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फिल्म रिव्यू- मैडम चीफ मिनिस्टर

मैडम चीफ मिनिस्टर जिस ताबड़तोड़ तरीके से शुरू होती है, वो खत्म होते-होते वापस उतनी ही दिलचस्प और मज़ेदार हो जाती है. मगर दिक्कत का सबब है वो सब, जो शुरुआत और अंत के बीच घटता है.

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फिल्म मैडम चीफ मिनिस्टर के एक सीन में ऋचा चड्ढा. इस फिल्म को जॉली एलएलबी फेम सुभाष कपूर ने डायरेक्ट किया है.
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श्वेतांक
22 जनवरी 2021 (Updated: 22 जनवरी 2021, 03:43 PM IST) कॉमेंट्स
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पिछले हफ्ते ऐमज़ॉन प्राइम वीडियो पर आई 'तांडव' वेब सीरीज़ के बाद हमें फिर से एक पॉलिटिकल ड्रामा देखने को मिला. इस बार सिनेमाहॉल में.  इस फिल्म का नाम है 'मैडम चीफ मिनिस्टर'. अपने पोस्टर और कास्ट पॉलिटिक्स को लेकर ये फिल्म पहले ही चर्चा में है. खैर, हमने ऋचा चड्ढा, सौरभ शुक्ला, शुभ्रज्योती बरत और अक्षय ओबेरॉय स्टारर ये फिल्म देख ली है. और इस पर हमारी क्या राय है, आगे इसी पर बात करेंगे. क्या है मैडम चीफ मिनिस्टर की कहानी? फिल्म शुरू होती है एक बड़ी मजबूत स्टेटमेंटनुमा सीन से. 80 के दशक में यूपी के एक गांव में नीची जाति का लड़का घोड़ी पर बैठकर अपनी बारात जा रहा है. ये बारात ठाकुरों के मोहल्ले से होकर गुज़रती है. उस मोहल्ले में रहने वाले कथित ऊंची जाति के लोगों को इस बात से परेशानी है कि दुल्हा नीची जाति का होकर उनके सामने घोड़ी पर कैसे बैठा! ये सीन दुल्हे के पिता की मौत के साथ खत्म होता है. आगे बढ़कर कहानी पहुंचती है तारा नाम की एक दलित लड़की पर. तारा एक कॉलेज में असिस्टेंट लाइब्रेरियन है. उस कॉलेज के छात्र संघ का चुनाव लड़ने जा रहे इंद्रमणी त्रिपाठी के साथ रिलेशनशिप में है. तारा इंद्रमणी को बताती है कि वो प्रेग्नेंट है. इस सूचना के साथ एक चेतावनी भी आती है. तारा कहती है कि वो एक बार अपना अबॉर्शन करवा चुकी है. इस बार नहीं करवाएगी. इंद्रमणी को लगता कि इस नीची जाति की लड़की के साथ उसके संबंध आम हो गए, तो उसकी राजनीतिक महत्वकांक्षाओं का गला घुट जाएगा. अपने गुंडों से कहकर वो तारा पर हमला करवाता है. तारा को इस मारपीट से बचाकर लोकल पार्टी के नेता मास्टर सूरज भान अपने साथ ले जाते हैं.
मैडम चीफ मिनिस्टर यानी तारा के किरदार में ऋचा चड्ढा. हेयर स्टाइल और फिल्म में तमाम दलित रेफरेंसेज़ की वजह से इस फिल्म को मायावती की लाइफ से प्रेरित बताया जा रहा था.
मैडम चीफ मिनिस्टर यानी तारा के किरदार में ऋचा चड्ढा. हेयर स्टाइल और फिल्म में तमाम दलित रेफरेंसेज़ की वजह से इस फिल्म को मायावती की लाइफ से प्रेरित बताया जा रहा था.


