मूवी रिव्यू: जाने जां
'जाने जां' करीना कपूर और जयदीप अहलावत की एक वेल ऐक्टेड फिल्म है. वेल डायरेक्टेड, इसलिए नहीं कहेंगे क्योंकि ये वेल रिटेन नहीं है. शायद 'कहानी' बनाने वाले डायरेक्टर से थोड़ा उम्मीदें ज़्यादा थीं.

'दृश्यम' को भारतीय सिनेमा की कुछ चुनिंदा मिस्ट्री थ्रिलर्स में गिना जा सकता है. इस फिल्म पर कीगो हिगाशिनो की नॉवेल The Devotion of Suspect X से इंस्पायर होने के आरोप लगे. एकता कपूर इस किताब के राइट्स खरीद चुकी थीं. ऐसे में उन्होंने 'दृश्यम' के मेकर्स को लीगल नोटिस भी भेजा. इस पर उनका जवाब भी आया. क्या जवाब आया, ये आपको इंटरनेट पर मिल जाएगा. इसका लब्बोलुआब ये था कि उन्होंने इस आरोप को नकारा. जब मैं नेटफ्लिक्स पर आई करीना कपूर की फिल्म 'जाने जां' देख रहा था. मुझे इसमें दृश्यम के पदचिन्ह मिले. लेकिन असल में 'दृश्यम' पहले आ गई. इसलिए हम ये कह रहे हैं. लेकिन सही मायनों में 'दृश्यम' में 'जाने जां' के ट्रेसेस मिलते हैं. क्योंकि 'जाने जां' ही सही मायनों में The Devotion of Suspect X का ऑफिशियल अडाप्टेशन है. देखते हैं कैसी है फिल्म?
# सुजॉय घोष इससे पहले 'कहानी' जैसी मिस्ट्री थ्रिलर बना चुके हैं. ऐसे में उनसे उम्मीदें कुछ ज़्यादा ही थीं. उस उम्मीद पर घोष खरे नहीं उतरते. लेकिन ऐसा कहना गलत होगा कि 'जाने जां' बेकार फिल्म है. ये सही फिल्म है. लेकिन 'कहानी' बनाने वाले व्यक्ति का स्टैंडर्ड थोड़ा ऊंचा है. ये एक वेल ऐक्टेड फिल्म है. वेल डायरेक्टेड फिल्म इसलिए नहीं कहेंगे क्योंकि ये वेल रिटेन नहीं है. चूंकि फिल्म मुश्किल है. ऐसे में कागज़ पर जब सौ प्रतिशत बनेगी, तो स्क्रीन पर 80 प्रतिशत कन्वर्ट होगी. लेकिन यहां लिखाई में मामला 80 प्रतिशत है.
# सुजॉय घोष के हाथ में पूरी तरह से स्क्रीनप्ले की कमान थी. उन्होंने फिल्म का बैकड्रॉप भी सुदूर किसी पहाड़ी इलाके में रखा है. लो-कीलाइट में पूरी फिल्म शूट भी हुई है. सुजॉय फिल्म की शुरुआत में टेंशन बिल्ट करने की कोशिश भी करते हैं, जो स्क्रीन पर ट्रांसफॉर्म भी होता है. लेकिन जैसे ही मामला असली कहानी पर आता है. हल्का-सा डगमग हो जाता है. इसका प्रमुख कारण है. इसके बहुत ऑब्वियस से डायलॉग्स. ये सुजॉय ने राज वसंत के साथ मिलकर लिखे हैं. बहुत से गैरज़रूरी संवाद मज़ा किरकिरा करते हैं. इनकी कोई ज़रुरत थी नहीं. अभी एक उदाहरण देंगे. पर उससे पहले थोड़ी-सी कहानी जान लीजिए.

