॉर्म्यूलाज़ से परे. हिट फॉर्म्यूलाज़ की कन्वीनियंस से परे. यहां तक कि डायरेक्टर अनुराग कश्यप ने अपने ही फॉर्म्यूलाज़ को रिपीट करने से परहेज किया, जो अन्यथा मौजूदा सिनेमा उद्योगों में लाइलाज बीमारी बन चुकी है.
जरूरी होगा कि फिल्म देखते हुए निरंतर हंसी, ताली, सीटी बजाने जैसे "माल" का इंतजार न करते रहें. बस ताज़ा मन के साथ ये "फिल्लम देखो." फिल्म का पार्ट 2 भी आना है.
दोस्तोयेव्स्की के 1866 में आए नॉवेल "अपराध और दंड" (Crime And Punishment) में एक गरीब छात्र रस्कोलनिकोव ये मानकर एक साहूकार बुढ़िया की हत्या कर देता है कि higher goals यानी बड़े उद्देश्यों के लिए अपराध करना जायज़ है. यही “निशानची” की कहानी है. जिसमें रस्कोलनिकोव है बबलू (ऐश्वर्य ठाकरे) जो अपने हमशक्ल जुड़वा भाई ("दीवार" का शशि कपूर) और अपनी दुखियारी मां मंजरी (मोनिका पंवार) के साथ रहता है, जो कभी ट्रैप शूटिंग में गोल्ड मेडल लाने वाली प्रॉमिसिंग खिलाड़ी हुआ करती थी और पिता जबरदस्त पहलवान (विनीत कुमार सिंह, कर्रे और यादगार हैं) हुआ करते थे.
इसी क्रम में ब्रायन डि पाल्मा की "स्कारफेस" (1983) भी खड़ी मिलती है. जिसका संदर्भ ख़ुद बबलू दे देता है, और ये दर्शकों पर छोड़ा जाता है कि वे पकड़ पाएंगे कि नहीं. जेल से निकला बबलू कहता है उसे टोनी मंटेना बनना है. अमेरिका का बड़ा आदमी, यानी गैंगस्टर. “स्कारफेस” में इसे अल पचीनो ने प्ले किया. इस किरदार की जड़ें अमेरिकी-इतालवी गैंगस्टर अल कपोन में जाती हैं जो गाल पर तीन घाव लिए ओरिजिनल "स्कारफेस" था. बबलू भी वैसा ही स्कार/ज़ख़्म का निशान लेकर जेल से निकलता है. उसे घमंड और आश्वासन है कि वो भी टोनी मोन्टाना की तरह समाज में नीचे से ऊपर तक जाना चाहता है. बबलू का ये अपराधीकरण उसके उद्धार को नामुमकिन सा बना देता है. फ़िल्म यहां समाज में अपराधियों के निर्माण (Making of a criminal) पर गहरी टिप्पणी करती है. एक सिरे पर बबलू होता है, दूसरे सिरे पर उसका पिता - जबरदस्त. एक नासमझी में अपराध करता है, दूसरा नादानी में.
निशानची में "मदर इंडिया" को पाते हुए दिल गदगद होता है. करीब 68 साल बाद हम सुक्खी लाला, राधा और बिरजू को फिर देखते हैं और अनुराग कश्यप के अनूठे संसार में देखते हैं. फिल्म में किशोरवय बबलू हूबहू नन्हे बिरजू की तरह ही "देखन में छोटे लगे, घाव करे गंभीर" है. सनकी. जिद्दी. अपनी मां की रक्षा करने को आतुर. जान से प्यारे पति को खो चुकी जवान मंजरी, राधा की सी वेदना लिए है. इस रोल में संभावनाओं से भरी मोनिका पंवार (बेहतरीन) भारत के गांवों की उन खप चुकी अनगिनत स्त्रियों का चित्र है, जो जीवट से भी भरी रहीं लेकिन दुःख की तलवारें इस निर्ममता और निरंतरता से उन पर वार करती गईं कि अपनी मृत सी साड़ी, ब्लाउज, पेटीकोट और घिसी चप्पलों में वे ज़ॉम्बी जैसे बेजान जीवन काटती चली गईं.
इन सबके बीच चूंकि ये अनुराग कश्यप का सिनेमा संसार है और सिनेमा उनकी रक्तवाहिनी है तो होली के रंगों की तरह फ़िल्म सिनेमाई संदर्भों से भीगी हुई है. ये संदर्भ कैर और कैरी के अचार के कड़वेपन और खट्टेपन की तरह हमारी लार ग्रंथियों के नल खोलते जाते हैं.
अनिल कपूर का "धिना धिन धा" इसमें धमकता है.
मज़ेदार ओपनिंग सीक्वेंस जिसे मैं बार-बार देख सकता हूं, उसमें बबलू बैंक लूटने जाता है और बैंक के गार्ड (दुर्गेश कुमार, एक-डेढ़ मिनट में अपना मैजिक कर जाते हैं) के साथ बाहर बैठकर बातें करने लगता है. नायाब इम्प्रोवाइज़ेशन. बैंक लूटने आया बबलू भोले गार्ड को पूछता है - “बंदूक में कितनी गोली है?”. वो कहता है - “दो”. फिर वो पूछता है - “लूटने वाले तीन हुए तो क्या करोगे?”. गार्ड कन्फ्यूज हो जाता है. तो चुलबुला कनपुरिया बबलू कहता है - "रजनीकांत को देखे हो? दो गोली से चार मारता है." और आगे धांय से गोली चल जाती है.