मास्टर जी ने पिछले 15 सालों से आसपास के गांवों में घूमकर अपनी पार्टी मजबूत की है. उनकी पार्टी नीची जाति के लोगों के हक़ के लिए लड़ती है. मास्टर जी के सान्निध्य में तारा राजनीति के गुर सीखने लगती है. मर्दों से भरी पार्टी में उसकी भी एक जगह बन जाती है. अब यहां से ये लड़की उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री कैसे बनती है, इसी अविश्वसनीय कहानी पर बनी फिल्म का नाम है मैडम चीफ मिनिस्टर. पिछली लाइन में हमने अविश्वसनीय इसलिए लिखा क्योंकि फिल्म में काफी कुछ ऐसा घटता है, जिस पर यकीन करना पॉसिबल नहीं है. तगड़े एक्टर्स भी इस डूबती फिल्म की नैय्या पार नहीं लगा पाए फिल्म में तारा का रोल किया है ऋचा चड्ढा ने. ऋचा इस फिल्म की हीरो हैं. मगर वो हीरो बनने की बजाय हीरो बनाई गई लगती है. उन्हें एस्टैब्लिश करने के लिए ढेर सारे सैवेज मोमेंट्स फिल्म में क्रिएट किए गए हैं. मगर वो बहुत ही कम असरदार हैं. और कई जगहों पर फिल्म को हल्का भी बना देते हैं. मास्टर जी का रोल किया सौरभ शुक्ला ने. सौरभ शुक्ला इस फिल्म में शुरू से एक सपोर्टिंग एक्टर के तौर पर जुड़े हुए होते हैं. मगर उनका किरदार फिल्म को नहीं सिर्फ तारा को सपोर्ट करता है. तारा के मुख्यमंत्री बनने के बाद फिल्म में मानव कौल की एंट्री होती है, जिन्होंने दानिश नाम के ऑफिसर का रोल किया है. फिल्म दानिश के कैरेक्टर के लिए आर्क बनाने की कोशिश करती है. मगर वो बड़ा प्रेडिक्टेबल सा सब-प्लॉट लगता है. 'मिर्ज़ापुर' में रति शंकर शुक्ला का रोल करने वाले शुभ्रज्योति बरत भी आपको इस फिल्म में देखने को मिलेंगे. इंद्रमणी त्रिपाठी के किरदार में हैं अक्षय ओबेरॉय. ये दोनों लोग फिल्म के विलन होने वाले थे. कहते हैं अगर आपको मजबूत फिल्म बनानी है, तो आपका विलन स्ट्रॉन्ग होना चाहए. मगर ये दोनों लोग फिल्म की कहानी में ही कहीं खो जाते हैं. बीच-बीच में आकर थोड़ी खुराफात करते हैं मगर फिल्म उन्हें भुला देती है.
तारा का किरदार मास्टर जी की देखरेख में पॉलिटिक्स की ट्रेनिंग लेता है. मास्टर जी का रोल सौरभ शुक्ला ने किया है.
तारा का किरदार मास्टर जी की देखरेख में पॉलिटिक्स की ट्रेनिंग लेता है. मास्टर जी का रोल सौरभ शुक्ला ने किया है.

ऋचा चड्ढा की मैडम चीफ मिनिस्टर की अच्छी बातें मैडम चीफ मिनिस्टर जिस ताबड़तोड़ तरीके से शुरू होती है, वो खत्म होते-होते वापस उतनी ही दिलचस्प और मज़ेदार हो जाती है. मगर दिक्कत का सबब है वो सब कुछ, जो शुरुआत और अंत के बीच घटता है. इस फिल्म का नाम सुनकर लगा था कि ये जेंडर और कास्ट पॉलिटिक्स दोनों ही मसलों पर मजबूती से बात करने वाली है. मगर ऐसा हो नहीं पाता. तगड़े एक्टर्स की नपी-तुली परफॉरमेंस भी फिल्म के फेवर में काम करती है. मगर आप अच्छे एक्टर्स को इससे बेहतर और मजबूत रोल्स में एक्सपेक्ट करते हैं. निजी तौर पर मुझे फिल्म में निखिल विजय का काम मज़ेदार लगा. वो बात अलग है कि उनके किरदार का कोई ओर-छोर नहीं है.
तारा के पति और सत्ता की लालच के शिकार दानिश के रोल में हैं मानव कौल.
तारा के पति और सत्ता की लालच के शिकार दानिश के रोल में हैं मानव कौल.


