फिल्म रिव्यू- कुरूप
'कुरूप' बेसिकली एक क्राइम थ्रिलर है, जो क्राइम से ज़्यादा क्रिमिनल की बात करती है. मगर अपना थ्रिलर वाला गुण बरकरार रखती है.
Advertisement

फिल्म कुरूप का एक सीन. इस फिल्म को श्रीनाथ राजेंद्रन ने डायरेक्ट किया है.
1984 में एक सुकुमार कुरूप नाम के एक शख्स ने इंश्योरंस के पैसे पाने के लिए अपनी ही मौत का नाटक किया था. मगर इस प्लैन को अंजाम देने के लिए उसने चाको नाम के एक आदमी की हत्या कर दी थी. ताकि चाको की बॉडी को लोग कुरूप की बॉडी समझें. मगर केरल पुलिस ने इस मामले को पर्स्यू किया और उन्हें ये पूरा खेल पता चल गया. उसके बाद सुकुमार कुरूप गायब हो गया. तब से लेकर अब तक किसी को उसके बारे में कुछ नहीं पता. वो कहां है? क्या कर रहा है? है भी कि नहीं?
सुकुमार कुरूप, वो ओरिजिनल कैरेक्टर जिसकी कहानी पर ये फिल्म बेस्ड है.
ये एक रियल स्टोरी है, जिससे प्रेरित होकर 'कुरूप' नाम की फिल्म बनी है. ये फिल्म सुकुमार कुरूप नाम के भगोड़े की कहानी शुरू से दिखाती है. फिल्म की बेसिक स्टोरीलाइन ये है कि गोपी कृष्ण उर्फ GK नाम का खुराफाती दिमाग का लड़का है, जो बचपन से ही चीज़ों को टेढ़े तरीके से देखता है. बहुत एंबिशस है. बड़े सपने है उसके. मगर वो अपनी इंटरनल कॉलिंग को दबाकर इंडियन एयर फोर्स जॉइन करता है. कुछ समय तक सर्विस करने के बाद वो एयरफोर्स छोड़, प्रॉपर झोल-झाल वाले बिज़नेस में आ जाता है. मगर फिल्म का मेन फोकस उस घटना पर रहता है, जिसके बाद कुरूप नेशनल न्यूज़ बन गया था. अपनी इंश्योरंस के 8 लाख रुपए पाने के लिए GK, कुछ दोस्तों के साथ मिलकर चार्ली नाम के आदमी की हत्या कर देता है. पुलिस तहकीकात करते हुए पूरा मामला समझ जाती है. गोपी कृष्ण उर्फ सुधाकर कुरूप को पकड़ने की हरसंभव कोशिश होती है. मगर वो कभी पुलिस की पकड़ में नहीं आता.

फिल्मी सुकुमारन कुरूप, जिसे सुधाकर कुरूप नाम से बुलाया जाता है.
'कुरूप' एक ऐसे शख्स की कहानी है, जो आउट एंड आउट नेगेटिव कैरेक्टर है. सुधाकर कुरूप का रोल किया है दुलकर सलमान ने. जब कोई स्टार ग्रे शेड वाला कैरेक्टर प्ले करता है, तो आप ना चाहते हुए भी उसके लिए रूट करने लगते हैं. उसे जीतते हुए देखना चाहते हैं. ये चीज़ इस फिल्म के लिए सबसे बड़ी दिक्कत बनती है. किसी फिल्ममेकर ने कुरूप के ऊपर फिल्म बनाना क्यों चुना? क्योंकि कुरूप माना हुआ क्रिमिनल है. उसकी पर्सनैलिटी के बहुत से रंग होंगे. मगर उसकी प्राइमरी पहचान यही है कि वो एक कॉनमैन और मर्डरर है. जब आप किसी ऐसे कैरेक्टर की कहानी दिखाते हैं, तो आपकी फिल्म एक पतले धागे के सहारे झूलती रहती है. कब रियल लाइफ विलन फिल्म का हीरो बन जाता है, पता ही नहीं चलता. 'कुरूप' के मेकर्स ने पूरी कोशिश की है कि ये किरदार हेरोइक या एस्पायरिंग न लगे. मगर फिल्म में उस कैरेक्टर का स्वैगर और बैकग्राउंड म्यूज़िक कुछ और ही कहानी कहते हैं. ये फिल्म सुधाकर कुरूप के किए को जस्टिफाई नहीं करती. मगर फिल्म के कुछ सीक्वेंस विशेष ऐसे प्ले आउट होते हैं कि वो ऑलमोस्ट कैरेक्टर के ग्लोरिफिकेशन जैसे ही लगने लगते हैं.