सुक्खी लाला के थोड़े डायल्यूटेड संस्करण अंबिका प्रसाद के रोल में कुमुद मिश्रा जब बबलू को पुश करते हैं किसी प्रिय की हत्या करने के लिए, तो वो "बागी बलवान बिरजू" हो जाता है कि - नहीं हो पाएगा. कहता है - “आप तय कर लीजिएगा, आपको मुगल-ए-आजम खेलना है या हम आपके हैं कौन. क्योंकि पिक्चर दोनों ब्लाकबस्टर थी.”
एक गाना आता है जिसमें सिर्फ आइकॉनिक बॉलीवुड फिल्मों के नाम से मिलकर ही लिरिक्स बना है.
मन में तरंग छोड़ जाने वाला एक पल वो होता है जब बबलू और रिंकू (वेदिका पिंटो) पास बैठे होते हैं और वो पूछती है - "कैसे पता, कैसे करते हैं kiss?" तो बबलू कहता है - "राजा हिंदुस्तानी में देखें है." इशारा आमिर-करिश्मा के बीच फिल्माए 40 सेकेंड के किसिंग सीन की ओर होता है.
फ़िल्म के डायलॉग्स अन्यथा भी चटखारेदार हैं. एक सीन में रिंकू कहती है - “महक रहे हो”. तो बबलू कहता है - “दहक रहे हैं”.
बैंक लूटने वाले ओपनिंग सीन के अलावा जो सीन सबसे ज्यादा मन रंजित कर जाता है वो विनीत सिंह पर फिल्माया गया है. जहां उनका पहलवान पात्र "जबरदस्त" दिल में खंजर खाया, किसी घायल बाघ सा दहाड़ता है. वहां वो बरहा हो जाता है. जंगली सूअर. जापानी कथाओं का इनोशिशी. जिसका शिकार शेर के शिकार से भी खतरनाक होता है. राजा शिकार करने जाता है तो पता नहीं होता लौटकर भी आ पाएगा कि नहीं. जबरदस्त कान भेद देने वाले अंदाज में चिंघाड़ता है. अब तक मर जाना चाहिए लेकिन मरता नहीं. रुक रुक कर मारता है. आवेगी. साहसी. ख़ून से लथपथ. और अपने नाम का साकार करता हुआ - एकदम जबरदस्त. सिनेमैटोग्राफर सिलवेस्टर फोंसेका का कैमरा इस सीक्वेंस में अपने चरम पर होता है. ये विनीत के करियर के सबसे यादगार दृश्यों में से एक हो गया है.
जर्मन फिल्ममेकर वर्नर हरजॉग अपनी विरली फिल्म "फिट्जकराल्डो" (1982) में तीन साल एक पहाड़ पर लोहे का जहाज चढ़ाते रहे, नॉन-कमर्शियल फिल्म बनाते रहे. टोटल मैडनेस. कुछ कुछ वैसा कमिटमेंट है अनुराग कश्यप का अपनी कहानी की अंतरात्मा को बनाए रखने को लेकर. और एक्टर्स का अपने पात्रों को लेकर. बबलू और डबलू के रोल में नए अभिनेता ऐश्वर्य निर्विवाद रूप से असरदार हैं. उन्होंने दो ऐसे हमशक्ल भाइयों के रोल किए जो स्वभाव में एक दूसरे को पोलर ऑपोज़िट हैं. उस तासीर को ऐश्वर्य परिश्रमपूर्वक निभाते हैं. खांटी कनपुरिया जबान पकड़ते हैं. एक शब्द का एक्सेंट भी हिलता नहीं. वे ओवरडू भी नहीं करते. दोनों भाइयों की बॉडी लेंग्वेज भी अलग-अलग बनी रहती है और लुक भी.
निशानची पार्ट 1 ने रस्कोलनिकोव के "अपराध" को दिखाया तो पार्ट 2 "दंड" वाले हिस्से को चित्रित करेगा. रस्कोलनिकोव की तर्ज पर क्या बबलू को अपराधबोध घेरेगा? क्या मानसिक हताशा उसे तोड़ेगी? क्या वो अपना अपराध स्वीकार करेगा? क्या वो नैतिकता और प्रायश्चित की राह लेगा? या फिर डायरेक्टर अनुराग अपनी इस "फिल्लम" में कुछ और धिना धिन धा करेंगे, ये देखना बाकी रहेगा.
Film: Nishaanchi । Director: Anurag Kashyap । Cast: Aaishvary Thackeray, Monika Panwar, Vineet Kumar Singh, Kumud Mishra, Vedika Pinto, Zeeshan Ayyub, Durgesh Kumar । Writers: Ranjan Chandel, Anurag Kashyap, Prasoon Mishra । Editor: Aarti Bajaj । Director of Photography: Sylvester Fonseca । Casting Director: Gautam Kishanchandani । Run Time: 177 minutes । Watch at: Cinemas (Released on 19th September, 2025)
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