जब कोई फिल्ममेकर अपनी पॉलिटिकल फिल्म को बिना जबरदस्ती के गानों और आइटम नंबर्स के निकाल ले जाता है, तो ज़ाहिर तौर पर फिल्म से निराशा थोड़ी कम होती है. फिल्म के डायलॉग्स यूं तो काफी लाउड हैं. मगर कुछ एक मोमेंट्स ऐसे हैं, जहां आपको 'ब्लफमास्टर' में नाना पाटेकर के निभाए चंद्रकांत पारेख जैसी फीलिंग आती है. क्योंकि चंद्रू पूरी फिल्म में कहता रहता है, लाइन अच्छी है नोट कर लूंगा. इस फिल्म में भी दो लाइनें है, जो सबसे ज़्यादा उभरकर आती हैं. जब मंदिर से निकलता एक आदमी मास्टर जी को प्रसाद देने आता है, तो वो कहते हैं-
''जिस दिन आपके मंदिर के भीतर जाकर प्रसाद ले पाएंगे, उस दिन खाएंगे''
फिल्म में मंदिर में नीची जाति के लोगों की एंट्री पर एक से ज़्यादा बार बात होती है. तब आपको लगता है कि काश ये फिल्म इन्हीं मसलों पर थोड़ी और गंभीरता से बात करती! जब मैडम चीफ मिनिस्टर यानी तारा प्रदेश में मेट्रो चलवाने की बात कहती हैं, तो प्रतिद्वंदी पार्टी के नेता अरविंद जी एक लाइन में आज के समय की राजनीति को डिफाइन कर देते हैं. वो कहते हैं-
''यहां जो मेट्रो बनवाता है वो चुनाव हारता है, जो मंदिर बनवाता है वही चुनाव जीतता है.''
'मिर्ज़ापुर' में रति शंकर शुक्ला का रोल करने वाले शुभ्रज्योति बरत भी आपको इस फिल्म में देखने को मिलेंगे. उन्होंने तारा के राजनीतिक प्रतिद्वंदी अरविंद सिंह का रोल किया है.
'मिर्ज़ापुर' में रति शंकर शुक्ला का रोल करने वाले शुभ्रज्योति बरत भी आपको इस फिल्म में देखने को मिलेंगे. उन्होंने तारा के राजनीतिक प्रतिद्वंदी अरविंद सिंह का रोल किया है.

फिल्म की बुरी बातें क्या हैं? इस फिल्म से सबसे बड़ी शिकायत ये है कि ये एक टची टॉपिक पर खुलकर बात करने का बड़ा शानदार मौका गंवा देती है. 'मैडम चीफ मिनिस्टर' के पास जाति और जेंडर दोनों विषयों पर बात करने का स्कोप था. मगर ये फिल्म शुरू होने के कुछ ही देर बाद असलियत का दामन छोड़, सिनेमा बन जाती है. जैसे हमने आपको कहानी वाले सेग्मेंट में बताया कि इंद्रमणी, तारा के बच्चे को पेट में ही मारने का प्रयास करता है. मगर इस सीन के बाद फिल्म में किसी भी जगह पर उस बच्चे या उससे जुड़ी कोई भी बात का ज़िक्र नहीं आता. अब जब फिल्मीपने की बात हो ही रही है, तो एक और सीन सुनिए. तारा राज्य की मुख्यमंत्री है. उसे पता चलता है कि उसका पति अपनी प्रेमिका के साथ मिलकर उसे जान से मारने की कोशिश कर रहा है. ऐसे में तारा अपने पति की प्रेमिका शाज़िया को अपने गांव लेकर जाती है. उसके घर के बाहर लोगों की भीड़ लगी हुई है. मगर तारा अंदर शाज़िया को गोली मारकर बाहर निकल आती है. और उन्हें कोई कुछ नहीं कहता. इसके बाद हमारे कहने के लिए भी क्या ही बचता है.
छात्र राजनीति से फुल फ्लेज्ड पॉलिटिक्स में आने वाले इंद्रमणी त्रिपाठी. इनकी और तारा की पुरानी दुश्मनी है, जो राजनीति के चक्कर में खुले में आ जाती है.
छात्र राजनीति से फुल फ्लेज्ड पॉलिटिक्स में आने वाले इंद्रमणी त्रिपाठी. इनकी और तारा की पुरानी दुश्मनी है, जो राजनीति के चक्कर में खुले में आ जाती है.

ओवरऑल एक्सपीरियंस मैडम चीफ मिनिस्टर को देखने के बाद ऋचा और सौरभ शुक्ला की एक दूसरी फिल्म याद आती है. ये फिल्म थी सुधीर मिश्रा डायरेक्टेड 'दासदेव'. रिलीज़ के वक्त 'दासदेव' की खूब खिंचाई हुई थी. मगर पॉलिटिकल फिल्म होने के नाते मैडम चीफ मिनिस्टर उस फिल्म के आस पास भी नहीं पहुंच पाती है. अच्छे डायरेक्टर और एक्टर्स से लैस होने के बावजूद ये फिल्म इस कदर ये मौका अपने हाथ से जाने देती है, सबसे खलने वाली बात ये है. 'मैडम चीफ मिनिस्टर' एक बेहद औसत फिल्म है, जिसे किसी रियल लाइफ कॉन्ट्रोवर्शियल नेता की लाइफ से जोड़कर देख पाना भी मुश्किल है.

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