# एक सिंगल मदर है माया डिसूजा. उसकी 13 साल की बेटी है. दोनों की जिंदगी बढ़िया चल रही है. तभी एक क़त्ल होता है. इसका शक आता है, माया पर. इसकी जांच कर रहा है, करन. इत्तफाकन उसका एक दोस्त है नरेन, जो माया का पड़ोसी निकल आता है. बस इतनी कहानी आपने ट्रेलर में देखी होगी. लेकिन फिल्म में कहने के लिए बहुत कुछ है.
# बहरहाल, अब ऑब्वियस डायलॉग के उदाहरण पर आते हैं. जब नरेन माया के पास मदद करने आता है. थोड़ी देर की ना-नुकुर के बाद माया मान जाती है. नॉर्मल-सी बात है, जब नरेन मदद करने ही आया है. माया सिर्फ हामी भरे और मदद स्वीकार करे. वहां अलग से माया पूछती है, कि टीचर जी आप मेरी मदद करेंगे. विजुअल मीडियम है, इसे रेडियो की तरह क्यों इस्तेमाल किया जा रहा है. टीचर जी को बहुत ब्रिलियंट दिखाया गया है. वो बहुत जल्दी गेस कर लेते हैं कि क्या हुआ है? कैसे हुआ है, ये भी लगभग गेस कर लेते हैं. थोड़ा अजीब लगता है. उनका गेस करना नहीं. उनका गेस करने का तरीका. ये तरीका कंविंसिंग नहीं है.
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# थोड़ी मुश्किल कहानी थी. इसे सुजॉय ने सरल करके पेश करने की कोशिश भी की है. कई मामलों में ये इसका सकारात्मक पक्ष है. एकाध जगहों पर सरलता 'जाने जां' के खिलाफ जाती है. मुझे लगता है कि कोई भी, जो जाने-जान जैसी मिस्ट्री देख रहा है, तो उसे बुद्धिमान समझना चाहिए. जब आप अगला कदम गेस कर ले गए, तो क्या ही मज़ा आया! हां, जिन्होंने थ्रिलर्स कम देखीं हैं, उनके लिए ये बढ़िया पिक्चर है. फिल्म का क्लाइमैक्स थोड़ा और बेहतर हो सकता था. मुझे लगा, बहुत जल्दी भगा दिया गया.

# करीना कपूर का परफ़ॉर्मेंसवाइज ये शानदार ओटीटी डेब्यू है. मुझे निजी तौर पर बहुत ख़ुशी होती है कि ओटीटी के आने से करीना, रवीना, शिल्पा और सुष्मिता जैसे कलाकारों को बतौर लीड मौके मिल रहे हैं. उन पर बॉक्स ऑफिस का भी दबाव नहीं है. करीना ने माया के रोल में बहुत अच्छा काम किया है. बेस्ट बात है कि उन्होंने माया के ग्रे शेड को भी निखारा है. शायद उनकी जगह कोई कमतर कलाकार होता, तो माया का ग्रे शेड इस तरह से निखरकर न आ पाता. सेक्शुअल टेंशन वाले स्पेस में भी करीना कमाल खेलती हैं. विजय वर्मा पुलिस वाले बने हैं. वो बढ़िया ही काम करते हैं. जैसा किरदार, वैसे विजय. इस फिल्म के असली परफॉर्मर हैं, जयदीप अहलावत. शायद ये उनके करियर का अब तक का सबसे तगड़ा फिजिकल ट्रांस्फॉर्मेशन है. लेकिन इस किरदार पर इन्टर्नल तयारी ज़्यादा ज़रूरी थी. और ये स्क्रीन पर दिखती नहीं है. इससे अच्छा किसी भी कलाकार के लिए क्या हो सकता है कि वो कमाल करे, लेकिन सहज लगे. ये जयदीप के करियर के बेस्ट कामों में गिना जाएगा. संजय मिश्रा की एक फिल्म है 'वध'. इसमें भी सौरभ सचदेवा का कमोबेश 'जाने जां' जैसा ही रोल था, वहां भी उन्होंने कमाल किया था. यहां भी सौरभ ने बहुत कम स्पेस मिलने का बावजूद कमाल किया है.
बहरहाल रिव्यू यहीं खत्म करते हैं. एक बार पिक्चर देख सकते हैं. फिर मुझसे सहमत और असहमत भी हो सकते हैं. फिलहाल, हमारे यहां अभी तक डेमोक्रेसी इज नॉट इन डेंजर.
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