अपने पार्टनर्स इन क्राइम के साथ कुरूप.
'कुरूप' की कहानी फिल्म में उसके एयरफोर्स वाले दोस्त, उसके केस पर काम करने वाले पुलिस ऑफिसर की डायरी और कई मौकों पर खुद सुधाकर कुरूप के हवाले ही बताई जाती है. इसलिए फिल्म समय में आगे-पीछे जाती रहती है. इस चक्कर में होता ये है कि कई सारे सीन्स रिपीट होते हैं. मेकर्स उन सीन्स को कॉलबैक वैल्यू के लिहाज़ से देखते हैं. ताकि दर्शक का संपर्क कहानी या फिल्म से न टूटे. सुधाकर कुरूप के कैरेक्टर को एस्टैब्लिश करने में ये फिल्म बहुत समय लेती है. उसकी एलाबोरेट बैकस्टोरी दिखाई जाती है.
'कुरूप' की अच्छी बात ये है कि आपको किसी भी सीन को देखते हुए ये नहीं लगता कि कुछ बहुत अन-रियल या नकली हो रहा है. ऑथेंटिसिटी से लेकर डिटेलिंग का ख्याल रखा गया है. सुधाकर कुरूप के हर एक्ट के इर्द-गिर्द एक थ्रिल वाला माहौल बुना गया है, जो फिल्म के फेवर में काम करता है. ये चीज़ दर्शकों की दिलचस्पी फिल्म में बनाए रखती है. हमने इस फिल्म का डब्ड हिंदी वर्ज़न देखा. जबकि ओरिजिनली ये फिल्म मलयालम भाषा में बनी है. बावजूद इसके आपको सुधाकर से कई सारे पंचलाइन्स सुनने को मिलते हैं. यहीं पे ग्लोरिफिकेशन वाली डिबेट दोबारा हमारे सामने खड़ी हो जाती है. खैर, हम दोबारा वहां नहीं जाएंगे.

वो पुलिसवाला जिसने कुरूप की प्लैनिंग समझी और अपनी पूरी करियर उसे ढूंढने में खर्च कर दिया.
ऐसा बहुत कम देखने को मिलता है कि डब्ड फिल्मों का म्यूज़िक ओरिजिनल फिल्म जितना ही अच्छा या उससे बेहतर हो. 'कुरूप' में 'पल इतना मेरा' नाम का गाना है, जो सुनने में बहुत सुंदर लगता है. प्लस इस गाने से उस टाइम फ्रेम वाला फील भी आता है, जिसमें ये फिल्म घट रही है. बैकग्राउंड म्यूज़िक इस फिल्म से जुड़ा सबसे टची टॉपिक है. क्योंकि एक ओर फिल्म ये दावा करती है कि वो सुधाकर कुरूप वाले किरदार का महिमामंडन नहीं करती. मगर जब भी कुरूप का कैरेक्टर कुछ कर रहा होता, सबसे पहले उसके सपोर्ट में फिल्म का BGM ही पहुंचता है. दूसरी तरफ ये बात भी है कि अगर आप 'कुरूप' को एक फिल्म के तौर पर देखें और उसमें से असल घटना से प्रेरित होने का बोझ हटा दें, तो फिल्म का बैकग्राउंड म्यूज़िक गज़ब ही लेवल का लगता है. फिल्म 'पल इतना मेरा' गाना आप नीचे दिए लिंक पर क्लिक करके देख सकते हैं-
'कुरूप' में दुलकर सलमान ने टाइटल कैरेक्टर प्ले किया है. उन्होंने पूरे स्टाइल के साथ इस किरदार को निभाया है. ऊपर से वो परदे पर इतने लाइकेबल लगते हैं कि आप उन्हें नफरत वाले भाव से देख ही नहीं सकते. ये सलमान के लिए अच्छी चीज़ हो सकती है. इस फिल्म के लिए नहीं. सुधाकर कुरूप की पत्नी शारदा का रोल किया है शोभिता धूलिपाला ने. मैंने थिएटर में जाने से पहले इस फिल्म का कोई प्रोमो नहीं देखा था. इसलिए मुझे ये नहीं पता था कि शोभिता भी इस फिल्म का हिस्सा हैं. जैसे ही उन्हें आप स्क्रीन पर देखते हैं, तो एक आश्वस्त होने वाली फीलिंग आ जाती है. हां,अब इस फिल्म में कुछ तो होगा. मगर शारदा वाला किरदार बड़े अनमने ढंग से लिखा गया लगता है. फर्स्ट हाफ के कुछ सीन्स में वो दिखती हैं. जिनमें से एक-दो बार आप उन्हें बोलते हुए सुनते हैं. सेकंड हाफ में तो फिल्म उन्हें भूल ही जाती है. न कोई ज़िक्र, न कोई फिक्र. शाइन टॉम चाको लिटरली कुरूप के पार्टनर इन क्राइम बने हैं. उन्होंने भासी पिल्लई का रोल किया है, जो चार्ली की हत्या में कुरूप की मदद करता है. इंद्रजीत सुकुमारन ने उस पुलिस ऑफिसर का रोल किया है, जो कुरूप का केस फॉलो कर रहा है. फिल्म के एक बड़े हिस्से का कॉन्टेंट इसी पुलिसवाले की डायरी से आता है.

फिल्म 'कुरूप' के एक सीन में शोभिता धुलिपाला और दुलकर सलमान.
'कुरूप' बेसिकली एक क्राइम थ्रिलर है, जो क्राइम से ज़्यादा क्रिमिनल की बात करती है. मगर अपना थ्रिलर वाला गुण बरकरार रखती है. फिल्म में कुरूप के पोर्ट्रेयल को लेकर सवाल उठाए जा सकते हैं. मगर उससे इस फिल्म की क्वॉलिटी खराब होने की बात नहीं कही जा सकती. 'कुरूप' ऐसी फिल्म नहीं है, जिसे नहीं देखकर आप बहुत कुछ मिस कर देंगे. अगर आप इसे देखने का फैसला करते हैं, तो आपको ऐसा नहीं लगेगा कि आपका समय और पैसा बर्बाद हो गया.